दिल्ली हिंसा के बाद करीब आ रहे हैं सिख-मुसलमान, सहारनपुर में मुस्लिमों ने, तो मुजफ्फरनगर में सिखों ने दी जमीन
दिल्ली हिंसा के बाद से मुसलमान और सिख समुदाय करीब आ रहे हैं। उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में भी दोनों बेहद करीब आ गए हैं। सहारनपुर वही जगह है जहां 2014 में गुरद्वारा और मस्जिद की जमीन के विवाद को लेकर दोनों समुदायों में दंगा हुआ था और 3 लोगों की मौत हुई थी।
राजधानी दिल्ली में भड़की हिंसा के बाद से मुसलमान और सिख समुदाय पूरे देश में एक-दूसरे के नजदीक आ रहे हैं और आपस के अपने विवाद निपटा रहे हैं। उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में भी सिख और मुस्लिम नजदीक आ गए हैं। सहारनपुर वही जगह है, जहां 2014 में गुरद्वारा और मस्जिद की जमीन के विवाद को लेकर दोनों समुदायों में दंगा हुआ था और 3 लोगो की मौत हो गई थी। दर्जनों घायल हुए थे और सैकड़ों दुकानें जला दी गई थीं।
इस दंगे की जड़ बने विवाद को पहले ही शानदार तरीके से निपटा लिया गया था। दरअसल सहारनपुर के कुतुबशेर इलाके में गुरद्वारा गुरु सिंह सभा और उसी के करीब मस्जिद की जमीन को लेकर विवाद था। जिसमें निर्माण के दौरान दोनों समुदाय भिड़ गए थे। पिछले दिनों हुए समझौते में सिख समुदाय ने मुस्लिम समाज को अलग जमीन खरीदने के लिए चार लाख रुपये देने का फैसला लेते हुए उन्हें चार लाख रुपये का चेक सौंपा था। पहले तो मुस्लिम पक्ष रकम लेने के लिए तैयार नहीं हुआ, पर बाद में समझाने पर चेक ले लिया और दूसरी जगह जमीन की तलाश शुरू कर दी।
लेकिन हाल ही में हुए दिल्ली दंगों के दौरान सिख समुदाय द्वारा बड़े पैमाने पर मुसलमानों की मदद को देखते हुए मुस्लिम समुदाय के पक्ष के लोगों ने गुरद्वारा पहुंचकर सिखों से मिले चेक कमेटी के प्रधान जसवीर सिंह बग्गी को लौटा दिया। साथ ही यह भी कहा कि इस पैसे को गुरद्वारा के भव्य निर्माण में खर्च किया जाए और मुसलमान खुद सर पर तसला रखकर कारसेवा करेंगे।
मुस्लिम समाज की इस पहल से अभिभूत गुरद्वारा गुरु सिंह सभा कमेटी ने ऐलान किया कि गुरद्वारे में बनने वाली डिस्पेंसरी का नाम मुस्लिम समाज के बाबा फरीद के नाम पर रखा जाएगा। गुरुद्वारा गुरु सिंह सभा के जसवीर सिंह बग्गा मुस्लिम समुदाय के इस पहल पर बहुत खुश हैं। वो कहते हैं, “पुरानी बातें भुलाकर आगे बढ़ना ही जिंदगी है। हम मुस्लिम समुदाय के शुक्रगुजार हैं। हमारे दिल में उनके लिए सम्मान बढ़ गया है।”
बता दें कि जून 2014 में सहारनपुर में हुए दंगे के बाद शहर के तीन थाना क्षेत्रों में कर्फ्यू लगा दिया गया था। ईद भी संगीनों के साये में गुजरी थी। हालांकि दंगो के तुरंत बाद सिख और मुस्लिम समुदाय के लोगों ने सड़क पर उतर कर शांति की अपील की थी और तेजी से माहौल सामान्य हो गया था। दंगे में एक नेता मोहर्रम अली पप्पू के भाषण को भीड़ के भड़कने की वजह माना गया था। इसके बाद पप्पू को रासुका के तहत एक साल से भी ज्यादा समय तक जेल में रहना पड़ा। पप्पू इस मामले में अदालत में मुस्लिम पक्ष के पक्षकार भी हैं।
