स्मार्टफोन के बिना काम नहीं चल सकता, लेकिन पर्यावरण और लोगों पर इसके प्रभाव भयानक
इस दौर में स्मार्टफोन मानव को नियंत्रित कर रहा है, जिसके बिना हमारी जिंदगी अधूरी लगने लगती है। लेकिन अब अधिकतर वैज्ञानिक मानने लगे हैं कि स्मार्टफोन हमारी और पूरे पर्यावरण की स्मार्टनेस को तेजी से छीन रहा है।
विकास का आधुनिक दौर निःसंदेह मानव युग है, क्योंकि आज के दौर में मनुष्य ने प्रकृति और पर्यावरण को पूरी तरह से बदल दिया है। इस दौर में स्मार्टफोन मानव को नियंत्रित कर रहा है, जिसके बिना हमारी जिंदगी अधूरी लगने लगती है। अब तो कैमरा, डायरी, कैलेंडर, नोटपैड, पुस्तकें, रास्ते, समाचार, घड़ी, म्यूजिक सिस्टम, एटलस, बैंकिंग और हमारा व्यवहार भी स्मार्टफोन से नियंत्रित होता है। लेकिन अब अधिकतर वैज्ञानिक मानने लगे हैं कि स्मार्टफोन हमारी और पूरे पर्यावरण की स्मार्टनेस को तेजी से छीन रहा है। इसके चलते सोशल मीडिया का वर्चस्व बढ़ा, लेकिन इसके बाद लोगों के आपसी संबंध और सौहार्द्र बिगड़ने लगे। ज्यादातर लोग अब परंपरागत बातचीत के तरीके भूल गए, जिससे स्वास्थ्य प्रभावित होने लगा और मनुष्य की कार्यक्षेत्र में उत्पादकता कम होने लगी है।
कुछ महीने पहले इंटरनेशनल जर्नल ऑफ कम्युनिकेशन में प्रकाशित एक शोधपत्र में बताया गया कि स्मार्टफोन से सोशल मीडिया का अत्यधिक इस्तेमाल करने वाले विद्यार्थी गणित, विज्ञान और भाषा में अपेक्षाकृत कमजोर होते हैं। यह अध्ययन ऑस्ट्रेलिया के 12000 विद्यार्थियों पर किया गया था। जितना अधिक स्मार्टफोन का इस्तेमाल बच्चे कर रहे थे, वे इन विषयों में उतने ही कमजोर हो रहे थे।
सामाजिक प्रभावों पर तो बहुत अध्ययन कर लिए गए पर इसके पर्यावरणीय प्रभाव चौकाने वाले हैं। 2015 में फ्रेंड्स ऑफ द अर्थ नामक संस्था द्वारा प्रकाशित रिसोर्स फुटप्रिंट रिपोर्ट में बताया गया है कि एक स्मार्टफोन बनाने में जितने धातुओं और पदार्थों की आवश्यकता होती है, अगर उनके उत्खनन और शुद्धिकरण को भी शामिल कर दिया जाए, तो कुल 12760 लीटर पानी और 18 वर्गमीटर भूमि की आवश्यकता होती है।
सामान्य स्मार्टफोन बनाने में लगभग 40 खनिज या धातुओं की आवश्यकता होती है, यानि पीरियोडिक टेबल में जितने पदार्थ हैं उसका एक तिहाई। लेकिन स्मार्टफोन की तथाकथित स्मार्टनेस बढ़ने के साथ-साथ उसमें धातुओं और खनिजों की संख्या बढ़ने लगती है। इसमें गोल्ड, सिल्वर, प्लैटिनम, पैलेडियम, कॉपर, एल्युमीनियम, लेड, निकल, रेयरअर्थ एलिमेंट्स, अट्रियम, गैडोलीनियम, नीयोडिमियम, लैंथेनम, टेंतालम, टिन, टंग्स्टन, प्रेसियोडीमियम प्रमुख हैं। बैटरी में लिथियम और कोबाल्ट का उपयोग किया जाता है, जबकि स्मार्टफोन में प्लास्टिक का उपयोग भी किया जाता है। स्मार्टफोन में सिलिकॉन वैफर्स का भी समावेश होता है। सबसे अधिक खनिजों और धातुओं का उपयोग मदरबोर्ड और चिप में किया जाता है।
