'राफेल स्कैम' का भांडाफोड़ करने वाले मीडियापार्ट के पत्रकार का इंटरव्यू: भारत और फ्रांस में जांच के लिए पर्याप्त सबूत
राफेल सौदे में भ्रष्टाचार का भांडाफोड़ करने वाले फ्रांसीसी पोर्टल मीडियापार्ट के पत्रकार यान फिलिपिन का कहना है कि उनके पास इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि इस सौदे में भ्रष्टाचार हुआ और इस आधार पर भारत और फ्रांस में इस मामले की जांच होनी चाहिए।
पूरा इंटरव्यू इस वीडियो में देखें:
राफेल सौदे में भ्रष्टाचार हुआ था, इस बात के पक्के सबूत हैं और इसकी जांच के लिए पर्याप्त आधार हैं। यह कहना है फ्रांस की पत्रिका मीडियापार्ट के पत्रकार यान फिलिपिन का, जिन्होंने राफेल डील में भ्रष्टाचार पर खोजी रपट लिखी है।
वरिष्ठ पत्रकार आशीस रे के साथ एक वीडियो इंटरव्यू में फिलिपिन ने पैरिस में संकेत दिए फ्रांस में इस मामले की जांच की शुरुआत हो सकती है। उन्होंने कहा मीडियापार्ट के पास जो दस्तावेजी सबूत हैं उसके आधार पर साफ होता है कि दसॉल्ट एविएशन ने भारतीय एजेंट सुशेन गुप्ता को 22 मिलियन यूरो रिश्वत दी थी। फिलिन ने दावा किया कि पैसे का बड़ा हिस्सा फर्जी कंपनियों के नाम सिंगापुर और मारीशस में ट्रासंफर किया गया।
ध्यान रहे कि फ्रांसीसी कानून के मुताबिक कंपनियों को विदेशी एजेंटों की सेवाएं लेने की इजाजत है, और गुप्ता परिवार तीन पीढ़ियों से विभिन्न विदेशी कंपनियों का प्रतिनिधित्व करता रहा है। लेकिन, फ्रांसीसी कानून में ऐसे एजेंट्स को रिश्वत देना अपराध घोषित है। ऐसे में भारतीय एजेंट को दिए पैसे की कड़ियों की जांच हो सकती है और इस बात की भी जांच हो सकती है कि आखिर यह पैसा दिया किसलिए गया था।
दूसरी तरफ भारत में एजेंसियों को इस बात की जांच करनी होगी कि आखिर रक्षा मंत्रालय के संवेदनशील और गोपनीय दस्तावेज एजेंट के पास कैसे पहुंचे। फिलिपिन ने कहा कि, भारतीय प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने माना है कि गुप्ता के पास से राफेल सौदे से जुड़े दस्तावेज बरामद हुए थे। लेकिन ईडी के पास यह दस्तावेज बीते तीन साल से हैं फिर भी अभी तक इसकी जांच नहीं हुई है और न ही गुप्ता पर गोपनीयता कानून के तहत कोई कार्रवाई हुई है।
आशीस रे के साथ बातचीत में मीडियापार्ट के फिलिपिन ने कहा कि उन्होंने इस बारे में ईडी, भारत के रक्षा मंत्रालय, दसॉल्ट एविएशन और फ्रांस सरकार से कुछ सवाल पूछे थे, लेकिन उन्हें इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।
फिलिपिन के साथ बातचीत में जो मुख्य बातें सामने आती हैं वह इस तरह हैं:
राफेल सौदे में दसॉल्ट के ऑफसेट पार्टनर के तौर पर हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड को हटाकर अनिल अंबानी की रिलायंस को पार्टनर बनाना नरेंद्र मोदी समझौते की अहम शर्त के रूप में सामने रखा था।
दसॉल्ट एविएशन के भारतीय एजेंट सुशेल गुप्ता को राफेल लड़ाकू विमान के 50 मॉडल बनाने के लिए दसॉल्ट ने एक मिलियन यूरो दिए थे जो भारतीय अधिकारियों को दिए जाने थे।
फ्रांसीसी अधिकारियों द्वारा दसॉल्ट के ऑडिट के दौरान एविएशन कंपनी इस बात के सबूत नहीं पेश कर पाई कि जिस काम के लिए गुप्ता को एक मिलियन यूरो दिए गए वह मॉडल कहां हैं और उनके फोटोग्राफ तक दसॉल्ट पेश नहीं कर सका।
फ्रांसीसी कानून में एजेंटों को फीस देने की तो इजाजत है, लेकिन इन एजेंटो के माध्यम से रिश्वत नहीं दी जा सकती।
भारत के ईडी ने मई 2019 में सुशेन गुप्ता के खिलाफ अगस्ता वेस्टलैंड केस में चार्जशीट दाखिल की, जिसमें कहा गया कि गुप्ता पास से राफेल सौदे से जुड़े गोपनीय दस्तावेज मिले हैं जिसमें राफेल सौदे के बारे में भारत के रुख और रणनीति के बारे में जानकारियां हैं। लेकिन ईडी ने सुशेल गुप्ता पर इन अति गोपनीय दस्तावेजों के लिए कोई रोप नहीं लगाया, जबकि उसके पास दस्तावेजी सबूत मौजूद थे।
मोदी सरकार ने इस सौदे को करने वाली टीम को दरकिनार कल फ्रांसीसी पक्ष के सामने समर्पण करते हुए सौदे के एक महत्वपूर्ण शर्त को हटा दिया जिसमें स्पष्ट था कि इसमें भ्रष्टाचार नहीं होगा और भारतीय पक्ष के हितों की रक्षा होगी।
मोदी सरकार ने सौदा करने वाली टीम के उस पक्ष को भी दरकिनार कर दिया जिसमें 36 राफेल विमानों की कीमत 5 अरब यूरो तय की गई थी, मोदी सरकार ने इस कीमत को बढ़ाकर 7.8 अरब यूरो कर दिया।
मीडियापार्ट के पास इस बाते के पूरे या आंशिक दस्तावेजी सबूत हैं कि सुशेल गुप्ता को 2014 से अब तक दसॉल्ट और थेल्स ने 22 मिलियन यूरो का भुगतान किया।
मीडियापार्ट ने कहा है उसने इस मामले की दोबारा जांच शुरु करने के लिए पर्याप्त सामग्री सौंपी है जिसके आधार पर भारत और फ्रांस राफेल सौदे से संबंधित जांच शुरु की जा सकती है।
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