गुजरात: गिफ्ट सिटी का हाल नौ दिन चले अढ़ाई कोस जैसा
सरकार ने मुंबई से हीरा कारोबार को सूरत ले जाने के लिए जिस तरह जी-तोड़ कोशिशें की हैं, उसका जमीन पर कोई असर नहीं दिख रहा। उल्टा कारोबारी भाग ही रहे हैं।
सूरत को झटका
भारत की सबसे बड़ी हीरा कंपनियों में से एक है ‘किरण जेम्स’। यह कंपनी नवंबर, 2023 में धूम-धड़ाके के साथ खुली सूरत डायमंड बोर्स की पहली और व्यावहारिक रूप से अकेली ऑपरेटर थी। अब यह कंपनी अपना बोरिया-बिस्तर समेटकर 15 ट्रक रत्नों और आभूषणों के साथ वापस मुंबई लौट गई है।
2012 में जब पहली बार सूरत डायमंड बोर्स की बात उठी तो हीरा उद्योग की बड़ी शख्सियत वल्लभभाई लखानी ने बड़े उत्साह के साथ इसका समर्थन किया और फिर उन्होंने बोर्स के पास ही अपने खर्चे से 1,200 फ्लैट वाला परिसर तैयार किया ताकि उनके कर्मचारी वहां रह सकें। पिछले साल नवंबर तक उन्होंने बड़ी संख्या में अपने कर्मचारियों को उस परिसर में स्थानांतरित भी कर दिया था, हालांकि बहुत लोगों ने मुंबई छोड़ने से इनकार कर दिया और कंपनी को स्थानीय स्तर पर लोगों की भर्ती में खासी दिक्कतें भी हुईं।
हीरा कारोबार से जुड़ी अन्य बड़ी कंपनियों ने थोड़ा इंतजार करने का विकल्प चुना जबकि अच्छी-खासी संख्या ऐसे छोटे कारोबारियों की थी जिन्होंने वल्लभभाई लखानी के उत्साह को देखते हुए सूरत एक्सचेंज में वाणिज्यिक जगह खरीद ली। लेकिन उनमें भी बड़ी संख्या ऐसे लोगों की थी जिन्होंने अपना कारोबार वहां शिफ्ट नहीं किया और सही समय का इंतजार करना बेहतर समझा; लेकिन अब जब लखानी ने सूरत से मुंह मोड़ लिया है, तो इन लोगों के निकट भविष्य में सूरत शिफ्ट होने की संभावना खत्म ही हो गई है।
कहते हैं, बुरी खबर अकेले नहीं आती। किरण जेम्स के सूरत को अलविदा करने की खबर के तुरंत बाद सूरत डायमंड बोर्स की प्रबंध समिति के अध्यक्ष नागजीभाई सकारिया के इस्तीफे की खबर आई। रिपोर्टों से पता चलता है कि लखानी के कारोबार में गिरावट आ गई है और यह मुंबई के मुकाबले 20 फीसद तक गिर गया है। ‘डिजिटल इंडिया’ और कथित ‘गुजरात मॉडल’ के बावजूद खराब अंतरराष्ट्रीय डिजिटल कनेक्टिविटी इसकी अहम वजह रही। सूरत में जल्दबाजी में उद्घाटन किए गए अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का बहुत कम उपयोग हुआ है क्योंकि एयरलाइंस पड़ोसी अहमदाबाद तक उड़ान भरना पसंद करती हैं। सूरत में अधिक आधुनिक सुविधाओं के दावे के बावजूद कार्गो की हैंडलिंग के मामले में मुंबई बंदरगाह से उसका कोई मुकाबला नहीं।
वैसे, इसमें हैरानी की बात नहीं। मुंबई में भारत बोर्स में भी पहले कारोबारी को आने में 15 साल लग गए थे क्योंकि हीरा कारोबारी सुविधा और अंधविश्वास- दोनों की वजह से ओपेरा हाउस छोड़ना नहीं चाहते थे। वे ओपेरा हाउस को अपने लिए भाग्यशाली मानते थे। उस लिहाज से सूरत डायमंड बोर्स को भी निवेशकों का भरोसा पाने में वक्त तो लगेगा ही। साफ है, हीरा कारोबार को चमक देने के लिए एक चमकदार परिसर ही काफी नहीं।
गिफ्ट सिटी की दिक्कतें
गुजरात इंटरनेशनल फाइनेंस एंड टेक (गिफ्ट) सिटी की भी हालत खस्ता है। सिंगापुर के एक राजनयिक ने इस दावे से प्रभावित होकर कि गिफ्ट सिटी जल्द ही एशिया के सबसे बड़े वित्तीय केन्द्र के रूप में सिंगापुर को हरा देगी, चुपचाप गिफ्ट सिटी का दौरा किया और अपनी वापसी पर चुटकी लेते हुए कहा कि यह शहर दिन में भी पूरी तरह सक्रिय नहीं रहता और रात में तो जैसे इसके प्राण ही निकल जाते हैं।
‘डेड बाई नाईट’ वाली टिप्पणी लोगों को नागवार गुजरी और इस नए साल में गुजरात के अधिकारियों ने शहर में ‘नाइट लाइफ’ शुरू करने के लिए शराब की बिक्री की इजाजत दे दी। लेकिन इस ओर ध्यान नहीं दिया कि मुंबई या सिंगापुर में नाइट लाइफ की जीवंतता केवल शराब की बिक्री के कारण नहीं बल्कि कई अन्य वजहों से है।
6.2 करोड़ वर्गफुट निर्मित क्षेत्र और पांच लाख प्रत्यक्ष नौकरियों के वादे के साथ लगभग 900 एकड़ भूमि पर स्थापित गिफ्ट सिटी बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों द्वारा नियोजित लगभग 20,000 श्रमिकों के साथ बहुत अधिक निवेशकों को आकर्षित करने में विफल रही है। एक आत्मनिर्भर शहर के रूप में परिकल्पित इसकी इमारतें अब भी निर्माणाधीन या खाली हैं। मॉल, पेट्रोल पंप और आवासीय परिसरों के लिए आवंटित भूखंड भी खाली हैं और केवल एक हाउसिंग सोसाइटी चालू है। उम्मीद थी कि यह सिटी बड़ी संख्या में विदेशियों को लुभाएगी, लेकिन अब तक यह गलत ही साबित हुई है।
