बिहार उपचुनाव का परिणाम तय करेगा चिराग का सियासी कद, हर फैसला उनकी कुशलता को मापेगा!
एलजेपी के संस्थापक और पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के निान के बाद ही पार्टी दो गुटों में बंट गई। एक गुट में चिराग पासवान अलग-थलग पड़ गए तो बाकी चार सांसद उनके चाचा और सांसद पशुपति पारस के साथ चले गए।
बिहार में कुशेश्वरस्थान और तारापुर विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव हो रहे हैं। इस उपचुनाव में सत्ता पक्ष और मुख्य विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की साख दांव पर तो होगी ही, इस उपचुनाव में एलजेपी के सांसद पशुपति कुमार पारस और चिराग पासवान की सियासी साख की भी परीक्षा होगी।
चाचा पशुपति पारस जहां सत्ताधारी गठबंधन राजग के साथ खड़े हैं वहीं भतीजा चिराग पासवान ने दोनों सीटों के लिए प्रत्याशी की घोषणा कर दी है।
एलजेपी के संस्थापक और पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के निान के बाद ही पार्टी दो गुटों में बंट गई। एक गुट में चिराग पासवान अलग-थलग पड़ गए तो बाकी चार सांसद उनके चाचा और सांसद पशुपति पारस के साथ चले गए। बाद में पशुपति पारस को केंद्रीय कैबिनेट में भी शामिल कर लिया गया है। इस बीच दोनों के बीच लगातार तनातनी बरकरार है।
इस बीच, चुनाव आयोग ने दोनों गुटों को अलग-अलग नाम और चुनाव चिह्न् दे दिए। चिराग वाले धड़े का नाम लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) किया गया है और उन्हें हेलिकॉप्टर चुनाव चिह्न् दिया। वहीं उनके चाचा और केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस की पार्टी का नाम राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी और चुनाव चिन्ह सिलाई मशीन आवंटित कर दिया गया।
पशुपति पारस ने तो राजग के समर्थन देने का ऐलान कर दिया लेकिन चिराग की पार्टी ने दोनों सीटों के लिए प्रत्याशियों की घोषणा कर दी।
माना जा रहा है कि चिराग इस चुनाव में पिता का नाम और अपने समर्थकों के बूते अपना राजनीतिक कद बढ़ाने की कोशिश करेंगे। कहा जा रहा है कि इस उपचुनाव में उनका प्रत्येक फैसला उनकी सियासी कुशलता को तो मापेगा ही चुनाव परिणाम से उनके सियासी कद और उनके मिल रहे समर्थन को भी तय कर देगा।
उल्लेखनीय है कि पिछले साल हुए बिहार विधानसभा चुनाव में चिराग ने एकला चलो की नीति अपनाते हुए अकेले चुनाव मैदान में उतरने का निर्णय लिया था। उस चुनाव में लोजपा को भले एक ही सीट मिली थी, लेकिन माना जाता है कि जदयू को लोजपा के प्रत्याशी के कारण काफी नुकसान उठाना पड़ा।
जदयू राज्य में तीसरे नंबर की पार्टी बन गई। हालांकि इसका लाभ सीधे लाभ विपक्षी दलों के महाठबंधन को हुआ।
वैसे, कहा जा रहा है कि इस उपचुनाव के नतीजे न केवल चिराग के राजनीतिक भविष्य और प्रदेश की राजनीति में उनकी हैसियत को भी तय कर देंगे, बल्कि उनके चाचा पशुपति कुमार पारस के लिए भी यह चुनाव अहम है।
पारस सार्वजनिक मंचों से कहते रहते हैं कि वे रामविलास के राजनीति के उतराधिकारी हैं। ऐसे में चुनाव परिणाम उनकी सियासी हैसियत भी तय कर देगा।
बहरहाल, दो सीटों पर हो रहा चुनाव भले ही उपचुनाव हो, लेकिन इन चाचा, भतीजा के लिए यह चुनाव फाईनल से कम नहीं है। अब देखने वाली बात होगी दोनों एक-दूसरे के प्रति कैसे मोर्चा संभालते हैं और रामविलास पासवान के समर्थकों को कौन कितना अपने पाले में ला पाता है।
उल्लेखनीय है कि लोजपा (रामविलास) ने तारापुर विधानसभा क्षेत्र से जहां चंदन सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया है वहीं कुशेश्ववरस्थान क्षेत्र से अंजू देवी पार्टी की प्रत्याशी होंगी।
--आईएएनएस
एमएनपी/आरजेएस
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