तब्लीगी जमात केस में फेक न्यूज पर केंद्र को सुप्रीम कोर्ट की फटकार, अपनी शक्ति का उपयोग करने के लिए कहा
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने सरकार के हलफनामे पर नाराज होते हुए पूछा कि ऐसी शिकायतों से निपटने के लिए आप क्या कदम उठा सकते हैं? आपके पास कानून में शक्ति है। यदि नहीं है तो आप प्राधिकरण बनाएं, अन्यथा हम इसे बाहरी एजेंसी को सौंप देंगे।
सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को कोरोना महामारी की देश में शुरुआत के दौरान तब्लीगी जमात संगठन को लेकर हुए विवाद पर मीडिया रिपोर्टिग से जुड़े एक मामले में केंद्र के हलफनामे पर कड़ी नाराजगी व्यक्त की। शीर्ष अदालत ने केंद्र से कहा कि वह 'टीवी पर पेश की जा रही सामग्री के मुद्दों को देखने के लिए एक तंत्र विकसित करे या फिर अदालत ये काम किसी बाहरी एजेंसी को सौंप देगी।"
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि अदालत इस मामले में केंद्र के हलफनामे से खुश नहीं है। साथ ही कोर्ट ने पूछा कि सरकार के पास इस तरह की शिकायतों को सुनने के लिए केबल टीवी नेटवर्क अधिनियम के तहत कौन सी शक्तियां हैं और कैसे वह केबल टीवी की सामग्री को नियंत्रित कर सकती है।
इस दौरान कोर्ट ने कहा, "आपके हलफनामे में इसका कोई जिक्र नहीं है। दूसरा मुद्दा ये है कि ऐसी शिकायतों से निपटने के लिए आप क्या कदम उठा सकते हैं? आपके पास अधिनियम के तहत शक्ति है। यदि नहीं है तो आप इसके लिए एक प्राधिकरण बनाएं, अन्यथा हम इसे एक बाहरी एजेंसी को सौंप देंगे।" अदालत ने केंद्र को 3 हफ्तों में फर्जी खबरों के खिलाफ क्या कार्रवाई की जा सकती है, यह बताने के लिए भी कहा है।
इससे पहले अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने जमीयत उलेमा-ए-हिंद की याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा था कि जब तक हम निर्देश नहीं देते हैं, तब तक सरकारें काम नहीं करती हैं। इसके अलावा शीर्ष अदालत ने इस याचिका में नेशनल ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (एनबीए) को भी एक पक्ष बनाने का सुझाव दिया था। वहीं प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई) के वकील ने पीठ को दलील दी थी कि उसने झूठी रिपोर्टिग के 50 मामलों का संज्ञान लिया है। उसे ऐसी लगभग 100 शिकायतें मिली थीं।
(आईएएनएस के इनपुट के साथ)
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