दिल्ली एयरपोर्ट हादसे पर मंत्री का अटपटा बहाना और सरकार को जिम्मेदारी से बचाने की कोशिश

पिछले साल दिल्ली एयरपोर्ट से करीब 7.36 करोड़ यात्रियों ने सफर किया इनसे यूजर चार्ज के नाम पर करीब 1000 करोड़ रुपए वसूले गए। तो सवाल है कि इस पैसे को अगर रखरखाव पर नहीं खर्च किया गया तो क्यों?

दिल्ली एयरपोर्ट पर हुए शुक्रवार सुबह हुए हादसे में एक कैब ड्राइवर की मौत हो गई और कम से कम 5 लोग जख्मी हुए हैं।
दिल्ली एयरपोर्ट पर हुए शुक्रवार सुबह हुए हादसे में एक कैब ड्राइवर की मौत हो गई और कम से कम 5 लोग जख्मी हुए हैं।
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ए जे प्रबल

राजधानी दिल्ली में बीती रात हुई बारिश से दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के टर्मिनल 1 की छत का एक हिस्सा ढह गया। इस हादसे में एक कैब ड्राइवर की दुखद मौत हो गई और कई लोग जख्मी हुए हैं। इस भयावह दुर्घटना ने हवाई अड्डे के रखरखाव से जुड़े कई सवालों को सामने रख दिया है। जहां तक बात टर्मिनल 1 की है तो दिल्ली एयरपोर्ट के टर्मिनल 2 और 3 पर अदिक यात्री आते हैं और यह ज्यादा व्यस्त रहते हैं। लेकिन टर्मिनल 1 पुराना टर्मिनल है और बीते कुछ सालों के दौरान इसमें काफी सुधार किए गए हैं। और यह भी तथ्य ही है कि नए तरीके से तराशे गए टर्मिनल 1 का उद्घाटन प्रधानमंत्री मोदी ने इसी साल मार्च में किया था।

लेकिन इस हादसे पर केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री (सिविल एविएशन मिनिस्टर) राम मोहन नायडू किंजरापु ने जो कुछ कहा वह चौंकाने वाला है। इस हादसे की जिम्मेदारी लेने के बजाए केंद्रीय मंत्री ने दुर्घटनास्थल पर पहुंचकर कहा कि, “... मैं एक बात साफ कर देना चाहता हूं कि जिस बिल्डिंग का पीएम मोदी ने मार्च में उद्घाटन किया था वह दूसरी तरफ है, और जिस इमारत का हिस्सा गिरा है वह पुरानी इमारत है और उसका उद्घाटन 2009 में हुआ था।”

तो क्या केंद्रीय मंत्री कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने इमारत के सिर्फ एक हिस्से का उद्घाटन किया था? उस समय इस उद्घाटन से जुड़ी मीडिया रिपोर्ट और सरकारी प्रेस विज्ञप्ति में तो साफ कहा गया था कि दिल्ली हवाई अड्डे के नए और विस्तृत रखरखाव के बाद पूरी तरह तराशे गए टर्मिनल 1 का प्रधानमंत्री मोदी ने उद्घाटन किया है।

सरकार की सफाई और पिछली यूपीए सरकार को हादसे के लिए जिम्मेदार ठहराना कि 2009 में तो उनकी सरकार थी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने वाली बात है, जिसे लेकर तमाम लोगों ने प्रतिक्रिया दी है। होना तो यह चाहिए था कि सरकार हादसे की वजह तक पहुंचती न कि पीएम को बचाने की कोशिश करती। अगर नागरिक उड्डयन मंत्री का ही तर्क मानें तो फिर जो एक के बाद एक कई रेल हादसे हुए हैं उसकी जिम्मेदारी तो इस तरह अंग्रेजों पर डाल देनी चाहिए क्योंकि अधिकतर रेल लाइनें तो उन्हीं की 19वीं सदी के दौरान बिछाई हुई हैं? 