सिलिकॉन वैफर्स के उत्पादन में बहुत सारे संसाधनों की आवश्यकता होती है। प्लास्टिक का उत्पादन पेट्रोलियम पदार्थों से किया जाता है। डिस्प्ले में अट्रियम और गैडोलीनियम का उपयोग, हेडफोन, स्पीकर और माइक्रोफोन में नीयोडिमियम का, कैमरा के लेंस में लैंथेनम का और प्रेसियोडीमियम का उपयोग भी हेडफोन में किया जाता है। बैटरी में लिथियम और कोबाल्ट का उपयोग होता है। टेंतालम का उपयोग स्मार्टफोन चार्जिंग के बाद बिजली को स्टोर करने के लिए किया जाता है। इसके अयस्क का नाम कोल्टन है और यह कांगो में पाया जाता है।
लगभग हर एक धातु या खनिज कम देशों में ही उपलब्ध हैं और जहां उपलब्ध हैं, वहां इसकी लूट मची होती है और बहुराष्ट्रीय कंपनियों का दखल बना रहता है। कांगो जैसे छोटे देश में इनमे से अधिकतर खनिज मिलते हैं और बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा प्रायोजित अवैध खनन के चक्कर में वहां हमेशा गृहयुद्ध जैसी स्थिति बनी रहती है। अवैध खनन का इलाका प्राइवेट गुंडों के अधीन रहता है, जो किसी की भी हत्या करने से नहीं हिचकते।
लिथियम का खनन बोलीविया, चिली और अर्जेंटीना में किया जाता है और इन देशों को लिथियम ट्रायंगल के तौर पर जाना जाता है। लिथियम आयन बैटरी में कोबाल्ट का उपयोग भी होता है और दुनिया में उपयोग किये जाने वाले कुल कोबाल्ट का 60 प्रतिशत से अधिक खनन कांगो के दलदली क्षेत्रों में किया जाता है। इसके खनन का अधिकतर कारोबार असंगठित क्षेत्र के अधीन है जहां मजदूरों का शोषण और बाल मजदूरी सामान्य कारोबार का हिस्सा है। अधिकतर खनन हाथों से किया जाता है और दिनभर लगातार खनन करने के बाद मजदूरों को ठीक से जिंदगी गुजर-बसर करने लायक पैसे भी नहीं मिलते। इस पूरे अवैध कारोबार में चीन का वर्चस्व है, क्योंकि इसके परिशोधन का केंद्र चीन है, जो लगभग पूरी दुनिया की जरूरत पूरी करता है। परिशोधन में भी जिन स्तरों पर सबसे अधिक कचरा या विषैले पदार्थ उत्सर्जित होते हैं, वे कांगो या दूसरे अफ्रीकी देशों में ही पूरे किये जाते हैं, जिससे चीन में प्रदूषण का बोझ नहीं बढ़े।
कोबाल्ट खनन के मालिकाना हक को लेकर कांगो में लगातार हिंसा होती है, इसीलिए इसे रक्त-रंजित खनिज और संघर्ष वाले खनिज के नाम से भी जाना जाता है। कोबाल्ट खनन के असंगठित क्षेत्र में 255000 श्रमिक काम करते है, जिनमें से 35000 से अधिक बच्चे हैं। कुछ बच्चों की उम्र तो 6 साल के आसपास भी है। इन श्रमिकों को बहुत कम पारिश्रमिक दिया जाता है, इसमें भी एक बड़ा हिस्सा सरकारी अधिकारियों की जेब में रिश्वत के तौर पर जाता है। मजदूरों की मजदूरी या सुविधाएं तो पिछले अनेक वर्षों से नहीं बढीं पर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोबाल्ट की कीमतें पिछले दो वर्षों के भीतर ही 300 प्रतिशत बढ़ चुकी हैं।
