BJP सरकारों के अहंकार से ऐतिहासिक टकराव का गवाह बना शंभू बार्डर, किसानों पर बरसते रहे आंसू गैस के गोले
दिल्ली की सीमाओं तक किसी भी हालत में किसानों को पहुंचने से रोकने के लिए खट्टर सरकार की पुलिस ने पूरी ताकत का इस्तेमाल किया। शंभू बार्डर धुआं-धुआं हो गया। किसानों पर आंसू गैस के इतने गोले बरसा दिए गए कि इतिहास में शायद ही कभी इतने गोले दागे गए होंगे।
जिस वक्त देश के प्रधानमंत्री अबुधाबी में मंदिर के उद्घाटन के लिए दिल्ली से उड़ान भर रहे थे उस वक्त देश के अन्नदाता पर आंसू गैस के गोले बरस रहे थे। राजधानी दिल्ली से महज 200 किलोमीटर दूर हरियाणा-पंजाब का शंभू बार्डर सत्ता के अहंकार से किसानों के भीषण संघर्ष का गवाह बन रहा था। किसानों पर आंसू गैस के गोले बरसते रहे। रबर की गोलियां दागी जाती रहीं, जिसमें वह लहूलुहान होते रहे। वाटर कैनन चलती रही। दिल्ली की सीमाओं तक किसी भी हालत में किसानों को पहुंचने देने से रोकने के खट्टर सरकार के संकल्प को पूरा करने के लिए पुलिस ताकत का जमकर इस्तेमाल करती रही। इसके लिए शंभू बार्डर धुआं-धुआं होता रहा। यहां तक कि किसानों पर आंसू गैस के इतने गोले बरसा दिए गए कि इतिहास में शायद ही कभी इतने गोले दागे गए होंगे। वहीं, जींद के दातासिंह वाला बार्डर पर किसानों को पुलिस ने दौड़ा-दौड़ा कर पीटा।
13 फरवरी की तारीख किसान आंदोलन के इतिहास में फिर एक नई इबारत लिख गई। हरियाणा-पंजाब की सीमा तय करता अंबाला जिले में स्थित शंभू बार्डर युद्ध के मैदान में तब्दील हो गया। हालात ऐसे रहे कि दो राज्यों की सीमा की जगह यह भारत-पाकिस्तान बार्डर दिखने लगा। मुख्यमंत्री मनोहर लाल की पुलिस के गोले किसानों पर बरसते रहे और वह इनसे बचने के लिए भागते रहे। अफरातफरी की स्थिति रही। पुलिस रबर की गोलियां दागती रही, जो किसान मीडिया के लोगों को दिखा रहे थे। कुछ किसानों का कहना था कि पुलिस एक्सपायरी डेट के आंसू गैस के गोले उन पर दाग रही है। गोलों पर साल 2018 तक की डेट पड़ी है।
पुलिस किसानों पर वाटर कैनन चलाती रही। पंजाब की सीमा में घुसकर ड्रोन से पुलिस किसानों पर आंसू गैस के गोले दागती रही। किसानों का कहना था कि हम कोई आतंकवादी नहीं हैं, जो पुलिस हम पर गोलियां दाग रही है। हम अपने हक की बात करने दिल्ली जा रहे हैं। पंजाब किसान मजदूर संघर्ष कमेटी के महासचिव सरवण सिंह पंधेर ने कहा शंभू बॉर्डर पर 10 हजार किसान जमा हैं। हरियाणा सरकार रोकने की कोशिश कर रही है। हम शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे हैं। हम कुछ भी नहीं कर रहे, लेकिन ड्रोन से आंसू गैस के गोले फेंके जा रहे हैं। जब तक हमारी मांगें नहीं मानी जातीं तब तक प्रदर्शन जारी रहेगा। पुलिस इसकी पटकथा पिछले कई दिनों से लिख रही थी। पुलिस कई दिनों से फायरिंग की प्रैक्टिस कर रही थी। सरकार की तैयारियां ठीक उसी तरह चल रही थीं जैसे किसी देश के खिलाफ युद्ध से पहले की जाती हैं।
