सियासी फायदे के लिए मुंबई में रावण दहन एक दिन पहले कराना चाहते हैं एकनाथ शिंदे, रामलीला आयोजकों पर सरकारी दबाव

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अपनी दशहरा रैली के लिए सदियों पुरानी प्रथा को तोड़कर रावण दहन विजयादशमी से एक दिन पहले करवाना चाहते हैं। इसके लिए आजाद मैदान में रामलीला का मंचन करने वाले आयोजकों पर दबाव बनाया जा रहा है।

यह तस्वीर पिछले साल की है जब एकनाथ शिंदे बांद्रा-कुर्ला काम्प्लेक्स में रैली की तैयारियां देखने पहुंचे थे। लेकिन इस बार यह मैदान नहीं है।
यह तस्वीर पिछले साल की है जब एकनाथ शिंदे बांद्रा-कुर्ला काम्प्लेक्स में रैली की तैयारियां देखने पहुंचे थे। लेकिन इस बार यह मैदान नहीं है।
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सुजाता आनंदन

कोई आधी सदी से उत्तर भारत के रामलीला समूह नवरात्रि के दौरान मुंबई आते रहे हैं। वे नौ दिनों तक रामायण का मंचन करते हैं और फिर दसवें दिन विजयादशमी मनाते हैं, जिसमें भव्य आतिशबाज़ी के साथ रावण आग की लपटों में भस्म हो जाता है। यह सारा कार्यक्रम आमतौर पर मुंबई की 60 फीसदी उत्तर भारतीय आबादी के लिए होता रहा है, जिनमें अधिकांश निम्न मध्यम वर्ग के प्रवासी लोग हैं जो काम की तलाश में मुंबई जैसे महानगरों में आकर बस गए हैं और उनके पास इतने साधन नहीं हैं कि त्योहार पर अपने घरों को या गृह राज्य जा सकें। वर्ष के यही कुछ दिन होते हैं जब उन्हें कुछ मनोरंजन हासिल होता है। और, यही कारण है कि दक्षिण मुंबई का आजाद मैदान, जहां यह कार्यक्रम  होता है, खचाखच भरा होता है। इतनी भीड़ होती है कि कार्यक्रम के दौरान इसमें घुसना लगभग असंभव होता है।

लेकिन इस बार, रामलीला समूहों को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के कार्यालय से एक नोटिस मिला है, जिसमें आदेश दिया गया है कि वे रावण दहन विजयादशमी के बजाए दशहरे से एक दिन पहले कर लें।

सवाल है कि आखिर क्यों?

दरअसल मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे अपनी प्रतिद्वंद्वी पार्टी और शिवसेना (यूबीटी) के उद्धव ठाकरे से काफी हद तक पिछड़ चुके हैं और मुश्किल इसलिए भी इस बार ज्यादा हो गई है क्योंकि उद्धव हमेशा की तरह इस साल भी शिवाजी पार्क में ही अपनी दशहरा रैली करेंगे। शिवाजी पार्क मैदान शिव सेना की रैली का पारंपरिक स्थान रहा है और ऐसे में शिंदे की शिवसेना के पास कोई जगह नहीं बची है।

पिछले साल, दोनों शिवसेना और इनके नेताओं के बीच शिवाजी पार्क में दशहरा रैली को लेकर काफी तूतू-मैंमैं हुई थी। मसला यह था कि शिवाजी पार्क में रैली करने पर किसका अधिकार है। महाराष्ट्र सरकार के दबाव में बीएमसी (बृहन्नमुंबई म्यूनिसिपल कार्पोरेशन) ने उद्धव ठाकरे की शिवसेना को शिवाजी पार्क में रैली की इजाजत देने से इनकार कर दिया था। इसके बाद ठाकरे ने बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख किया था, जिसने परंपराओं को देखते हुए उन्हें शिवाजी पार्क में रैली करने की इजाजत दी थी। बता दें कि शिवाजी पार्क में शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे करीब पचास साल से दशहरा रैली करते रहे थे। ठाकरे की अर्जी भी यही थी कि उन्हें इस परंपरा को जारी रखने की इजाजत दी जाए।


हाईकोर्ट के आदेश के बाद शिंदे सरकार की खासी किरकिरी हुई थी और फिर एकनाथ शिंदे ने बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स के रिक्लेमेशन ग्राउंड में अपनी रैली की थी। यह ग्राउंड ठाकरे के आवास मातोश्री के ठीक पीछे और शिवाजी पार्क से कुछ किलोमीटर दूर स्थित है। दोनों ही धड़ों ने दावा किया था कि उनकी रैली में ज्यादा भीड़ आई, लेकिन जाहिर तौर पर शिंदे की रैली के लिए महाराष्ट्र के कोने-कोने से लोगों को बसों में भरकर लाया गया था, जबकि उद्धव की रैली में मुंबई वासी और ठाकरे से सहानुभूति रखने वाले लोगों की स्वत:फूर्त भीड़ थी।

पिछले साल की स्थितियों के मद्देनजर शिंदे वाले धड़े ने इस साल शिवाजी पार्क में रैली के लिए तीन सप्ताह पहले ही अनुमति का आवेदन डाल दिया था। लेकिन अचानक ऐसा कुछ हुआ कि शिंदे गुट ने अपना आवेदन वापस ले लिया और शिवाजी पार्क मैदान को उद्धव ठाकरे गुट के लिए छोड़ दिया।