गिफ्ट सिटी अभी मुंबई के बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स के बराबर पहुंचने के लिए संघर्ष ही कर रही है। बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स ‘आत्मनिर्भर’ होने का दिखावा नहीं करता लेकिन यह कहीं ज्यादा कारोबार करता है और गिफ्ट सिटी की तुलना में कहीं ज्यादा अंतरराष्ट्रीय कंपनियों को आकर्षित करता है। इसे देखते हुए गुजरात सरकार ने गिफ्ट सिटी में धूम-धड़ाका करके इसकी ओर लोगों को लुभाने का सोचा और इसी के तहत फिल्मफेयर पुरस्कारों के आयोजकों को गिफ्ट सिटी में अपना सालाना कार्यक्रम आयोजित करने के लिए राजी किया। फिल्मफेयर पुरस्कार टाइम्स ऑफ इंडिया समूह का कार्यक्रम है जो हमेशा मुंबई में आयोजित किया जाता था; लेकिन वे इसे गिफ्ट सिटी में आयोजित करने के प्रस्ताव को ठुकरा नहीं सके। बॉलीवुड सितारे भी लाइन में लगे और हमेशा की तरह शानदार शो किया।
हालांकि फिल्मफेयर पुरस्कार गिफ्ट सिटी की नाइट लाइफ में जान डालने में सफल नहीं रहे। फिल्मी सितारों ने वहां रुकने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई और मनोरंजन के भूखे स्थानीय निवासियों, नौकरशाहों और व्यापारियों के अच्छा समय बिताने के बाद शहर रात में फिर वीरान हो गया है।
बैंक और पुलिसवालों की मिलीभगत
खुद को पुलिसकर्मी, सीबीआई अधिकारी, पीएमओ अधिकारी आदि बताने वाले घोटालेबाज राज्य के लिए नए नहीं हैं; अब जबकि प्रवर्तन निदेशालय सबसे खतरनाक केन्द्रीय एजेंसी के रूप में उभर रहा है, कुछ पुलिस अधिकारियों ने जबरन वसूली के लिए ईडी अधिकारी होने का नाटक किया।
जूनागढ़ एटीएस ने तीन पुलिस इंस्पेक्टरों- नीलेश जाजड़िया, तरल भट और एएम गोहिल के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जिसमें दावा किया गया है कि इन तीनों के पास शहर में कम-से-कम 300 बैंक खाते हैं। मामला पहली बार तब सामने आया जब केरल के एक निवासी ने अपने खाते को फ्रीज करने का कारण जानने के लिए बैंक से संपर्क किया। उन्हें बताया गया कि तीन पुलिस इंस्पेक्टरों को ऐसा करने के लिए ईडी से निर्देश मिले थे। जब उसने मामले का विवरण जानने के लिए इंस्पेक्टरों से संपर्क किया, तो उन्होंने उसके खाते से रोक हटाने के लिए पांच लाख रुपये की मांग की। जब उन्होंने गुहार लगाई कि उनके पास इतने पैसे नहीं हैं, तो उन्हें बताया गया कि जिनके खाते बंद हैं, उन्होंने अपने खातों को बहाल करने के लिए 20 लाख रुपये तक दिए हैं और वे इससे कम पर समझौता नहीं करेंगे। जांच से पता चला कि इन इंस्पेक्टरों ने फ्रीज किए गए खातों से अज्ञात खाते में पैसे भेजने का भी प्रयास किया था।
विदेशी मेहमान
राजस्थान का जोधपुर सर्दियों में मध्य एशिया से आने वाले प्रवासी हंस के लिए भी जाना जाता है जो रेगिस्तान को सफेद चादर ओढ़ा देते हैं। वहीं, दुनिया भर के उष्णकटिबंधीय और उप-उष्णकटिबंधीय इलाकों से आने वाले राजहंस हर साल मुंबई और नवी मुंबई के कुछ हिस्सों को गुलाबी चादर से ढक देते हैं। इस साल गुजरात में जामनगर के पास खिजड़िया के वेटलैंड पक्षी अभयारण्य में भूरे रंग की एक अभूतपूर्व लहर उभरी है। पक्षीविदों के मुताबिक, कई प्रजाति के प्रवासी पक्षी हर सर्दी में अभयारण्य में आते हैं लेकिन ग्रेलेग गीज को इस इलाके में इतनी बड़ी तादाद में पहले कभी नहीं देखा गया था।
अभयारण्य के अधिकारी बड़ी संख्या में आए इन मेहमानों को देखकर हैरान हैं और मंत्रमुग्ध भी। वे सोच में पड़ गए हैं कि यूरोप और उत्तरी अफ्रीका के उनके प्राकृतिक रहवासों और मध्य और पश्चिम एशिया के सामान्य शीतकालीन रूट में आखिर कैसा बदलाव आया जो उन्हें इस साल इतनी बड़ी तादाद में भारत ले आया। अभयारण्य के अधिकारी यह गुणा-भाग करने में व्यस्त हैं कि अंडे सेने के इस मौसम में इस प्रजाति के कितने पक्षी जामनगर को अपना घर बनाते हैं।
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