कनिष्क एयर इंडिया त्रासदी के सवाल आज तक नहीं सुलझे हैं, पीड़ित परिवार के सदस्यों को आज भी न्याय की आस

कनिष्क एयर इंडिया त्रासदी में जिन परिवारों के सदस्य मारे गए, वे आज भी बुरी तरह आहत हैं कि उन्हें न्याय नहीं मिला।

फोटो: सोशल मीडिया
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भारत डोगरा

23 जून, 1985 को कनिष्क एयर इंडिया 182 विमान में उड़ते समय भयंकर विस्फोट हुआ जिससे हवाई जहाज अटलांटिक सागर में आयरलैंड के तटीय क्षेत्र के पास गिरा और उसमें सवार सभी 329 व्यक्ति मारे गए। इनमें से अधिकतर भारतीय मूल के कनाड़ा के नागरिक थे। 

आज इस भयानक हादसे को 39 वर्ष से अधिक हो गए हैं। इसके बावजूद इससे संबंधित अनेक सवाल उठते रहते हैं। जिन परिवारों के सदस्य मारे गए, वे आज भी बुरी तरह आहत हैं कि उन्हें न्याय नहीं मिला। इसके अतिरिक्त यह भी समय-समय पर प्राप्त होने वाले तथ्यों से स्पष्ट होता रहा है कि यदि कनाडा की गुप्तचर और पुलिस एजेंसियों ने समुचित कार्यवाही की होती तो बड़ी संभावना यह है कि इस हादसे को रोका जा सकता था। 

कनाडा के पब्लिक सेफ्टी मंत्रालय ने ओंटारियो के पूर्व मंत्री बाब रे को इस त्रासदी की जांच का काम सौंपा था। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि कनाडा गुप्तचर संस्थान (सीएसआईएस) के अधिकारियों ने ऐसे दो खालिस्तानियों का पीछा किया जो उनके संदेह के दायरे में थे। यह दोनों एक टापूनुमा वीरान जंगली क्षेत्र में पंहुचे। यहां तक गुप्तचरों ने उनका पीछा किया। फिर जहां यह खालिस्तानी गए थे वहां से एक बड़े धमाके की आवाज आई। कोई बच्चा भी कहेगा कि इस धमाके की आवाज आने से पूछताछ की जरूरत और बढ़ गई थी। पर इन गुप्तचरों ने ऐसा कुछ नहीं किया और आगे कोई कार्यवाही ही नहीं की। अब जब अन्य तथ्य सामने आ चुके हैं तो यह स्पष्ट है, जैसा कि जांच रिपोर्ट में कहा गया है, यह सुनसान इलाके में बम टेस्ट करने का प्रयास था क्योंकि दो वायुयानों में बम रखने की तैयारियां उस समय पूरे जोर पर थी। यदि समय पर इन खालिस्तानियों से भली-भांति पूछताछ कर ली जाती तो इस षड़यंत्र को उसी समय रोक पाने की संभावना थी। 

एक अन्य बड़ा मुद्दा है कि इस गुप्तचर एजेंसी सीएसआईएस ने पहले टेपों पर खालिस्तानी षड़यंत्रकारियों की बहुत सी बातचीत रिकार्ड भी की थी व फिर इससे पहले कि इस रिकार्डिंग का समुचित विश्लेषण हो पाता, इनको नष्ट कर दिया गया। जांच रिपोर्ट ने इस बारे में इस केस की सुनवाई कर रहे जस्टिस जैसिफसन की टिप्पणी की ओर ध्यान दिलाया है, जिन्होंने इसे ऐसी लापरवाही बताया था, जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है।


आखिर इतनी बड़ी लापरवाही कैसे हो गई, इस पर चर्चा गर्म हुई तो सीएसआईएस का यह पक्ष सामने आया कि उसके एक एजेंट ने खालिस्तानी षड़यंत्रकारियों में घुसपैठ कर ली थी, हांलाकि कनिष्क हादसे से तीन दिन पहले उसे अलग कर लिया गया। सीएसआईएस का पक्ष जो प्रकाशित रिपोर्टों में बताया गया है (जैसा कि बीबीसी की एक रिपोर्ट में छपा) कि उसने अपने इस एजेंट के बचाव के लिए यह टेप नष्ट किए। पर ज्यादा बड़ी और महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस एजेंट के पास जो जानकारी थी उसका भरपूर उपयोग किया जाता तो इतना समय जरूर मिलता कि षड़यंत्र का पता लगाकर उसे नाकाम कर दिया जाता, पर ऐसा नहीं हुआ। जांच रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि जो जानकारी सीएसआईएस के पास होती थी वह कनाडियन पुलिस (आरसीएमपी) के साथ ठीक से शेयर नहीं की जाती थी।

एक बड़ा सवाल जांच आयोग के सामने यह था कि दो बम वाले सूटकेस हवाई जहाजों में कैसे पहंचे। बम वाला एक सूटकेस तो कनिष्क विमान में पहुंचा था, दूसरा सूटकेस पहले कनाडा के एक विमान से टोक्यो पंहुचाया गया व वहां से इसे एयर इंडिया के एक विमान में रखने की तैयारी थी, और ऐसा हो जाता तो एयर इंडिया के टोक्यो से उड़ने वाले दूसरे विमान में भी सैंकड़ों यात्री मर जाते। पर यह विस्फोट हवाई अड्डे पर ही हो गया जिससे कुछ सामान ले जा रहे कर्मचारी मारे गए और घायल हो गए। इस बारे में जांच रिपोर्ट ने बताया कि बहुत असावधानियों के कारण ही यह सूटकेस बिना टिकटधारी यात्री के इन विमानों में पहुंच सके। सवाल यह है कि उस दौर में जब सुरक्षा के लिए बहुत ज्यादा ध्यान देने की बात थी तो इतनी बड़ी असावधानी कैसे हुई। 

फिलहाल यह सवाल बने हुए हैं कि इतनी बड़ी गलतियां कैसे हुईं और इस भयंकर हादसे को रोकने की जो अनेक सावधानियां मौजूद थीं, उनका उचित उपयोग क्यों नहीं किया गया।

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