आर्थिक समीक्षा में पेश की गई 'सब चंगा सी' की तस्वीर, वास्तविकता में हर मोर्चे पर सरकार फेलः कांग्रेस
गौरव गोगोई ने कहा कि आर्थिक सर्वे बड़ी-बड़ी कंपनियों का मुनाफा बढ़ता हुआ दिखा रहा है, अगर ऐसा है तो कंपनियों में नौकरियां कितने लोगों को मिली हैं? भारत का युवा रूस की सेना में भर्ती क्यों हो रहा है? अगर इकॉनमी अच्छी होती तो बाहर के लोग यहां आ रहे होते।
कांग्रेस ने सोमवार को आरोप लगाया कि सरकार की ओर से पेश आर्थिक समीक्षा में ‘सब ठीक है वाली ‘गुलाबी तस्वीर’ पेश करने का प्रयास किया गया है, जबकि देश की आर्थिक स्थिति निराशाजनक है। कांग्रेस ने यह भी कहा कि उम्मीद है कि मंगलवार को पेश होने वाला बजट देश की वास्तविकताओं के अनुरूप होगा। दरअसल बजट से पहले सरकार की ओर से पेश आर्थिक समीक्षा में चालू वित्त वर्ष में आर्थिक संवृद्धि दर 6.5 से 7.0 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया गया है। साथ ही इसमें अर्थव्यवस्था में अधिक नौकरियां सृजित करने की जरूरत के साथ निर्यात को बढ़ावा देने के लिए चीन से अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) का समर्थन किया गया है।
लोकसभा में कांग्रेस के उपनेता गौरव गोगोई ने कहा कि नरेंद्र मोदी के दो हथियार हैं- भय और भ्रम। ये आर्थिक सर्वेक्षण उसी भ्रम का एक उदाहरण है कि 'सब चंगा सी'। आर्थिक सर्वे बड़ी-बड़ी कंपनियों का मुनाफा बढ़ता हुआ दिखा रहा है, अगर ऐसा है तो कंपनियों में नौकरियां कितने लोगों को मिली हैं? ये सर्वे अगर इतना ही अच्छा है, तो भारत का युवा रूस की सेना में भर्ती क्यों हो रहा है? अगर इकॉनमी अच्छी होती तो बाहर के लोग यहां आ रहे होते, लेकिन आज इसके उलट पलायन हो रहा है।
गौरव गोगोई ने कहा कि आज सरकार के द्वारा इकॉनोमिक सर्वे प्रकाशित हुआ है, लेकिन यह इकोनॉमिक सर्वे जमीनी हालात से बिल्कुल परे है। इकोनॉमिक सर्वे में सरकार का पक्ष 'सब चंगा सी' जैसा है। जबकि असलियत में लोगों की हालात ठीक नहीं है। सरकार आज भी महंगाई को नियंत्रित नहीं कर पाई है। अमीर को महंगाई से फर्क नहीं पड़ता है, लेकिन गरीब-मध्यम वर्ग के लिए यह एक बड़ी समस्या है। आज गरीब और मध्यम वर्ग को 'मोदी मतलब महंगाई' दिखता है। महंगाई कब कम होगी, इसका जवाब इकोनॉमिक सर्वे में नहीं मिलता। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जी को तो महंगाई दिखती ही नहीं।
गौरव गोगोई ने कहा कि जिन क्षेत्रों में भारतीयों को सबसे ज्यादा रोजगार मिलता है, आज उन क्षेत्रों के हालात- टेक्सटाइल को लेकर सरकार की योजना विफल हो चुकी है। बांग्लादेश और वियतनाम जैसे देश हम से आगे निकल चुके हैं? सरकार 'मेक इन इंडिया' की बात करती है, लेकिन उन्हें चाइनीज टेक्नीशियन का वीजा चाहिए। सरकार ऐसी अर्थव्यवस्था बना रही है, जहां प्रोडक्ट मेड इन इंडिया हैं, लेकिन वो मेड बाय चाइनीज हैं। हमारा व्यापार घाटा बढ़ता जा रहा है। हर सेक्टर में सरकार विफल है और छोटा दुकानदार मर रहा है। आने वाले समय में सूरत, राजकोट और अहमदाबाद जैसे शहरों के यही छोटे दुकानदार बीजेपी को करारा जवाब देंगे।