इस बाबत राजनीतिक विश्लेषकों ने कहा था कि शिंदे दरअसल दो बातों को लेकर घबरा गए हैं। पहला तो यह कि अगर शिवाजी पार्क में उद्धव ठाकरे को इजाजत नहीं मिली तो वे हाईकोर्ट का फिर रुख कर सकते हैं, और बीते साल के बाद दोनों गुटों में कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ है ऐसे में कोर्ट उद्धव के ही पक्ष में फैसला सुना सकता है। ऐसा होता तो लोकसभा चुनाव से ऐन पहले नए सिरे से शिंदे सरकार और एकनाथ शिंदे वाली शिवसेना की फिर किरकिरी होती।

एक और बात है, वह यह कि शिवसेना में दो फाड़ होने के बाद भी उद्धव ठाकरे राजनीतिक तौर पर जमे हुए हैं, हालांकि शिंदे के विधायकों की योग्यता का मामला अभी भी अधर में हैं। इसके अलावा यह भी तथ्य है कि एनसीपी और कांग्रेस दोनों ही मजबूती के साथ उद्धव ठाकरे के साथ हैं, तो उद्धव को एक तरह का अतिरिक्त लाभ है। ऐसे में शिंदे के लिए काफी शर्मिंदगी की स्थिति पैदा हो सकती है।

लेकिन, इस सबके बावजूद शिंदे ने इस साल एक और बड़ी गलती कर दी। इस साल बांद्रा-कुर्ला काम्प्लेक्स स्थित रिक्लेमेशन ग्राउंड उपलब्ध ही नहीं है, क्योंकि इस मैदान को बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट के लिए आवंटित कर दिया गया है। इसके अलावा एक और मैदान जिसे बाल ठाकरे काफी पसंद करते थे, वह है मरीन ड्राइव पर चौपाटी ग्राउंड...लेकिन वह तो काफी पहले से खुदा पड़ा है क्योंकि वहां मेट्रो प्रोजेक्ट का काम चल रहा है। हालत यह है कि यहां कार तो दूर पैदल जाना तक मुश्किल है। इसके अलावा तीन तरफ से समंदर से घिरा यह मैदान सुरक्षा के लिहाज़ से भी ठीक नहीं है।

इसके बाद शिंदे के पास सिर्फ दो ही मैदानों के विकल्प बचते हैं। एक चर्चगेट और विक्टोरिया टर्मिनस के बीच क्रॉस मैदान, लेकिन यह बहुत छोटा है और शिवसेना की दशहरा रैली जैसे विशाल आयोजन के लायक नहीं है। इसके अलावा आजाद मैदान है जो आम तौर पर मोर्चों और प्रदर्शनों के लिए जाना जाता है, लेकिन यहां रामलीला का मंचन होता है, इसलिए यह उपलब्ध ही नहीं है।


ऐसे में शिंदे ने तानाशाही हुक्म जारी कर दिया है, कि रामलीला मंडल विजयादशमी से एक दिन पहले ही रावण दहन कर लें और मैदान को उनकी रैली के लिए खाली कर दें। इस एकतरफा फैसले से महाराष्ट्र के रामलीला मंडलों में जबरदस्त नाराजगी है, और मंडल के उपाध्यक्ष संदीप शुक्ला ने साफ कहा है कि उन पर एकनाथ शिंदे-देवेंद्र फडणविस सरकार एक दिन पहले रावण दहन करने का दबाव बना रही है। शुक्ला ने कहा कि, “ऐसा करना आजाद मैदान की 48 साल पुरानी परंपरा को तोड़ने जैसा होगा, और साथ ही यह रामलीला मंचन की विरासत के साथ खिलवाड़ होगा क्योंकि सदियों से ऐतिहासिक तौर पर विजयादशमी पर ही रावण दहन होता रहा है।”

रामलीला मंडल के एक और पदाधिकारी रंजीत सिंह रामलीला के लिए देश भर के कलाकारों के आमंत्रित करते हैं। उन्होंने भी कहा कि “वे दिन रात खुद को रामभक्त कहते नहीं थकते, लेकिन जब सदियों पुरानी परंपराएं मानने की बात आती है तो वे खुद ही इसमें रोड़े अटका रहे हैं।”

शिंदे सरकार का हुक्म सामने आने के बाद कांग्रेस और उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने शिंदे और बीजेपी पर निशाना साधा है। ठाकरे ने अपने चुटीले अंदाज़ में कहा कि, “आज रावण को 50 करोड़ की जरूरत है (उद्धव की शिवसेना आरोप लगाती रही है कि शिंदे ने विधायकों को पाला बदलने के लिए 50 करोड़ रुपए दिए)।” उन्होंने कहा कि, “वे राणव को तो मानते ही नहीं हैं। वे सिर्फ खोकासुर और धोखासुर हैं।”

उधर मुंबई कांग्रेस की अध्यक्ष वर्ष गायकवाड ने भी कहा, “इन लोगों के लिए राम का नाम सिर्फ वोट बटोरने और लोगों को धमकाने के लिए होता है। लेकिन रामभक्त की संस्कारों को संजोए रखने वाले रामलीला आयोजकों को कहते हैं कि रावण का दहन एक दिन पहले कर लो ताकि आजाद मैदान में खुद के झूठे भाषण कर लें। लोगों की आस्था इनके लिए महज एक वोट तंत्र है और कुछ नहीं।”

यहां बता दें कि रामलीला मंडल काफी पहले से इस साल 24 अक्टूबर को होने वाले दशहरा की तैयारी कर रहे थे और उन्होंने काफी पहले ही आजाद मैदान के लिए आवेदन दिया था जिसे बीएमसी ने मंजूर भी कर लिया था।

इस सबके बीच एकनाथ शिंदे भले ही उद्धव ठाकरे से एक कदम आगे जाने की जुगत भिड़ा रहे हैं, लेकिन उनके कृत्यों से बीजेपी के लिए शर्मिंदगी ही बढ़ी है। आने वाले दो दिनों में क्या होगा, राम जाने....

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