कश्मीर फाइल्स ने जीता नकली दादासाहेब फाल्के अवार्ड, लीजेंड के नाती ने पैसे लेकर पुरस्कार बांटने का आरोप लगाया
भारत सरकार की तरफ से दादा साहब फाल्के पुरस्कार के नाम से दिया जाने वाला अवॉर्ड सबसे प्रतिष्ठित और सबसे पुराना है, जिसकी शुरुआत साल 1969 में हुई थी। यह पुरस्कार भारतीय सिनेमा के जनक कहे जाने वाले दादासाहेब फाल्के की याद और उनके सम्मान में दिया जाता है।
मायानगरी मुंबई में हाल में दादासाहेब फाल्के इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल अवार्ड 2023 का आयोजन किया गया, जिसमें बॉलीवुड के कई दिग्गज सितारों ने शिरकत की। अवार्ड समारोह में जहां आलिया भट्ट और उनके पति रणबीर कपूर को बेस्ट एक्टर और एक्ट्रेस का अवॉर्ड मिला, वहीं फिल्म आऱआरआर को इंटरनेशनल फिल्म ऑफ द ईयर का अवॉर्ड दिया गया। सबसे खास बात ये रही कि इस पुरस्कार समारोह में विवेक आग्निहोत्री की फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ को बेस्ट फिल्म का अवार्ड दिया गया।
इसमें और दादासाहेब फाल्के अवार्ड में जमीन आसमान का फर्क
लेकिन दादासाहेब फाल्के के नाती चंद्रशेखर पुसालकर ने इस अवॉर्ड समारोह पर ही सवाल उठाते हुए नाराजगी जाहिर की है। उनका कहना है कि दादा साहेब फाल्के पुरस्कार भारतीय सिनेमा के लिए सबसे बड़ा राष्ट्रीय सम्मान है, लेकिन मुंबई में हाल में जिस संस्थान ने इस नाम से अवार्ड बांटे हैं, वह पैसे लेकर उन लोगों को अवॉर्ड दे रही है, जो उस काबिल भी नहीं हैं। उन्होंने कहा कि यह संस्थान दादा साहेब फाल्के इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल अवार्ड्स के नाम से है और इसमें और दादा साहेब फाल्के अवार्ड में जमीन आसमान का फर्क है।
'पैसे लेकर नाकाबिल लोगों को दिए जा रहे अवार्ड'
दादासाहेब फाल्के के नाती चंद्रशेखर पुसालकर ने इस अवार्ड पर कहा कि ‘मुझे मुंबई में हुए दादा साहेब फाल्के इंटरनेशनल अवार्ड्स में खास मेहमान के तौर पर बहुत आमंत्रित किया गया। लेकिन मैंने देखा कि पैसे लेकर ऐसे लोगों को अवार्ड दिए जा रहे हैं जो इस अवार्ड के काबिल भी नहीं हैं। यह सब जब मैंने देखा तो ऐसे किसी भी अवार्ड समारोह में जाना बंद कर दिया। एक बार मराठी की एक मशहूर अभिनेत्री ने फोन कर मुझे बताया कि अमेरिका में उनसे कोई दादा साहेब फाल्के अवार्ड का आयोजक मिला है और अवार्ड देने के लिए दस लाख रुपये की मांग कर रहा है। मैं तो यह सुनकर हैरान रह गया। मुझे काफी दुख हुआ।
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अजय ब्रह्मात्मज ने की अवार्ड को बंद कराने की अपील
इस पूरे मामले पर जाने-माने फिल्म आलोचक अजय ब्रह्मात्मज ने भी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने ट्वीट में लिखा कि मजेदार और कड़वी सच्चाई है कि दादा साहब फाल्के के नाम से जारी यह अवॉर्ड फिल्म बिरादरी के सदस्यों द्वारा भारत सरकार द्वारा दिए जाने वाले दादा साहब फाल्के अवार्ड के समकक्ष देखा जाने लगा है। भारत सरकार और सूचना प्रसारण मंत्रालय से मेरा आग्रह है कि इसे जल्द से जल्द बंद किया जाए। उन्होंने वरुण धवन को लेकर लिखा कि ‘सॉरी वरुण धवन यह बोगस अवार्ड है।’
क्या है असली-नकली का अंतर
गौरतलब है कि दादा साहब फाल्के पुरस्कार के नाम से चर्चित अवॉर्ड सबसे प्रतिष्ठित और सबसे पुराना है, जो भारत सरकार की तरफ से दिया जाता है, जिसकी शुरुआत साल 1969 में हुई थी। यह पुरस्कार भारतीय सिनेमा के जनक कहे जाने वाले दादासाहेब फाल्के की याद और उनके सम्मान में दिया जाता है। वहीं दादासाहेब फाल्के इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल अवार्ड के नाम से आजकर दिए जा रहे पुरस्कार की शुरुआत साल 2012 में एक प्राइवेट संस्थान द्वारा की गई थी। संस्थान का कहना है कि इस पुरस्कार का उद्देश्य युवा, स्वतंत्र और प्रोफेशनल फिल्म निर्माताओं के काम को सराहना है। लेकिन इस अवार्ड पर अब सवाल उठने लगे हैं।
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