दरअसल, सिर्फ तारीख और वर्ष बदला है। पूरी कहानी तो सवा दो वर्ष पहले जैसी ही है। केंद्र के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ 26 और 27 नवंबर 2020 के किसानों के दिल्ली कूच को रोकने के लिए सरकार ने सारी हदें पार कर दीं थीं। हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर सरकार ने एक दिन पहले ही 25 नवंबर को बार्डर सील करने का फरमान जारी कर दिया था। साथ ही मुख्यमंत्री ने बयान दिया कि हर हालत में हम किसानों का दिल्ली चलो रोकेंगे। हम इसकी इजाजत नहीं देंगे। सीएम के इस बयान ने भी आग में घी का काम किया था। किसानों ने इसके बाद कह दिया था कि हम किसी भी हालत में दिल्ली जाएंगे।
ठीक इस बार भी यही हुआ। 13 फरवरी के किसानों के दिल्ली कूच से एक दिन पहले मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने पंचकूला में बयान दिया कि किसान ट्रैक्टर पर हथियार बांधकर ले जाएंगे तो उन्हें हम क्यों न रोकें। लॉ एंड ऑर्डर के लिए व्यवस्था रखनी पड़ती है। प्रदर्शन डेमोक्रेसी में तय मानक के हिसाब से ही होना चाहिए। यही नहीं हरियाणा सरकार ने यह भी ऐलान कर दिया कि प्रदर्शन के दौरान जो भी नुकसान होगा, उसकी भरपाई उपद्रवियों से ही की जाएगी। किसान नेताओं ने इसे हरियाणा सरकार का उकसावे वाला बयान कहा।
सरकार ने 10 फरवरी को ही हरियाणा के 7 जिलों में इंटरनेट बंद करने का फरमान जारी कर दिया। इनमें अंबाला, कुरुक्षेत्र, हिसार, कैथल, जींद, फतेहाबाद, डबवाली समेत सिरसा शामिल हैं। राज्य के 15 जिलों में धारा 144 लगा दी गई। हरियाणा-पंजाब के सभी बार्डर सील कर दिए गए। सड़कों पर खाई खोद दी गई। हैवी सीमेंटेड बैरीकेड लगा दिए गए। गहरी नुकीली कीलें लगा दी गईं। किसानों को रोकने के लिए सड़कों पर भारी कंटेनर रख दिए गए, जिन्हें और भारी करने के लिए उनके बीच मिट्टी भरी गई। भारी ट्रक-डंपर खड़े किए गए। यहां तक कि किसान कहीं घग्घर नदी के बीच से न निकल जाएं इसके लिए जेसीबी से नदी के किनारे खोदे डाले गए। किसानों को रोकने के लिए पूरे हरियाणा में जैसे बंदोबस्त किए गए वैसे तो शायद दुश्मन देश की सेना को रोकने के लिए भी नहीं किए जाते होंगे। नतीजतन, अंबाला के शंभू बार्डर में पुलिस-किसानों के बीच टकराव के हालात बेकाबू होते दिखे। एक तरफ हजारों किसान थे तो दूसरी तरफ केंद्रीय सुरक्षा बलों के साथ भारी मात्रा में तैनात हरियाणा की पुलिस।
जींद में दातासिंह वाला में किसानों पर पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया। किसानों को दौड़ा-दौड़ा कर मारा गया। खनौरी बॉर्डर पर पंजाब के किसानों को रिसीव करने के लिए हरियाणा के किसान भी पहुंच गए थे। दिल्ली-पटियाला नेशनल हाईवे पर किसानों ने पुलिस द्वारा लगाई गई कीलें उखाड़ दीं। पुलिस ने इसके बाद आंसू गैस के गोले छोड़े और किसानों पर वाटर कैनन का इस्तेमाल किया। कहा यह भी जा रहा है कि पुलिस ने यहां मिर्च से भरे वाटर कैनन का प्रयोग किया। पुलिस के यहां जैमर लगाए जाने के कारण पंजाब की तरफ बॉर्डर पर भी नेट सेवाएं बंद हो गईं।
सिरसा में एक दिन पहले पुलिस ने बॉर्डर पर 10 फुट तक गहरी खाई खोद दी। किसानों ने यहां ट्रैक्टर मार्च भी निकाला, जिसे पुलिस रोक नहीं पाई। फतेहाबाद के रतिया में सड़क खोद दी गई। हिसार के हांसी और कैथल में सड़कों के किनारे पर खाई बना दी गई। करनाल के कर्ण लेक के पास किसानों को रोकने के लिए प्रशासन ने किलेबंदी कर दी। कंक्रीट के बड़े बड़े पत्थर, कंटेनर बॉक्स, कीलों से लैस कंक्रीट के ब्रेकर और लोहे के बैरिकेड्स लगा दिए गए। बड़ी-बड़ी हाइड्रा की मदद से कंटेनर और बड़े पत्थरों को लगाया गया।
