वापस जमीन पर आने लगा है धुएं में ‘उड़ता पंजाब’, रंग लाने लगी है नारकोटिक्स एनोनिमस की मुहिम

नारकोटिक्स एनोनिमस की मुहिम यकीनन विराट अंधेरे में एक भरोसेमंद और जरूरी रोशनी की मानिंद है। वैसे, पंजाब में कई अन्य सरकारी, गैर सरकारी संगठन, धार्मिक संस्थाएं, डेरे और कतिपय एनजीओ भी नशे के खात्मे के लिए काम कर रहे हैं।

फोटो: सोशल मीडिया
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अमरीक

‘उड़ता पंजाब’ के नाम से बदनाम और नशों में तबाह हो रहे इस सरहदी सूबे में कुछ ऐसा भी हो रहा है जो बेतहाशा राहत देने वाला और भविष्य में अपने आप में एक बड़ी ‘सुधार मुहिम’ की मिसाल बन सकता है। आतंकवाद के काले दौर के बाद पंजाब में नारको टेररिज्म ने पांव पसारे। धीरे-धीरे यह राज्य के एक-एक शहर, कस्बे और गांव तक पसर गया और जड़े जमा ली। आलम यह हो गया कि बेहतर खानपान के लिए विश्व प्रसिद्ध यह राज्य मौत के नशे के अंधे कुएं में तब्दील हो गया, जिसमें ना जाने कितनी जिंदगियां बेमौत मारी गईं। इस सिलसिले में बेहद सुकून देने वाली सकारात्मक खबर यह है की विश्व स्तर पर चलने वाली नारकोटिक्स एनोनिमस लहर अब गुपचुप ढंग से पंजाब में दस्तक दे चुकी है।

नारकोटिक्स एनोनिमस लहर की बाबत भारतीय और पंजाबी शायद कम जानते हैं। इसके तहत खुद नशा करने वाला अपने मनोबल पर सदा के लिए नशा छोड़ कर दूसरे नशेड़ियों को इसके लिए प्रेरित करता है कि वे नशा छोड़ें और आगे अपने जैसे कोई दूसरे लोगों से नशा छुड़वाएं।

नारकोटिक्स एनोनिमस मुहिम का आगाज 50 के दशक में संयुक्त राज्य अमेरिका से हुआ था और संस्थापक थे जिम्मी कन्नौन। तब से यह मुहिम आगे बढ़ती गई और इसने दुनिया भर में करोड़ों लोगों को अब तक नशे की नारकीय दलदल से बाहर निकाला है। पंजाब में इसका आना और फैलना किसी नियामत से कम नहीं। संभवत पंजाब देश का पहला राज्य है जहां यह मुहिम शुरू हुई है। राज्य में नारकोटिक्स एनोनिमस लहर उन लगभग 600 नौजवानों के दम पर परवान चढ रही है, जिन्होंने बगैर डॉक्टर और दवाइयों के ड्रग्स को अलविदा कहा। फिर भी गुपचुप ढंग से दूसरों को बचाने में लग गए।


