जम्मू-कश्मीर में आतंकी कर रहे एम4 कार्बाइन राइफल का इस्तेमाल, विशेषज्ञ ने बताया बेहद खतरनाक
भारतीय सेना में सेवारत रहने के दौरान जम्मू-कश्मीर में काम कर चुके कुलकर्णी का मानना है कि अमेरिकी सेना के बचे हुए हथियार अब आईएसआई के हाथ लग गए हैं और वह इनका इस्तेमाल आतंकवादियों को प्रशिक्षित करने के लिए कर रही है।
विशेषज्ञों ने जम्मू-कश्मीर में पिछले कुछ सालों से आतंकवादियों द्वारा अमेरिका निर्मित एम4 कार्बाइन असॉल्ट राइफलों का उपयोग करने पर चिंता जताई है।
उनका कहना है कि यह प्रवृत्ति ‘‘चिंताजनक’’ है, क्योंकि 2021 में अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के बाद उनके ‘‘बचे हुए’’ हथियार पाकिस्तानी आकाओं के जरिये घाटी में आतंकवादियों तक पहुंच गए हैं।
एम4 कार्बाइन एक हल्का, गैस चालित, एयर-कूल्ड, मैगजीन युक्त और कंधे पर रखकर फायर किया जाने वाला हथियार है जिसका इस्तेमाल 1994 से किया जा रहा है। 1980 के दशक से अब तक 500,000 से ज्यादा एम4 असॉल्ट राइफलों का उत्पादन हुआ है और यह कई संस्करणों में उपलब्ध है। दावा किया जाता है कि इस राइफल से एक मिनट में 700 से 970 गोलियां दागी जा सकती हैं और इससे 500 से 600 मीटर दूर लक्ष्य को भी सटीकता से निशाना बनाया जा सकता है।
विशेषज्ञों के मुताबिक जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों द्वारा इन असॉल्ट राइफलों का बार-बार इस्तेमाल, 2021 में अफगानिस्तान से बाहर निकलते समय अमेरिकी सेना के हथियार और गोला-बारूद पीछे छोड़ जाने का परिणाम है।
रक्षा विशेषज्ञ लेफ्टिनेंट जनरल संजय कुलकर्णी ने कहा, ‘‘अमेरिका ने अफगानिस्तान से निकलते समय हथियारों और गोला-बारूद का एक बड़ा भंडार पीछे छोड़ दिया। अमेरिकियों का दावा है कि उन्होंने इन हथियारों में से अधिकांश को नष्ट कर दिया लेकिन मुझे लगता है कि ये हथियार आतंकवादियों के हाथों में पड़ गए हैं।’’
विशेषज्ञों का कहना है कि यह पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ‘इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस’ (आईएसआई) ही है जो जम्मू-कश्मीर में अपने ‘नापाक मंसूबों’ को आगे बढ़ाने के लिए आतंकवादियों को एम4 कार्बाइन राइफल जैसे अत्याधुनिक हथियारों की मदद दे रही है।
भारतीय सेना में सेवारत रहने के दौरान जम्मू-कश्मीर में काम कर चुके कुलकर्णी का मानना है कि अमेरिकी सेना के बचे हुए हथियार अब आईएसआई के हाथ लग गए हैं और वह इनका इस्तेमाल आतंकवादियों को प्रशिक्षित करने के लिए कर रही है।
जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों से एम4 कार्बाइन राइफल की पहली बरामदगी सात नवंबर 2017 को हुई थी। यह राइफल जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख मसूद अजहर के भतीजे तल्हा रशीद मसूद से बरामद किया गया था जिसे जम्मू-कश्मीर के पुलवामा जिले में मुठभेड़ में मारा गिराया गया था।
एम4 कार्बाइन राइफल की दूसरी बरामदगी पुलवामा से ही 2018 में अजहर के एक और रिश्तेदार उस्मान इब्राहिम से हुई। इब्राहिम को भी मुठभेड़ में मार गिराया गया था।
बाद में 11 जुलाई, 2022 को पुलवामा जिले के अवंतीपोरा इलाके में एक मुठभेड़ स्थल से एक एम4 कार्बाइन राइफल बरामद की गई। इस मुठभेड़ में जैश-ए-मुहम्मद का कमांडर कैसर कोका और एक अन्य आतंकवादी मारा गया था।
जम्मू-कश्मीर पुलिस के पूर्व महानिदेशक शेष पॉल वैद ने कहा कि दिसंबर 2016 से सितंबर 2018 तक के उनके कार्यकाल में आतंकवादियों द्वारा एम4 कार्बाइन राइफलों के इस्तेमाल की नियमित घटनाएं सामने नहीं आती थीं।
उन्होंने कहा, ‘‘ मैं पहले यह स्पष्ट कर दूं कि डीजीपी के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान मुझे एम4 राइफलों के इस्तेमाल की जानकारी नहीं थी। अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान में हथियार छोड़े जाने के बाद कश्मीर में इनका इस्तेमाल बड़े पैमाने पर देखा गया है।’’
उन्होंने स्वीकार किया कि एम4 जैसे अत्याधुनिक हथियारों से हताहतों की आशंका बढ़ जाती है। हालांकि उन्होंने उम्मीद जताई कि सुरक्षा बल इस चुनौती से प्रभावी ढंग से निपटने में सफल होंगे।
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