बिहार को ‘विशेष राज्य’ का दर्जा देने की मांग हुई तेज, आरजेडी ने बनाया सत्ताधारी जेडीयू पर दबाव 

नीतीश कुमार के एनडीए में दोबारा आने के बाद आरजेडी बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के मुद्दे को उठाती रही है। बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव भी कई बार यह मांग उठा चुके हैं।

फोटो: सोशल मीडिया 
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आईएएनएस

आंध्र प्रदेश में सत्ताधारी तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) ने आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) से अलग होने के फैसला किया और इसके बाद बिहार में भी विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग ने जोर पकड़ लिया है।

नीतीश कुमार के एनडीए में दोबारा आने के बाद आरजेडी के नेता बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के मुद्दे की याद दिलाते रहते हैं। बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव भी कई बार कह चुके हैं कि अब केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार के साथ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आ चुके हैं, ऐसे में बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिल जाना चाहिए।

बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग कोई नयी नहीं हैं। परंतु, इस मुद्दे को लेकर यहां राजनीति भी खूब हुई है।

जेडीयू आज इस मुद्दे को जोर-शोर से नहीं उठा रही है। जबकि, जेडीयू इस मांग को लेकर न केवल बिहार में, बल्कि दिल्ली तक में अधिकार रैली कर चुकी है।

जेडीयू के प्रवक्ता नीरज कुमार कहते हैं, “बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के लिए जेडीयू संघर्षरत है। उन्होंने इशारों ही इशारों में आरजेडी पर निशाना साधते हुए कहा कि आज जो लोग विशेष राज्य का दर्जा देने की बात कर रहे हैं, वे जब केंद्र और राज्य की सत्ता में थे, अगर उस समय प्रयास किया होता तो आज बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिल गया होता।”

साल 2005 में सत्ता में आते ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर राज्य को विशेष दर्जा देने की मांग की थी। जबकि 4 अप्रैल 2006 को बिहार विधानसभा से सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर केन्द्र सरकार को भेजा गया था।

इसके बाद एक बार फिर बिहार में दलीय सीमाओं को तोड़कर सभी राजनीतिक दलों ने 31 मार्च 2010 को बिहार विधान परिषद से इस मामले का प्रस्ताव पारित कर केन्द्र सरकार को भेजा। इसके बाद भी बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिलता देख 23 मार्च 2011 को एनडीए के सांसदों ने प्रधानमंत्री को ज्ञापन सौंपा और 14 जुलाई को जेडीयू के एक शिष्टमंडल ने सवा करोड़ बिहार के लोगों के हस्ताक्षरयुक्त किया हुआ ज्ञापन प्रधानमंत्री को सौंपा था।

जेडीयू ने इस मांग को लेकर पटना के गांधी मैदान में ‘अधिकार रैली’ का आयोजन किया। जबकि 13 मार्च 2013 को नई दिल्ली के रामलीला मैदान में बिहार को विशेष राज्य की मांग को लेकर अधिकार रैली का आयोजन किया गया।

इस मांग को लेकर जेडीयू के नेताओं ने थालियां भी पीटी और पिटवाई। जेडीयू ने मार्च 2014 में इस मांग को लेकर बिहार बंद का आयोजन किया। जबकि इसके एक दिन पहले सभी लोगों से शाम में घर से बाहर निकलकर थाली बजवाई गई।

इधर, केन्द्र सरकार ने इस मामले को लेकर पिछड़ापन का मानक तय करने के लिए गठित रघुराम राजन समिति ने अपनी रिपोर्ट में भी बिहार को पिछड़े राज्य की श्रेणी में रखा।

प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और रघुराम राजन समिति के सदस्य रहे शैवाल गुप्ता कहते हैं, “बिहार विशेष राज्य का दर्जा पाने के सभी पैमानों पर फिट बैठता है।” उन्होंने कहा कि बिहार में निजी पूंजी निवेश नहीं हो रहा है। निजी पूंजी निवेश बढ़ाने के लिए निवेशकों को कर में छूट देनी होगी।

उनका कहना है कि आंध्र प्रदेश को तो विशेष राज्य का दर्जा मांगने की जरूरत ही नहीं है, क्योंकि उसके पास बंदरगाह है। उनका कहना है कि बिहार सरकार को इस मुद्दे को उठाना चाहिए। हालांकि वे यह भी कहते हैं कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने के एजेंडे को यहां के ही कुछ लोग समर्थन नहीं देते, जिस कारण यह लटक जाता है।

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