नारकोटिक्स एनोनिमस की अवधारणा की बुनियाद ही यही है कि बगैर चिकित्सा सहायता के, सिर्फ मनोबल के दम पर जानलेवा नशों का सदा के लिए त्याग किया जाए। राज्य में लगभग 25 शहरों और 40 कस्बों में इस मुहिम की सुखद बयार बह रही है। सारा काम किसी सरकारी-गैरसरकारी सहयोग के बगैर और प्रचार से एकदम दूर होकर किया जा रहा है। इसके मनोवैज्ञानिक और वैज्ञानिक पहलू भी हैं। इस मुहिम को पंजाब में करीब से देखने वाले एक पत्रकार के मुताबिक हफ्ते में 2 दिन किसी निश्चित जगह पर नारकोटिक्स एनोनिमस लहर से जुड़े सदस्यों की मीटिंग होती है। जो नशा रहित हो जाते हैं, वे अपने अपने शहरों में इसी मानिंद मीटिंगों का सिलसिला शुरू करते हैं। जानकारी के मुताबिक, बठिंडा शहर में कुछ अरसे से ‘रोड टू रिकवरी’ ग्रुप चल रहा है। अब तक 60 नशेबाज नशा छोड़ चुके हैं। बठिंडा शहर की बगल में कस्बा रामामंडी है। यहां इसी तर्ज पर ‘प्रभु की इच्छा’ नाम का ग्रुप चल रहा है जिसके तहत 50 से ज्यादा नौजवानों ने सदा के लिए इच्छाशक्ति के दम पर नशे का त्याग करके नई जिंदगी हासिल की और अब डोर टू डोर नशेड़ियों को तलाश करके उनकी जिंदगी सवारने की कोशिश कर रहे हैं। इसी तरह मोगा में ‘जियो जिंदगी’ समूह बीते 8 माह से चल रहा है, जिसने फिलहाल 32 नौजवानों को नशों से सदा के लिए दूर किया और इनमें दो किशोरियों और 3 युवा महिलाएं शामिल हैं। फाजिल्का में ‘मीट टू लाइफ’ ग्रुप नशा छुड़वा रहा है।

गौरतलब है कि नारकोटिक्स एनोनिमस मुहिम की सबसे बड़ी एकमात्र शर्त किसी भी तरह की प्रशंसा और प्रचार से पूरी तरह दूर रहना है। पंजाब में कार्यरत इसके एक सदस्य ने बताया कि पहले उसने चंडीगढ़ में कार्यरत एक ग्रुप में रहकर खुद नशा छोड़ा, फिर बठिंडा में ग्रुप चलाया, जिसके बेहद मुफीद नतीजे हासिल हुए हैं। नशा छोड़ने वाले सदस्य खुद नशा छोड़ने के बाद नशा करने वालों की शिनाख्त अथवा तलाश करते हैं। फिर उनके साथ बाकायदा बैठकें करके अपने अनुभव साझा करते हैं। नए सदस्यों को पूरा मान सम्मान मिलता है। सबसे पहले उनकी इच्छा शक्ति मजबूत की जाती है। ‘शेयरिंग और केयरिंग’ ही इसका मुख्य उद्देश्य है। एक वरिष्ठ सदस्य ने बताया कि एक दूसरे को उम्मीद की राह दिखाई जाती है। शिरकत करने वाले हर सदस्य को कार्यक्रम की 12 परंपराएं निभानी पड़ती हैं। इन सबका एक चार्ट दिया जाता है।


शहीद भगत सिंह नशा विरोधी मंच तलवंडी साबो के संचालक मेजर सिंह कम कमालू कहते हैं “दरअसल समाज जब नशा करने वालों को दुत्कार देता है तो वे और ज्यादा दलदल में फंसते चले जाते हैं। उन्हें अकेली चिकित्सा सहायता इस दलदल से नहीं निकाल सकती, ऐसी प्रणाली ही निकाल सकती है।” नारकोटिक्स एनोनिमस लहर के तहत पंजाब में अलग-अलग नामों के साथ कई ग्रुप सक्रिय हैं। उद्देश्य सबका एक है। राज्य को नशे के कोढ़ से मुक्त करवाना। मोड़ मंडी में इसी हफ्ते नया ग्रुप शुरू हुआ है। जबकि मानसा में होप एंड सट्रेब, लुधियाना में दो जगह ओपन हार्ट ग्रुप, मुख्तसर में अलाइव एंड फ्री, अमृतसर में विश्वास ग्रुप, और महलपुर में गुड कंपनी ग्रुप अच्छे और अपेक्षित नतीजों के साथ चल रहे हैं। इसी तरह ऐसे कुछ ग्रुप कोटकपूरा, मलोट, मोगा, फतेहगढ़ साहिब, पटियाला, पंजतूर, बटाला, सरहिंद, बाजा खाना, सरदूलगढ़ और मोहाली में बखूबी काम कर रहे हैं।

