देशद्रोह पर ‘सुप्रीम’ टिप्पणी के बाद शिवसेना बोली- क्या अब मोदी सरकार छोड़ेगी ‘देशद्रोह धारा’ का ठेका और मनमानी?
सामना के संपादकीय में शिव सेना ने मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि ‘देशद्रोह’ का चलन में आनेवाला शब्द और ‘देशद्रोह की धारा’, ये राजनीतिक हथियार साबित हुए हैं। एक तरफ लोकतंत्र की ‘आवाज’ और दूसरी तरफ तानाशाही ‘दबाव तंत्र’ का खेल शुरू है।
मोदी सरकार पर शिवसेना ने एक बार फिर हमला बोला है। सामना के संपादकीय में केन्द्र पर निशाना साधते हुए कहा कि मोदी सरकार का समर्थन करना देशभक्ति और विरोध व्यक्त करना देशद्रोह। यह ‘नवदेशद्रोह’ का स्टैंप अब तक कई लोगों पर लग चुका है। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला भी उन्हीं में से एक हैं। उन्हें भी इसी प्रकार से ‘देशद्रोही’ साबित करने का प्रयास हुआ। हालांकि, अब सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाई है। फारुख अब्दुल्ला के विरोध में दाखिल एक याचिका को रद्द करते हुए कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में देशद्रोह के ठेकेदारों को फटकार लगाई है। कोर्ट ने कहा है, ‘सरकार का जो मत है, उससे भिन्न मत व्यक्त करना देशद्रोह नहीं है। सामना के माध्यम से शिवसेना ने पूछा कि सरकार अब ‘देशद्रोह धारा’ का ठेका और मनमानी छोड़ेगी क्या? विरोधियों की टीका-टिप्पणी के संवैधानिक अधिकार को स्वीकार करेगी क्या?
शिवसेना ने कहा कि दिल्ली की सीमा पर और अब गाजीपुर में आंदोलन करने वाले किसानों को भी देशद्रोही और खालिस्तानवादी साबित करने का प्रयास हुआ, इस आंदोलन का समर्थन करने वाले राजनीतिक और गैर राजनीतिक नेता और कार्यकर्ताओं को देशद्रोही और अर्बन नक्सलवादी साबित किया गया।
दिशा रवि केस का जिक्र करते हुए शिवसेना ने कहा कि किसान आंदोलन टूलकिट प्रकरण में पर्यावरणविद दिशा रवि को विदेशी एजेंट साबित किया गया। 26 जनवरी को लाल किला और दिल्ली में जो हिंसाचार और उत्पात हुआ, उसके पहले नागरिक संशोधन कानून का विरोध करनेवालों को पाकिस्तान प्रेमी और देश विरोधी साबित किया गया। देशद्रोह कहा जानेवाला ‘राजद्रोह’ (सेडिशन) हमारे देश में पिछले कुछ सालों में सरकारी दल और उनकी भगत मंडली के चलन में आ गया है।
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Published: 04 Mar 2021, 9:51 AM