सबरीमाला: पुनर्विचार याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित, मंदिर बोर्ड का यू-टर्न, अब महिलाओं के प्रवेश का किया समर्थन

सबरीमाला मंदिर में सभी महिलाओं के प्रवेश की इजाजत के मामले में दायर पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। वहीं मंदिर का संचालन करने वाले त्रावणकोर देवस्वओम बोर्ड ने मंदिर में सभी महिलाओं के प्रवेश को अनुमति देने वाले कोर्ट के फैसले का समर्थन किया।

फोटो: सोशल मीडिया 
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नवजीवन डेस्क

सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मामले में पुनर्विचार याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। सबरीमाला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार के लिए दायर याचिकाओं पर 5 सदस्यीय संविधान पीठ सुनवाई कर रही है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार के लिए करीब 48 याचिकाएं दायर की गई हैं।

सुप्रीम कोर्ट में सबरीमला मंदिर का संचालन करने वाले त्रावणकोर देवस्वओम बोर्ड ने मंदिर में सभी महिलाओं के प्रवेश को अनुमति देने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन किया। बोर्ड की ओर वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कहा कि संविधान का अनुच्छेद 25(1) सभी नागरिकों को अपने धर्म को मानने का समान अधिकार देता है।

राकेश द्विवेदी ने आगे कहा, “बोर्ड का मानना है कि यह सही दिशा में लिया गया सही फैसला है, और इससे पूजा के मामलों में महिलाओं को समानता हासिल होगी।” इस पर जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने पूछा कि आपने अपना रुख बदल लिया है? तो बोर्ड ने कहा कि हम फैसले का सम्मान करते हैं। बता दें कि इससे पहले बोर्ड ने महिलाओं के प्रवेश का विरोध किया था।

केरल सरकार ने कोर्ट में दाखिल पुनर्विचार याचिकाओं का विरोध किया है। केरल सरकार ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के पिछले साल दिए गए फैसले पर दोबारा विचार की कोई जरूरत नहीं है। फैसले पर पुनर्विचार चाहने वाले याचिकाकर्ताओं के तरफ से दलील दी गई कि केरल के लोगों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को स्वीकार नहीं किया है जिसके चलते राज्य में अशांति है। कोर्ट इस तरह अपना फैसला मानने के लिए राज्य के लोगों को बाध्य नहीं कर सकता।

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 28 सितंबर को 4-1 के बहुमत से फैसला सुनाते हुए मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को प्रवेश की इजाजत दी थी। इस बेंच ने अपने फैसले में कहा था कि सभी उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश नहीं करने देना उनके मूलभूत अधिकारों और संविधान में बराबरी के अधिकार का उल्लंघन है।

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