पानीपत के समालखा में जीटी रोड पर हल्दाना बॉर्डर पर किसानों को रोकने की तैयारी की गई। गांव पट्टीकल्याण के पास पानीपत और सोनीपत पुलिस ने संयुक्त रूप से नाकाबंदी कर दी गई। किसानों को रोकने के लिए वाटर कैनन मशीन, वज्र वाहन, क्रेन की तनाती की गई। सोनीपत में कुंडली बॉर्डर पर 6 लेयर सुरक्षा के साथ मिट्टी भरकर बड़े-बड़े कंटेनर नेशनल हाईवे पर रखे गए हैं। रोहतक में भी पैरा मिलिट्री फोर्स की तैनाती के साथ ही कंकरीट के बैरीकेड्स लगाए गए हैं।
पंचकूला में भी किसानों को रोकने के लिए बुलडोजर, टिप्पर, कील वाली लोहे की चादर, कंक्रीट के पिलर, जेसीबी मशीन और लोहे की कंटीले जाल रखे गए हैं। यही नहीं नाकों पर आसू गैस दस्ता, वज्र वाहन और एंबुलेंस तैनात हैं। पूरे हरियाणा में तकरीबन यही स्थिति है। किसानों को रोकने के लिए राज्य को किले में तब्दील कर दिया गया है। हरियाणा-पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ की भी सभी सीमाएं सील कर दी गई हैं। अगले 60 दिनों के लिए धारा 144 लगा दी गई है। किसान कहीं घुस न जाएं इसलिए शहर के अंदर ट्रैक्टर-ट्रॉलियों के घुसने पर पाबंदी है। पुलिस के वज्र वाहनों सहित मिट्टी से भरे हुए टिप्पर खड़े किए गए हैं।
19 दिसंबर 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन कृषि कानूनों को रद्द करने का ऐलान किया था। इस ऐलान के साथ ही दिल्ली की सत्ता ने किसानों से फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी गारंटी देने समेत कुछ वादे किए थे। इसके बाद तकरीबन 24 महीने से सोई सरकार को उसके वादे याद दिलाने और अपना हक मांगने के लिए किसान दिल्ली जाना चाह रहे थे। दिल्ली कूच के ऐलान से पहले तक सरकार के कान में जूं नहीं रेंगी। मामला बिगड़ता देख आनन-फानन चंडीगढ़ में पहले 8 फरवरी को तकरीबन ढाई घंटे केंद्र सरकार के 3 बड़े मंत्री पीयूष गोयल, नित्यानंद राय और केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा और फिर 12 फरवरी को करीब साढ़े पांच घंटे पीयूष गोयल और अर्जुन मुंडा किसानों को चंडीगढ़ में मनाने की कोशिश करते रहे, लेकिन नतीजा सिफर रहा।
12 फरवरी की भी मीटिंग बेनतीजा रहने के बाद किसान मजदूर मोर्चा के संयोजक सरवण सिंह पंधेर ने ऐलान कर दिया कि 13 फरवरी को हम दिल्ली कूच करेंगे। उन्होंने कहा कि हर मुद्दे पर चर्चा हुई, लेकिन सरकार किसानों की मांगों पर सीरियस नहीं है। किसान टकराव नहीं चाहते, लेकिन सरकार के मन में खोट है। वह हमें कुछ नहीं देना चाहती। किसान नेता जगजीत डल्लेवाल ने कहा कि केंद्र सरकार पुरानी बातों पर ही कायम है। दिल्ली जाना अब किसानों की मजबूरी बन गया है। जिस वक्त केंद्रीय मंत्रियों के साथ मीटिंग चल रही थी उसी वक्त किसान नेताओं के सोशल मीडिया अकाउंट सस्पेंड होने शुरू हो गए, जिससे वह बेहद नाराज थे।
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