वहीं काग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने एक बयान में कहा, ‘‘2023-24 का आर्थिक सर्वेक्षण, जो कि कल पेश होने वाले बजट से पहले जारी किया गया, एक ऐसा दस्तावेज है, जिसे तैयार करने के लिए ‘नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री’ के ‘‘स्पिन डॉक्टर्स’’ को कड़ी मशक़्क़त करनी पड़ी होगी। इसमें अर्थव्यवस्था की "सब ठीक है" वाली गुलाबी तस्वीर पेश करने की पूरी कोशिश की गई है। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि आर्थिक स्थिति इतनी निराशाजनक है।’’
उन्होंने दावा किया, ‘‘खाद्य पदार्थों की महंगाई अनियंत्रित बनी हुई है, जो प्रति वर्ष लगभग 10 प्रतिशत पर है... कोविड के बाद आर्थिक सुधार बेहद असमान रहा है। ग्रामीण भारत पीछे छूट गया है... आर्थिक सर्वेक्षण में मोदी सरकार की किसान विरोधी मानसिकता का बखान है। बिना तैयारी के और अनुचित ढंग से लगाए गए निर्यात प्रतिबंधों एवं सस्ते आयात में बेतहाशा वृद्धि के साथ आयात-निर्यात नीति का दुरुपयोग, किसानों की आय को कमज़ोर करने के लिए चिह्नित किया गया है।’’
कांग्रेस नेता ने कहा, ‘‘व्यापार नीति की विफलता ने भी भारत की विनिर्माण क्षमताओं को नष्ट करने में योगदान दिया है। 2014 के बाद से, चीन से आयात का प्रतिशत कुल आयात के 11 प्रतिशत से बढ़कर 16 प्रतिशत हो गया है। इन आयातों की अनियंत्रित डंपिंग ने घरेलू एमएसएमई को स्पर्धा से बाहर कर दिया है, जिससे उन्हें बंद करना पड़ रहा है।’’ उन्होंने दावा किया कि आर्थिक सर्वेक्षण भी निजी निवेश उत्पन्न करने के संबंध में केंद्र सरकार की नीति निर्धारण की विफलता को स्वीकार करता है।
रमेश ने कहा, ‘‘कॉरपोरेट क्षेत्र के लिए मोदी सरकार का दृष्टिकोण बेहद उदार रहा है। 1.5 लाख करोड़ रुपये के कॉरपोरेट कर में कटौती की गई और दो लाख करोड़ रुपये की ‘पीएलआई’। लेकिन सरकार ने यह उदारता बदले में निवेश या नियुक्ति को प्रोत्साहित किए बिना दिखाई है।’’उन्होंने दावा कि आर्थिक सर्वेक्षण बेरोज़गारी की स्थिति को स्वीकार करने के लिए मजबूर है, जो मोदी सरकार की सबसे बड़ी विफलता है।
रमेश के मुताबिक, ‘‘आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि हमें अगले 20 वर्षों तक हर साल लगभग 80 लाख नौकरियां पैदा करनी होंगी। 80 लाख नौकरी के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सरकार की बड़ी आर्थिक रणनीति में एक निश्चित बदलाव की आवश्यकता है।’’ रमेश ने कहा, ‘‘भारत कई वर्षों में अपनी सबसे अनिश्चित और कठिन आर्थिक स्थिति में है। आर्थिक सर्वेक्षण अर्थव्यवस्था का मनमाना दृश्य प्रस्तुत कर सकता है, लेकिन हमें उम्मीद है कि कल का बजट देश की वास्तविकताओं के अनुरूप होगा।’’
उन्होंने कहा, ‘‘यदि वित्त मंत्रालय अब भी विचारों की तलाश में है, तो हम उनका भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के न्याय पत्र 2024 की ओर ध्यान दिलाना चाहेंगे। प्रशिक्षुता का अधिकार, न्यूनतम वेतन में बढ़ोतरी - 400 रुपये प्रति दिन, कर आतंकवाद का अंत और आंगनबाड़ियों जैसी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का विस्तार समय की मांग है।’’
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