IIT-धनबाद को फीस नहीं देने पर सीट गंवाने वाले दलित छात्र को देना होगा प्रवेश, सुप्रीम कोर्ट ने दिया आदेश
शीर्ष कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता जैसे प्रतिभाशाली छात्र को वंचित नहीं किया जाना चाहिए, जो हाशिए पर पड़े समूह से ताल्लुक रखता है और जिसने प्रवेश पाने के लिए हरसंभव प्रयास किया। हम निर्देश देते हैं कि अभ्यर्थी को आईआईटी-धनबाद में प्रवेश दिया जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत मिले अधिकार का उपयोग करते हुए आईआईटी-धनबाद को फीस जमा नहीं कर पाने के कारण सीट गंवाने वाले दलित छात्र को प्रवेश देने का आदेश दिया है। चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा, ‘‘हम ऐसे प्रतिभाशाली युवक को अवसर से वंचित नहीं कर सकते। उसे मझधार में नहीं छोड़ा जा सकता।’’
दलित युवक फीस जमा करने की समय सीमा चूकने के कारण आईआईटी-धनबाद में प्रवेश नहीं ले पाया था। अब न्यायालय ने संस्थान से उसे बीटेक पाठ्यक्रम में प्रवेश देने को कहा है।शीर्ष अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी असाधारण शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए आईआईटी-धनबाद को अतुल कुमार को संस्थान के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग बीटेक पाठ्यक्रम में दाखिला देने का निर्देश दिया।
पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘हमारा मानना है कि याचिकाकर्ता जैसे प्रतिभाशाली छात्र को वंचित नहीं किया जाना चाहिए, जो हाशिए पर पड़े समूह से ताल्लुक रखता है और जिसने प्रवेश पाने के लिए हरसंभव प्रयास किया। हम निर्देश देते हैं कि अभ्यर्थी को आईआईटी-धनबाद में प्रवेश दिया जाए और उसे उसी बैच में रहने दिया जाए, जिसमें फीस का भुगतान करने की सूरत में उसे प्रवेश दिया गया होता।’’ संविधान का अनुच्छेद 142 उच्चतम न्यायालय को न्याय के हित में कोई भी आदेश पारित करने का अधिकार देता है।
अतुल कुमार (18) के माता-पिता 24 जून तक फीस के रूप में 17,500 रुपये जमा करने में विफल रहे, जो आवश्यक शुल्क जमा करने की अंतिम तिथि थी। कुमार के माता-पिता ने आईआईटी की सीट बचाने के लिए राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, झारखंड विधिक सेवा प्राधिकरण और मद्रास उच्च न्यायालय का भी दरवाजा खटखटाया था। उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के टिटोरा गांव के रहने वाले कुमार एक दिहाड़ी मजदूर के बेटे हैं और उनका परिवार गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) की श्रेणी में है।
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने भी उनकी मदद करने में असमर्थता जताई थी। चूंकि, कुमार ने झारखंड के एक केंद्र से जेईई की परीक्षा दी थी, इसलिए उन्होंने झारखंड राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण का भी रुख किया, जिसने उन्हें मद्रास उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का सुझाव दिया, क्योंकि परीक्षा का आयोजन आईआईटी-मद्रास ने किया था। उच्च न्यायालय ने कुमार को शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने को कहा था।