मध्य प्रदेश: आदिवासी वोटरों को रिझाने की शिवराज की कोशिशें अभी तक नाकाम, सताने लगा है चुनावी हार का डर

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आदिवासियों को रिझाने के लिए बातें तो बहुत कीं, योजनाओं की घोषणाएं भी हुईं लेकिन जमीन पर स्थिति बदहाल ही। ऐसे में आने वाले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को हार का डर भी सता रहा है।

मणिपुर में जो कुछ हो रहा है, उस पर तो गुस्सा है ही, मध्य प्रदेश में भी अनुसूचित जनजाति के साथ प्रताड़ना की घटनाओं ने लोगों को उत्तेजित कर रखा है। इनके खिलाफ प्रदर्शन, सभाएं आम बात हैं। (फोटो : Getty Images)
मणिपुर में जो कुछ हो रहा है, उस पर तो गुस्सा है ही, मध्य प्रदेश में भी अनुसूचित जनजाति के साथ प्रताड़ना की घटनाओं ने लोगों को उत्तेजित कर रखा है। इनके खिलाफ प्रदर्शन, सभाएं आम बात हैं। (फोटो : Getty Images)
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काशिफ काकवी / पूजा

दो दशकों में 18 साल से अधिक समय तक मुख्यमंत्री पद संभालने वाले शिवराज सिंह चौहान को समझ में नहीं आ रहा कि वह आदिवासियों को किस तरह शांत करें कि वे बीजेपी की ओर लौटें। बीजेपी से जुड़े प्रवेश शुक्ला का सीधी के एक आदिवासी के सिर पर पेशाब करता एक वीडियो जुलाई के पहले हफ्ते में वायरल हुआ, तो शिवराज ने उस आदिवासी को मुख्यमंत्री आवास में बुलाकर उसके पैर धोए और क्षमायाचना की। यही नहीं, प्रवेश शुक्ला के घर के एक हिस्से को बुलडोजर से ढहाकर उस पर एनएसए लगाया गया ताकि आग न भड़के।

लेकिन, उसके बाद भी कोई-न-कोई ऐसी घटना हो ही जा रही है जिससे आदिवासियों के साथ भेदभाव, उनके उत्पीड़न की बातें सामने आ ही जाती हैं। अभी 13 अगस्त को छतरपुर के एक अस्पताल में आदिवासी महिला पम्मी बाई की मौत हो गई, तो प्रबंधन ने पूरा पेमेन्ट देने तक शव देने से इनकार कर दिया। बाद में, जिले से लेकर भोपाल तक शोरशराबे के बाद स्थिति बड़ी मुश्किल से संभाली गई।

आदिवासी वर्ग में इतना गुस्सा है कि आदिवासी संगठनों ने विश्व आदिवासी दिवस- 9 अगस्त को इस बार विरोध दिवस के तौर पर मनाया। प्रदेश-स्तर पर आदिवासी भेदभाव-अत्याचार की घटनाओं के साथ मणिपुर में कुकी-जोमी-हमार के जातीय सफाये या नरसंहार की घटनाओं ने आग में घी का काम किया है।

सबके वोट किसी-न-किसी तरह हासिल करने के खयाल से 29 जुलाई को शिवराज ने कीर समाज सम्मेलन में घोषणा कर दी कि दोबारा सर्वेक्षण के बाद राज्य में कीर समाज को अनुसूचित जाति का दर्जा देने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा जाएगा। उन्होंने वीरांगना मां पुरी बाई की भव्य प्रतिमा लगाने की भी घोषणा की।

बड़वानी में एक रैली में युवा आदिवासी नेता सुमेर सिंह बडोले ने इसे 'राज्य में मणिपुर-जैसी स्थिति पैदा करने का प्रयास' बताया। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर कीर समाज को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने का प्रयास किया गया, तो राज्य में हिंसा फैल जाएगी।

मध्य प्रदेश में आदिवासियों की आबादी 22 प्रतिशत है। इस खयाल से यह देश का सबसे अधिक आदिवासी आबादी वाला राज्य है। यहां 46 मान्यता प्राप्त अनुसूचित जनजातियां हैं जिनमें तीन विशिष्टतः असुरक्षित जनजातीय समूह (पीवीटीजी) भी हैं।


2018 में बीजेपी को आदिवासियों के वोट का अच्छा-खासा नुकसान हुआ था। उसे अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 47 सीटों में से 16 सीटें ही मिली थीं जबकि 2013 में उसे ऐसी 31 सीटों पर जीत मिली थी। इसीलिए बीजेपी ने इस वर्ग के वोट दोबारा हासिल करने के खयाल से कई रेलवे स्टेशनों, बस स्टैंडों, कॉलेजों के नाम आदिवासी नेताओं के नाम पर किया है। लेकिन आदिवासी उत्थान के लिए जो वास्तविक काम किए जाने चाहिए, उस पर उसका ध्यान लगभग नहीं ही रहा है।

अनुसूचित क्षेत्र में ग्राम सभा को प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन के संबंध में विशेष निर्णय लेने की शक्ति प्रदान करने वाला पेसा कानून, 1996 यहां 2022 में लागू किया गया है और वह भी आधा-अधूरा।

केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल के इलाके- छतरपुर जिले में ग्राम पंचायत हरदौल पट्टी के मथानीखेरा गांव के एक व्यक्ति ने अपना नाम न छापने की बात करते हुए कहा कि इस कानून में कहा गया है कि जल, जंगल और जमीन से जुड़े मामलों में आदिवासियों से राय ली जाएगी और उनकी सहमति के बिना पंचायत सीमा में आने वाली रेत खदान को नीलम नहीं कर सकेंगे। लेकिन जब रेत खदान नीलाम करने की बारी आई तो आदिवासी-बहुल पंचायतों से पूछा तक नहीं गया। इसी तरह कहा गया कि हत्या-डकैती-जैसे कुछ मामलों को छोड़कर बाकी के मामलों में आदिवासी-बहुल पंचायतों से जानकारी लेने के बाद ही एफआईआर दर्ज होगी। लेकिन इसका भी पालन नहीं हो रहा है।

यही हाल वनाधिकार कानून का है। बैतूल के भैयालाल कहते हैं कि इस कानून में 60 लाख हेक्टेयर जमीन पर सामुदायिक अधिकार दिए जाने थे लेकिन ऐसा सिर्फ पांच लाख हेक्टेयर जमीन पर किया गया। इस बारे में किए गए दावों को बड़े स्तर पर सरकार ने ही खारिज कर दिया। वह कहते हैं कि सरकार की कथनी और करनी में अंतर है और कागजी प्रयास जमीन पर नहीं उतर रहे।

18 से 55 साल के आदिवासियों के लिए लागू की गई टंट्या भील स्वरोजगार योजना का भी यही हाल है। छिंदवाड़ा के देवरावन भलावी कहते हैं कि उनके जानने वाले 25 से अधिक लोगों ने इस योजना के तहत आवेदन किए थे लेकिन अब तक उनमें से एक को भी लोन नहीं मिला है। इस योजना को लागू हुए एक साल हो चुका है, पर इससे लाभ उठाने वाले लोगों की संख्या के आंकड़े राज्य सरकार ने अब तक सार्वजनिक नहीं किए हैं।


वर्ष 2020-21 में अखिल भारतीय बार परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले विदिशा के अधिवक्ता सुनील कुमार आदिवासी भी कहते हैं कि आदिवासी वर्ग के लिए छात्रावासों की संख्या पिछले एक दशक में नहीं बढ़ी है जबकि छात्रवृत्ति देने की प्रक्रिया कठिन कर दी गई है। सरकारी आंकड़ों में आदिवासी छात्रों की संख्या भले ही बढ़ी हो, उनके लिए स्कूलों की संख्या तो नहीं ही बढ़ी है।

अलीराजपुर के शंकर तड़वाल कहते हैं कि सरकार चाहे जितना छिपाने की कोशिश करे, एनसीआरबी के आंकड़े ही बताते हैं कि एसटी समुदाय के लोगों के खिलाफ अपराध की घटनाओं और दर्ज मामलों में मध्य प्रदेश सबसे ऊपर है। यहां पिछली बार 2,627 मामले दर्ज किए गए। तड़वाल कहते हैं कि आदिवासियों के नाम पर शुरू की गई योजनाओं के कार्यान्वयन में कोताही के साथ अपराध की ये घटनाएं ही आगामी विधानसभा चुनाव ही नहीं, 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में भी भाजपा के लिए मुश्किलात पैदा करेंगी।

मणिपुर की घटनाएं भी बीजेपी के लिए करेले में नीम की तरह हैं। प्रदेश के एक आदिवासी बहुल जिले में एक बड़े पद पर बैठे अधिकारी ने कहा कि मुख्य धारा के अखबारों और टीवी न्यूज चैनलों ने भले ही मणिपुर की घटनाओं और हाल ही में संसद से पारित वन (संरक्षण) संशोधन कानून को दबाया हो, सोशल मीडिया की वजह से इन घटनाक्रमों ने आदिवासियों को उद्वेलित कर रखा है।

कांग्रेस ही नहीं, विभिन्न आदिवासी-दलित संगठनों की सक्रियता बीजेपी के लिए परेशानी पैदा कर रही है। भोपाल में विश्व आदिवासी दिवस पर आयोजित प्रतिरोध रैली में ऐक्टिविस्ट शरद सिंह कुमारे ने तो कहा भी कि 'जंगल के अलावा हमारे पास कुछ नहीं है। शहरों में हमारे पास न जमीन है, न शिक्षा। जो है सिर्फ जंगल है। वह भी छीन लेंगे, तो हमारे पास बचेगा क्या?' वैसे भी, विभिन्न परियोजनाओं के नाम पर राज्य में जंगलों का सफाया किया जा रहा है।


हिन्दू राष्ट्र के सपने और नारे भी आदिवासियों को डरा रहे हैं। सिवनी में पिछले साल मई में गोवंश हत्या का आरोप लगाते हुए दो आदिवासियों की हत्या कर दी गई थी। इस घटना में शामिल होने का बजरंग दल और अन्य हिन्दुत्ववादी संगठनों के 14 लोगों पर आरोप था। बात-बात में आरोपियों के घर बुलडोजर से गिराने वाली शिवराज सरकार ने इनके खिलाफ तो कार्रवाई नहीं ही की, इनके खिलाफ कार्रवाई की वजह से एसपी का तबादला कर दिया गया। यह मसला ठंडा नहीं हो रहा है। सिवनी में ही आयोजित सभा में सिवनी के बरघाट से कांग्रेस विधायक अर्जुन सिंह काकोड़िया ने कहा कि 'भारत कभी भी हिन्दू राष्ट्र नहीं बनेगा।' इस सभा में भाग लेने आए भैयालाल कुंजम ने गुस्से में कहा भी, 'आदिवासियों को नक्सलवादी और मुसलमानों को आतंकी कहकर मुकदमों में फंसाया जा रहा है।'

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