अब बदले हालात में वही मोहर्रम अली पप्पू खुद चेक वापस करने गुरुद्वारा पहुंचे और कारसेवा की इच्छा जताई। मोहर्रम अली पप्पू कहते हैं, “दंगा दुर्भाग्यपूर्ण था, हमें उसका पछतावा है। सिख बहादुर कौम है। हम उनका सम्मान करते हैं। दिल्ली में उनकी इन्साफपसंदगी ने हमारी आंखें खोल दी हैं। अब हम खुद गुरुद्वारे में कारसेवा करेंगे। मैं खुद अपने सर पर तसला रखकर जाऊंगा।”
वहीं आपसी मुहब्बत की इसी तरह की एक और घटना मुजफ्फरनगर जिले से भी सामने आई है। यहां के कस्बे पुरकाजी में इससे पहले सुखपाल सिंह बेदी ने 900 फीट जमीन मस्जिद बनाने के लिए स्थानीय चेयरमैन जहीर फारूकी को सौंप दी थी। 70 साल के सुखपाल सिंह के मुताबिक ऐसा उन्होंने गुरु नानक साहब के प्रकाश पर्व पर खुशी से किया था, ताकि दोनों समुदाय में नजदीकी आए।
इन्हीं घटनाओं के बीच मेरठ में दोनों समुदायों के एक-दूसरे से माफी मांगने की दोल को पसीज देने वाली भी कई खबरें आई हैं। मेरठ के रामराज के रहने वाले गुरप्रीत सिंह समरा (45) ने बताया कि पिछले कई दिनों से उन्हें अपने मुस्लिम दोस्तों से कई वाट्सअप संदेश मिल रहे हैं। इन संदेशों में उनसे माफी मांगी गई है। गुरप्रीत बताते हैं कि “मुझे कुछ मुस्लिम दोस्तों ने संदेश भेजा है, जिसमें लिखा है कि हम उन्हें माफ कर दें, क्योंकि 1984 के दंगों में वो हमारी तकलीफ में उतनी मजबूती से खड़े नहीं हुए थे, जैसा उन्हें होना चाहिए था।”
गुरप्रीत के अनुसार एक संदेश में लिखा है, “जब सिख समुदाय अदालत में इंसाफ के लिए जूझ रहा था तो हमें आपके साथ खड़े रहना था। हमसे भूल हुई, हमें माफ करना। आज दिल्ली दंगे में जिन लड़कों ने मुस्लिमों पर हमला किया और उनकी जान ली, कल इन्हीं के पिता आप पर किए गए हमलों में शामिल थे। हमें आपको इंसाफ दिलाने की पूरी लड़ाई लड़नी चाहिए थी, लेकिन हमने ऐसा नहीं किया, इसलिए हमें आज यह सब देखना पड़ा।
इन मैसेज के बारे में गुरप्रीत कहते हैं, “यह सब पढ़कर मेरा कलेजा रो पड़ा। मुझे मुसलमानों से बेहद सहानभूति है। उनके साथ ज़ुल्म हो रहा है। कल यह हमारे साथ हुआ था और आने वाले कल में भी फिर से हो सकता है। आज मुसलमान डरे हुए हैं और वो सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे हैं। एक लोकतांत्रिक देश के लिए यह हालत शर्मनाक है। मेरे मुस्लिम दोस्त तकलीफ में हैं। सिखों ने तय किया है कि हम इनकी मदद करेंगे। सिख कौम हमेशा मजलूमों के साथ खड़ी रहती है।”
वह साथ ही ये भी कहते हैं कि वर्तमान में देश को इस संशोधित नागरिकता कानून की जरूरत नही थी। देश में बेरोजगारी, भ्रष्टाचार समेत बहुत सी समस्याएं थीं। पूरे देश में मुख्य मुद्दों से ध्यान हट गया है। हर तरफ बस यही बात है। बहुत गलत हो रहा है। यह देश की तरक्की के लिए सही नहीं है। दिल्ली दंगों के बाद आप जगह-जगह सिखों को मुसलमानों के साथ खड़ा देख रहे हैं। यह हमारे भी अस्तित्व का सवाल है। यह सब दर्द हमने भी झेला है।
बता दें कि दिल्ली के शाहीन बाग में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ चल रहे प्रदर्शन में भी सिख समाज लंगर की व्यवस्था संभाल रहा है। वहीं दिल्ली हिंसा में प्रभावित हुए मुस्तुफाबाद के नाजिम अंसारी के मुताबिक यहां सिखों की खिदमत देखकर मुसलमानों में भी उनके लिए इज्जत बढ़ गई है।
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