बिहार: छोटे दलों ने दिखाई बीजेपी को आंखें, तो लालू के जेल में होने पर भी आरजेडी बना सियासी केंद्र
लोकसभा चुनाव और बिहार विधानसभा चुनाव में भले ही अभी एक साल से ज्यादा का वक्त हो, लेकिन राजनीतिक दलों ने सियासी नफा-नुकसान का हिसाब लगाकर पैंतरेबाजी शुरु कर दी है।
आरजेडी नेता लालू प्रसाद यादव भले ही जेल में हों, लेकिन उनकी पार्टी आरजेडी और विशेषकर उनके पुत्र तेजस्वी यादव ने पूरे बिहार में सियासी माहौल को ठंडा नहीं होने दिया है। उनकी सक्रिया के चलते लोकसभा और विधानसभा चुनाव से करीब एक साल पहले ही बिहार का सियासी पारा चढ़ने लगा है। इसी कवायद में आरजेडी ने अपने पुराने साथियों की वापसी की जोड़तोड़ शुरु की है, तो एनडीए में शामिल छोटे दलों ने बीजेपी को आंखे दिखाना शुरु कर दी हैं। राजनीतिक विश्लेषक इसे दबाव की राजनीति करार दे रहे हैं।
वैसे, इन सब के बीच राजनीतिक दलों के नेता सीधे तो कुछ नहीं बोल रहे हैं, लेकिन सभी बड़े दलों के नेताओं को अचानक छोटे दलों के प्रति 'प्रेम' जग गया है, ऐसे में वे छोटे दलों पर डोरे डालकर चुनावी मैदान के पहले उसे आजमा लेना चाह रहे हैं। कई जातीय संगठन भी अपनी ताकत को अभी से ही देिखाना शुरु कर दिया है।
एनडीए में शामिल राष्ट्रीय लोक समता पार्टी यानी आरएलएसपी के शिक्षा के मुद्दे को लेकर मानव कतार कार्यक्रम में आरजेडी के नेताओं के शामिल होने के बाद बिहार में अटकलों का बाजार गरम हो गया। इस कार्यक्रम में भाग लेने पर आरजेडी नेता शिवानंद तिवारी कुछ खुलकर तो नहीं बोलते परंतु इतना जरूर कहते हैं कि यह शिक्षा के विषय को लेकर कार्यक्रम आयोजित था और इसमें भाग लिया।
मानव कतार में शामिल हुए आरजेडी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी दो दिन बाद बिहार पीपुल्स पार्टी के संस्थापक और पूर्व सांसद आनंद मोहन से मिलने सहरसा जेल पहुंच गए। उधर आरजेडी के ही दूसरे वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद सिंह भी सांसद और जन अधिकार पार्टी के प्रमुख पप्पू यादव को आरजेडी का करीबी बता कर उनसे मिलने-जुलने में लगे हैं। लेकिन फिलहाल, आरजेडी नेता तेजस्वी प्रसाद यादव ने पप्पू के आरजेडी में आने के किसी भी संभावना से इंकार कर दिया है।
इधर, जेडीयू के पूर्व अध्यक्ष शारद यादव ने भी आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद से रांची जेल में मिलकर बिहार की राजनीति को हवा दे दी। पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा के वरिष्ठ नेता वृषिण पटेल भी रांची जेल में लालू प्रसाद से मिलकर बिहार में नए समीकरण के संकेत दे चुके हैं। जेडीयू नेता और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी भी रांची जाकर लालू का हालचाल पूछ चुके हैं। इधर, जीतन राम मांझी भी इशारों ही इशारों में अकेले चुनाव लड़ने की बात भी कह चुके हैं।
यहां यह जानना लाजिमी है कि पप्पू यादव आरजेडी के की टिकट पर ही पिछला लोकसभा चुनाव जीते थे, और फिर उन्होंने अपनी अलग पार्टी बना ली थी।
इस बीच कांग्रेस में प्रदेश अध्यक्ष पद से डा़ अशोक चौधरी को हटाए जाने के बाद से जेडीयू के पक्ष में बयानबाजी का सिलसिला थम गया है, लेकिन कांग्रेस विधान पार्षद रामचंद्र भारती 21 जनवरी को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा आयोजित मानव श्रृंखला कार्यक्रम में शामिल हुए। पार्टी लाइन की परवाह किए बिना वह मुख्यमंत्री की प्रशंसा में जुटे हैं।
ऐसे में जातीय संगठन भी अपनी ताकत दिखाने को आतुर है। निषाद विकास संघ के अध्यक्ष मुकेश सहनी ने इसी रविवार को यहां 'एससी,एसटी आरक्षण अधिकार सह पदाधिकारी सम्मेलन' में बड़ी संख्या में लोगों को जुटाकर अपनी शक्ति का एहसास करा दिया है। सहनी कहते हैं कि निषादों के आरक्षण के लिए अब संघर्ष तेज करने का समय आ गया है। उन्होंने कहा कि संघ के आान पर उमड़ा निषाद समाज बिहार में सियासी परिवर्तन का संकेत हैं।
'सन अफ मल्लाह' के नाम से चर्चित सहनी ने बिहार और केंद्र सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर इस साल जून तक निषाद समाज को आरक्षण नहीं मिलता है, तो पटना के गांधी मैदान में विशाल जनसभा कर संगठन के द्वारा पार्टी की घोषणा की जाएगी तथा अगले लोकसभा चुनाव में बिहार में सभी 40 सीटों पर अपनी पार्टी के बैनर तले उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारा जाएगा।
राजनीति के जानकार और पत्रकार संतोष सिंह कहते हैं कि बिहार के सभी दलों के लिए अगला लोकसभा और विधानसभा चुनाव महत्वपूर्ण है। ऐसे में दल अपने गठबंधन को और मजबूत करना चाह रहे है, तो कुछ दल 'दबाव की राजनीति' कर रहे हैं। वैसे अभी बहुत कुछ कहना जल्दबाजी है परंतु इतना तय है कि अगले कुछ दिनों तक बिहार की राजनीति में जोड़-तोड़ देखने को मिलेगा।
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