सोशल मीडिया पर तमाम लोगों जो प्रतिक्रिया दी हैं, उसकी बानगी देखिए:

  • कितनी अटपटी बात है कि हादसे के लिए यह कहा जा रहा है कि छत कब बनी थी। ऐसी इमारतों के देखरेख और सुरक्षा की जिम्मेदारी तो जो भी सरकार सत्ता में होती है उसकी होती है, और बीते 10 साल से तो मोदी सरकार सत्ता में है। तो क्या मोदी जिस घर में रहते हैं वह भी तो काफी पहले बना है, क्या उसकी देखरेख नहीं होती?

  • अगली बार कोई रेल पटरी से उतरेगी तो क्या मोदी सरकार कहेगी कि डिब्बे तो कांग्रेस सरकार के समय के बनाए हुए हैं?

  • क्या वह ऐसा कह रहे हैं कि बीते 10 साल से जब से मोदी सरकार सत्ता में हैं उन्होंने रखरखाव और सुरक्षा आदि का कोई ध्यान नहीं रखा? वह भी तब जबकि उन्होंने टर्मिनल 1 को नए सिरे से लॉन्च किया था और ढोल ताशे बजाए थे। तो क्या उन्हें ढांचे की कमजोरी का अंदाजा नहीं था

  • शायद जल्द ही ऐसा मंत्रालय भी बन जाएगा जो किसी भी हादसे या घटना पर नाकामियों के तर्क सामने रखेगा, गोदी मीडिया को ऐसी सूचनाएं पहुंचाएगा कि दोष पूर्व की सरकार पर जाए और कोई जूनियर मंत्री हादसे की जगह जाएगा तो उसका प्रचार करेगा।

  • समय आ गया है कि अब हम हर इमारत को यूपीए के दौर की या एनडीए के दौर कहकर प्रचारिक करें जिससे साफ पता चल जाएगा कि इसके लिए नेहरू जिम्मेदार हैं या नहीं

लेकिन नागरिक उड्डयन मंत्री की सफाई और अटपटी इसलिए लगी है क्योंकि कल शाम ही मध्य प्रदेश में जबलपुर एयरपोर्ट के बाहर की भी एक छत गिरी है जिसमें एक सरकारी अधिकारी की कार चकनाचूर हो गई। इस एयरपोर्ट टर्मिनल का उद्घाटन भी प्रधानमंत्री मोदी ने किया था। इस हादसे में किस्मत से किसी को चोट नहीं पहुंची। इससे पहले इसी साल असम के गुवाहाटी में भी टर्मिनल बिल्डिंग में बारिश का पानी घुस गया था।

बात सिर्फ एयरपोर्ट्स की ही नहीं है, दिल्ली में जिस प्रगति मैदान टनल का जोरशोर से प्रचार करके पीएम को हाथों उद्घाटन कराया गया था और पिछले साल जी 20 शिखर सम्मेलन से पहले जिसके निर्माण पर 777 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे, वह बारिश से हुए जलभराव के कारण कई बार बंद हो चुकी है। बिहार में कम से कम चार पुल बीते सप्ताहों के दौरान ढह गए हैं। अयोध्या में नवनिर्मित राम मंदिर टपक रहा है, कई जगह पानी चू रहा है, करोड़ों की लागत से तैयार किया गया रामपथ गड्ढों से भर गया है और जगह-जगह थंस गया है। अयोध्या रेलवे स्टेशन की दीवार गिर गई है, सड़कें तालाब बन गई हैं। महाराष्ट्र में अटल सेतु में दरारें पड़ गई हैं। क्या ये सब भी पूर्ववर्ती सरकारों में बने हैं। इनकी सुरक्षा और रखरखाव की जिम्मेदारी किसकी है।


एयरपोर्ट पर तो हर यात्री से फीस ली जाती है हर सुविधा की। बैगेज चेकइन से लेकर वाशरूम तक की। तो दिल्ली के टर्मिनल 1 और जबलपुर एयरपोर्ट की छत गिरने की जिम्मेदारी किसकी है? कौन मुआवजा देगा इसका। वैसे तो जांच के आदेश हो ही गए हैं, लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि इसके लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाता है।

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