पंजाब की बदलती तस्वीर का एक आईना है जो संसार भर में नशों के चलते बेहद ज्यादा बदनाम है। एम्स की रिपोर्ट के बाद राज्य सरकार ने भी बाकायदा मान लिया है कि नशों की बाबत हालात तमाम सख्ती के बावजूद बेहद गंभीर और संगीन हैं। खुद सरकारी आंकड़े बताते हैं कि बीते 5 साल में 609 नौजवान ड्रग्स के चलते मौत के हवाले हुए। साल 2014 में 186, 2015 में 144, 2016 में 138, 2017 मैं 111 और 2018 मैं 114 जिंदगीयां नशे के जरिए काल में समा गई। जारी साल यानी 2019 में इन पंक्तियों को लिखने तक 19 मौतें सरकारी रिकार्डो में दर्ज हैं। बेशक गैर सरकारी आंकड़ा इससे कहीं ज्यादा है। मुख्यमंत्री से लेकर आला पुलिस अफसर तक मांगते हैं की युद्ध स्तर पर नीति बनाकर ही पंजाब से नशे का पूरी तरह सफाया संभव है।


ऐसे में नारकोटिक्स एनोनिमस की मुहिम यकीनन विराट अंधेरे में एक भरोसेमंद और जरूरी रोशनी की मानिंद है। वैसे, पंजाब में कई अन्य सरकारी, गैर सरकारी संगठन, धार्मिक संस्थाएं, डेरे और कतिपय एनजीओ भी नशे के खात्मे के लिए काम कर रहे हैं। हालांकि वे प्रचार के ज्यादा करीब रहने के चलते नशे के आदी नौजवानों के उतना करीब नहीं आ पाते। इसलिए भी कि नशे के आदी लड़के लड़कियां नशा छोड़ने की इच्छा के बावजूद सामने आने को तैयार नहीं होते। गोपनीयता उनकी पहली और बड़ी शर्त होती है, जिसे कम ही संस्थाएं पूरा कर पाती हैं। जबकि नारकोटिक्स एनोनिमस मुहिम पूरी तरह से गोपनीयता की पुख्ता नींव पर खड़ी है और इसके चलते भी इसे बेहतर नतीजे हासिल हो रहे हैं। यह भी बता दें कि पंजाब जितना नशों के चलते बदनाम है, ठीक उतनी ही बदतर हालत प्राइवेट नशा मुक्ति केंद्रों की है। वहां की लूट खसोट और अराजकता की खबरें मीडिया में प्रमुखता से आती रहती हैं। बीते 21 सितंबर को राज्य सरकार ने ऐसे 18 नशा मुक्ति केंद्रों के लाइसेंस सस्पेंड कर दिए, जिनमें गंभीर विसंगतियां पाई गई थी और जो नशा छुड़ाने के नाम पर जबरदस्त शोषण कर रहे थे। नशा छुड़ाने के नाम पर नशेड़ी को दाखिल करके जरूरी सुविधाओं और देखभाल से तो वंचित रखा ही जाता था, दवाइयां भी सब्सटेंडर्ड दी जाती थी। जो नशे से भी ज्यादा घातक हैं।

पंजाब स्वास्थ्य विभाग की निदेशक अवनीत कौर कहती हैं, “दवाइयों की गुणवत्ता को सुनिश्चित करना नशा मुक्ति केंद्रों की जिम्मेवारी है। यह केंद्र इन मानकों पर खरे नहीं उतरे और दवाओं के सैंपल रिपोर्ट के आधार पर इनके लाइसेंस सस्पेंड किए गए हैं।” जो हो, नारकोटिक्स एनोनिमस की पंजाब में दस्तक ऐसे आलम में अति अपरिहार्य है।

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Published: 27 Sep 2019, 3:36 PM