अधिकतर खनिज और धातु जो स्मार्टफोन में उपयोग किये जाते हैं, बहुत महंगे और दुर्लभ हैं। जिन क्षेत्रों या देशों में ये उपलब्ध हैं, वहां भी अयस्क में इनकी सांद्रता कम होती है। ऐसी स्थिति में बहुत अधिक उत्खनन के बाद जब इनका परिशोधन किया जाता है तब भी कम धातु या खनिज उपलब्ध हो पाता है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान ही स्मार्टफोन की मांग बढ़ने के कारण इन धातुओं की मांग बढ़ी है। इस मांग को पूरा करने के लिए खनन का क्षेत्र लगातार बढ़ता जा रहा है। खनन के कारण एक बड़े क्षेत्र में मिटटी की ऊपरी परत जो उपजाऊ होती है, नष्ट होती जा रही है। इसके बाद इनके परिशोधन के दौरान अनेक विषैले रसायनों का उपयोग किया जाता है और कचरे के साथ विषैले पदार्थ उत्पन्न होकर भूमि और जल संसाधनों को प्रदूषित करते हैं।
2017 में प्रकाशित ग्रीनपीस यूएसए की एक रिपोर्ट के अनुसार स्मार्टफोन के उत्पादन और फिर इसके उपयोग के बाद निपटान से हमारी पृथ्वी पर गंभीर परिणाम पड़ रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार 2007 से 2017 के बीच स्मार्टफोन उत्पादन के लिए 968 टेरावाट ऑवर बिजली की जरूरत पड़ी, लगभग इतनी ही बिजली की जरूरत भारत जैसे विशाल देश में पूरे एक वर्ष में पड़ती है। साल 2007 में ही पहला आईफोन बाजार में आया था और फिर दुनिया भर के बाजार तमाम स्मार्टफोन से पट गए। साल 2007 से 2017 के बीच पूरी दुनिया में 7.1 अरब स्मार्टफोन का उत्पादन किया गया, जबकि इसके बढ़ते बाजार को देखकर अनुमान लगाया गया है कि अकेले 2020 में ही 6.1 अरब स्मार्टफोन का उत्पादन किया जाएगा।
स्मार्टफोन के उपयोग की अवधि अपेक्षाकृत छोटी होती है, क्योंकि इनके मॉडलों का लगातार अपग्रेडेशन होता है और नए फीचर्स के साथ जल्दी ही बाजार में आ जाते हैं। लोग भी नए-नए फोन खरीदते रहते हैं, इसीलिए इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट में इसका बढ़ता अनुपात पूरी दुनिया को परेशान कर रहा है। पर्यावरण के लिए यह गंभीर समस्या है और इलेक्ट्रोनिक वेस्ट से उपयोगी वस्तुओं को निकालने का असंगठित और अवैध कारोबार कई देशों का पर्यावरण बिगाड़ रहा है। इस तरह के असंगठित और अवैध कारोबार का दुनिया में सबसे बड़ा केंद्र भारत है। इस कारोबार से देश की आबोहवा कई इलाकों में प्रभावित हो रही है। ग्रीनपीस यूएसए की रिपोर्ट के अनुसार पूरे विश्व में प्रतिवर्ष लगभग 5 करोड़ मेट्रिक टन इलेक्ट्रोनिक कचरा उत्पन्न होता है, इसमें से बेकार स्मार्टफोन की मात्रा 40 लाख मेट्रिक टन से अधिक है।
जाहिर है, फोन पहले से अधिक स्मार्ट होता जा रहा है और पर्यावरण बिगड़ता जा रहा है। इसकी तुलना प्लास्टिक से की जा सकती है, जिसके नए नए उपयोग बढ़ते गए और अब पूरी पृथ्वी और महासागर इसके अपशिस्ट की चपेट में हैं। स्मार्टफोन इसी तरह बढ़ता जा रहा है, आबादी से ज्यादा हो गया। अब जब पर्यावरण पर और मानव के मानस पटल पर इसके जो प्रभाव सामने आ रहे हैं वह भयानक तस्वीर बना रहे हैं। यही हाल रहा तो जल्दी ही वैज्ञानिक कहना शुरू करेंगे कि पर्यावरण को बचाना है तो स्मार्टफोन खरीदना बंद कर दीजिये।
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