बीजेपी का हिंदुत्ववादी राष्ट्रवाद का मूल एजेंडा भी फेल, चौथे चरण में सीटों के गणित से भगवा खेमे में खलबली

लोकसभा चुनाव के पहले तीन चरण में बूथ स्तर से आई खबरों से भगवा खेमा बेचैन है। इसलिए तीसरे चरण के मतदान से पहले ही उसे अपने हिंदुत्ववादी राष्ट्रवाद के मूल एजेंडे पर वापस आना पड़ा। लेकिन यह भी नाकाफी साबित हो रहा है, क्योंकि चौथे चरण में सीटों का गणित उसके पक्ष में नहीं है।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया

बालाकोट की लहरों पर सवारी की कोशिश के बावजूद पहले दो फेज की वोटिंग में बीजेपी पिछड़ गई। इसलिए तीसरा फेज शुरू होते-होते वह अपने मूल एजेंडे- हिंदुत्ववादी राष्ट्रवाद पर आ गई। मालेगांव विस्फोटों की आरोपी प्रज्ञा ठाकुर को उसने भोपाल से जिस तरह उम्मीदवार बनाया, उससे साफ है कि वह तीसरे फेज की वोटिंग से ही सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश में लग गई। लेकिन इसका भी फायदा उसे मिलता तो दिख नहीं रहा, क्योंकि सीटों पर गणित उसके पक्ष में नहीं हैं।

उत्तर प्रदेश में पिछला चुनाव एसपी, बीएसपी, आरएलडी ने अलग-अलग लड़ा था और उनके वोट बंट गए थे। इस बार इनका गठबंधन है। इसलिए बीजेपी परेशान हाल घूम रही है। मसलन, शाहजहांपुर सीट को ही लें। यहां पिछले चुनाव में बीजेपी ने 46.45 फीसदी वोट हासिल कर जीत पाई थी। लेकिन तब एसपी-बीएसपी को संयुक्त रूप से 47.11 फीसदी वोट मिले थे। यह बड़ा कारण है कि बीजेपी ने इस बार यहां अपना उम्मीदवार बदल दिया है।


यही हाल खीरी और हरदोई का है। खीरी में 2014 में बीजेपी ने 37 प्रतिशत वोट के आधार पर जीत हासिल की थी। उस बार भी एसपी- बीएसपी का संयुक्त वोट शेयर लगभग 42 फीसदी था। हरदोई सीट पर भी बीजेपी को सिर्फ 37 फीसदी वोट मिले थे, मगर एसपी-बीएसपी का संयुक्त वोट शेयर 57 फीसदी था। मिश्रिख में जरूर बीजेपी को थोड़ा अधिक- 41.33 प्रतिशत वोट मिला था। लेकिन तब भी एसपी-बीएसपी का संयुक्त वोट शेयर 52 फीसदी से भी ज्यादा था।

पिछली बार इटावा सीट बीजेपी ने लगभग 47 प्रतिशत वोट के बल पर जीती थी। मगर तब एसपी-बीएसपी का संयुक्त वोट प्रतिशत 49 फीसदी था। इस तरह की स्थिति की वजह से ही बीजेपी ने यहां इस बार अपना उम्मीदवार बदल दिया है। उसने आगरा से सांसद रहे रामशंकर कठेरिया को यहां से अपना उम्मीदवार बनाया है।


पिछली बार कथित मोदी लहर के बावजूद बीजेपी कन्नौज सीट नहीं जीत पाई थी। इस बार तो एसपी उम्मीदवार बीएसपी से गठबंधन के तहत खड़ा है। यहां कांग्रेस ने भी अपना उम्मीदवार नहीं दिया है। इसलिए बीजेपी कन्नौज में जीत की कल्पना भी नहीं कर सकती।

इस बार कानपुर में भी लड़ाई रोचक होने की संभावना है। पिछली बार बीजेपी के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी को यहां 56 फीसदी से अधिक वोट मिले थे और वह विजयी रहे थे। इस बार बीजेपी ने उनका टिकट काट दिया। डॉ जोशी ने इस पर, परोक्ष ही सही, अपनी नाराजगी जाहिर कर दी। अब यहां जीत हासिल करना बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती है।

2014 में झांसी से उमा भारती 43 फीसदी वोट के बल पर जीती थीं। इस बार वह नहीं लड़ रहीं। मगर इस सीट पर पिछली बार के एसपी-बीएसपी के मतों को जोड़ दें, तो वही 45 प्रतिशत से अधिक है। बीजेपी ने इस बार अनुराग वर्मा को अपना उम्मीदवार बनाया है।


अब बात बिहार की: चौथे फेज में यहां जिन सीटों पर वोटिंग है, उनमें दरभंगा प्रमुख है। पिछली बार बीजेपी महज 4 फीसदी वोटों के अंतर से यहां जीती थी। मगर कीर्ति आजाद के साथ पार्टी ने जिस तरह का दुर्व्यवहार किया, उससे उन्हें पार्टी छोड़नी पड़ी। वह यहां से नहीं लड़ रहे, लेकिन इस बार बीजेपी की हार के कारण बनेंगे। बीजेपी ने गोपालजी ठाकुर को प्रत्याशी बनाया है, लेकिन महागठबंधन उम्मीदवार अब्दुल बारी सिद्दीकी उनसे कहीं भारी बताए जा रहे हैं। विपक्ष के नेता के तौर पर उन्होंने नीतीश कुमार सरकार को हमेशा घुटने के बल खड़ा होने को मजबूर किया है।

यही हाल उजियारपुर का है। बीजेपी ने नित्यानंद राय को प्रत्याशी बनाया है, लेकिन एनडीए से अलग हुए उपेंद्र कुशवाहा की उम्मीदवारी के कारण बीजेपी को काफी परेशानी हो रही है। कुशवाहा जाति यहां निर्णायक भूमिका में आती है। पिछले चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार नित्यानंद राय को उपेंद्र ने समर्थन दिया था और इसके बल पर ही नित्यानंद राय की जीत हुई थी। पिछली बार कांग्रेस समस्तीपुर में जीत से महज 6000 मतों से पीछे रह गई थी। इस बार भी उन दोनों उम्मीदवारों में ही मुकाबला है जिनके बीच पिछली बार हुआ था लेकिन कांग्रेस इसलिए मजबूत है कि वह महागठबंधन में है।


बेगूसराय में स्थिति थोड़ी अलग और दिलचस्प है। बीजेपी ने अपने बड़बोले केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह को यहां मैदान में उतारा है। गिरिराज पिछली बार यहां से लड़ना चाहते थे, पर नवादा भेज दिए गए। इस बार वह नवादा से लड़ना चाहते थे, तो यहां भेज दिए गए। उन्हें दोहरी चुनौती से जूझना पड़ रहा है। आरजेडी ने 2014 के अपने उम्मीदवार तनवीर हसन पर ही विश्वास जताया है, जबकि सीपीआई प्रत्याशी कन्हैया कुमार ने भी गिरिराज के लिए परेशानी खड़ी कर रखी है। एनडीए की मजबूरी मुंगेर सीट पर भी दिख रही है। पिछले चुनाव में इस सीट पर एलजेपी की जीत हुई थी। मगर इस बार यहां से जेडीयू उम्मीदवार मैदान में है।

(इस रिपोर्ट में पेश आंकड़े अभय कुमार द्वारा)

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