पति नहीं है परमेश्वर, सुप्रीम कोर्ट का ‘एडल्टरी’ पर ऐतिहासिक फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने एडल्टरी (व्यभिचार) को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया है। कोर्ट ने एडल्टरी मामले में आईपीसी की धारा 497 को असंवैधानिक करार दिया है। पांच जजों की बेंच ने आईपीसी के सेक्शन 497 को अपराध के दायरे से बाहर करने का आदेश दिया।

फोटो: सोशल मीडिया 
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नवजीवन डेस्क

महिला और पुरुष के बीच विवाहेतर संबंध से जुड़ी आईपीसी की धारा 497 को सुप्रीम कोर्ट ने गैरसंवैधानिक करार दे दिया है। सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की पीठ ने गुरुवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए एकमत से इस फैसले को सुनाया। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस खानविलकर ने अपने फैसले में कहा कि एडल्टरी तलाक का आधार हो सकता है लेकिन यह अपराध नहीं होगा।

मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली इस बेंच ने कहा कि किसी भी तरह से महिला के साथ असम्मान व्यवहार नहीं किया जा सकता है। हमारे लोकतंत्र की खूबी ही मैं, तुम और हम की है। उन्होंने कहा कि एडल्टरी किसी तरह का अपराध नहीं है, लेकिन अगर इस वजह से आपका पार्टनर खुदकुशी कर लेता है, तो फिर उसे खुदकुशी के लिए उकसाने का मामला माना जा सकता है।

जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा, “एडल्टरी चीन, जापान, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में अपराध नहीं है। यह शादियों में परेशानी का नतीजा हो सकता है उसका कारण नहीं। इसे अपराध कहना गलत होगा।”

जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में कहा कि एडल्टरी कानून मनमाना है। उन्होंने कहा कि यह महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाता है। एडल्टरी कानून महिला की सेक्सुअल चॉइस को रोकता है और इसलिए यह असंवैधानिक है। उन्होंने कहा कि महिला को शादी के बाद सेक्सुअल चॉइस से वंचित नहीं किया जा सकता है।

एडल्टरी कानून को रद्द कर देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद याचिकाकर्ता के वकील राज कल्लिशवरम ने कहा, “यह ऐतिहासिक फैसला है। मैं इस फैसले से बेहद खुश हूं। भारत की जनता को भी इससे खुश होना चाहिए।”

इस मामले में पीठ ने 1 अगस्त से 6 दिनों तक सुनवाई की थी। केंद्र सरकार ने एडल्टरी पर आपराधिक कानून को बरकरार रखने का पक्ष लेते हुए कहा था कि यह एक गलत चीज है जिससे जीवनसाथी, बच्चों और परिवार पर असर पड़ता है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा था कि सरकार की यह दलील कि विवाह की पवित्रता बनाए रखने के लिए एडल्टरी को अपराध की श्रेणी में होना ही चाहिए, यह उचित नहीं लगता।

केरल के एक अनिवासी भारतीय जोसेफ साइन ने इस संबंध में याचिका दाखिल करते हुए आईपीसी की धारा-497 की संवैधानिकता को चुनौती दी थी जिसे सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल दिसंबर में सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया था और जनवरी में इसे संविधान पीठ को भेजा गया था।

158 साल पुरानी आईपीसी की धारा-497 के तहत अगर कोई शादीशुदा पुरुष किसी अन्य शादीशुदा महिला के साथ आपसी रजामंदी से शारीरिक संबंध बनाता है तो उक्त महिला का पति एडल्टरी (व्यभिचार) के नाम पर उस पुरुष के खिलाफ केस दर्ज करा सकता है। हालांकि, ऐसा व्यक्ति अपनी पत्नी के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकता है और न ही विवाहेतर संबंध में लिप्त पुरुष की पत्नी इस दूसरी महिला के खिलाफ कोई कार्रवाई कर सकती है। इस धारा के तहत ये भी प्रावधान है कि विवाहेतर संबंध में लिप्त पुरुष के खिलाफ केवल उसकी साथी महिला का पति ही शिकायत दर्ज कर कार्रवाई करा सकता है। किसी दूसरे रिश्तेदार अथवा करीबी की शिकायत पर ऐसे पुरुष के खिलाफ कोई शिकायत नहीं स्वीकार होगी।

इस कानून के खिलाफ आपत्तियां उठाते हुए तर्क दिया जाता है कि एक ऐसा अपराध जिसमें महिला और पुरुष दो लोग लिप्त हों, उसमें केवल पुरुष को दोषी ठहराकर सजा देना लैंगिक भेदभाव है। इसके अलावा महिला के पति को ही शिकायत का हक होना कहीं न कहीं महिला को पति की संपत्ति जैसा दर्शाता है, क्योंकि पति के अलावा महिला का कोई अन्य रिश्तेदार इस मामले में शिकायतकर्ता नहीं हो सकता।

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Published: 27 Sep 2018, 12:09 PM