मध्य प्रदेश के शिव‘राज’ में इंसान की जान ‘रेत’ से भी सस्ती

शिवराज सरकार में रेत माफियाओं के हौसले इतने बुलंद हो चुके हैं कि उनके अवैध धंधे में जो भी अड़ंगा डालने की कोशिश करता है, उसकी जान चली जाती है। चाहे वे पुलिस अधिकारी हों या पत्रकार।

फोटोः सोशल मीडिया
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संदीप पौराणिक, IANS

मध्य प्रदेश में इंसान की जान रेत से सस्ती हो चली है। यह बात शायद अविश्वसनीय, अकल्पनीय और अतिशयोक्तिपूर्ण लग सकती है, मगर हकीकत यही है। यहां रेत माफियाओं के हौसले इतने बुलंद हो चुके हैं कि उनके अवैध धंधे में जो भी अड़ंगा डालने की कोशिश करता है, उसकी जान चली जाती है। चाहे वे पुलिस अधिकारी हों या पत्रकार। शिवराज सरकार के 'सुशासन' का आलम यह है कि ऐसी घटनाएं उन इलाकों में ज्यादा हो रही हैं, जहां से रसूखदार नेता निर्वाचित होते आ रहे हैं।

भिंड जिले में स्टिंग ऑपरेशन के जरिए रेत माफिया और पुलिस के गठजोड़ का खुलासा करने वाले एक निजी समाचार चैनल के पत्रकार संदीप शर्मा की ट्रक से कुचलकर हुई मौत कई सवाल खड़े कर रही है। पत्रकार संगठनों से लेकर बुद्धिजीवी और विरोधी दलों के नेता छाती पीट-पीटकर सरकार को कोस रहे हैं और इस घटना को 'पत्रकार की हत्या' करार दे रहे हैं। सरकार ने मामले की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) से कराने की सिफारिश का ऐलान कर आक्रोश की आग पर पानी डालने का प्रयास किया है। मगर सवाल उठ रहा है कि आखिर यह सिलसिला कब रुकेगा? कभी रुकेगा भी, इसमें हर किसी को संदेह है।

वरिष्ठ पत्रकार रवींद्र व्यास का कहना है, "राज्य में इस समय सरकार पर रेत माफिया हावी हो चुका है। नर्मदा हो, केन या चंबल नदी, यहां खनन पर रोक है, मगर क्या मजाल कि रेत का अवैध खनन करने वालों को कोई रोक ले। इसकी मूल वजह राजनीतिक संरक्षण और पुलिस की हिस्सेदारी है। यही कारण कि माफिया के वाहन चालक किसी को भी कुचलने, उस पर गोली चलाने से नहीं चूकते। बड़ी वारदातें तो सामने आ जाती हैं, मगर छोटे स्थान पर होने वाली ऐसी घटनाओं पर तो कोई गौर ही नहीं करता। सिपाही पर हमला, वनरक्षक से मारपीट, खनिज निरीक्षक को धमकाना तो आम हो चला है।"

रेत माफियाओं के हौसले की बात करें तो सबसे पहले याद आती है मुरैना जिले में पदस्थ प्रशिक्षु आईपीएस नरेंद्र कुमार की हत्या की। लगभग पांच साल पहले होली के दिन उन्होंने रेत से भरे एक ट्रैक्टर को जब रोकने की कोशिश की थी तो चालक ने उन्हें ही रौंद दिया था। देश में शायद यह पहला ऐसा मामला था, जब किसी आईपीएस अधिकारी को कुचलकर मारा गया हो। नवविवाहित नरेंद्र कुमार की हत्या के ठीक तीन साल बाद अप्रैल, 2015 में नूराबाद थाना क्षेत्र के आरक्षक धर्मेद्र सिंह चौहान ने एक रेत भरे डंपर को रोकने की कोशिश की, तो चालक ने उसे रौंदकर मार डाला।

इसी तरह ग्वालियर क्षेत्र में वनरक्षक नरेंद्र शर्मा ने भी जब रेत भरे वाहन को रोकने की कोशिश की तो उन्हें इसकी कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी थी।

एक तरफ ग्वालियर-चंबल में यह हाल है, तो दूसरी ओर नर्मदा नदी के तट पर बसे जिलों में भी यही कुछ हो रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज के गृह जिले सीहोर में जिस किसी अफसर ने रेत माफियाओं पर कार्रवाई की, उसे तुरंत स्थानांतरित कर दिया गया। ऐसे ही एक मामले में एक महिला अधिकारी के साथ भी बदसलूकी हुई थी। छतरपुर जिले के राजनगर में तैनात प्रशिक्षु महिला आईएएस अधिकारी सोनिया मीणा ने शिकायत दर्ज कराई थी कि उसे खनन माफिया ने धमकाया था। तब वह वहां एसडीएम के पद पर थीं। उन्होंने फरवरी, 2017 में एक खनन माफिया अर्जुन सिंह बुंदेला के वाहन जब्त किए थे, जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा था।

छतरपुर जिले में होने वाले अवैध रेत खनन पर माफियाओं के बीच गोलीबारी आम हो चली है। यहां के सत्ताधारी दल के विधायक आरडी प्रजापति ने इन मामलों को विधानसभा में उठाया था, धरना दिया था और अनशन तक कर चुके हैं, फिर भी रेत माफियाओं का कभी कुछ नहीं बिगड़ा।

राज्य में सबसे ज्यादा अवैध खनन मुरैना, भिंड, दतिया, ग्वालियर, शिवपुरी, सतना, कटनी, अशोकनगर, छतरपुर, पन्ना, सीहोर, रायसेन, नरसिंहपुर और दमोह में हो रहा है। ये वे इलाके हैं, जहां से रसूखदार नेता निर्वाचित होते आए हैं। यही कारण है कि इन्हीं जिलों में से कुछ में सरकारी कर्मचारियों पर हमले और हत्याएं हुई हैं।

कांग्रेस नता और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह का कहना है, "राज्य में रेत और अन्य माफिया समानांतर सरकार चला रहे हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि माफियाओं के धंधे में साझेदार हैं मुख्यमंत्री और मंत्रियों के रिश्तेदार। जब कोई सत्ताशीर्ष परिवार से जुड़ा व्यक्ति ही अवैध खनन करेगा, तो किस पुलिस अफसर में हिम्मत है कि उसे पकड़ सके। यही कारण है कि जो माफिया को रोकता है वह या तो जान से हाथ धो देता है या विभागीय दंड का भागीदार बनता है।"

राज्य में शराब और वन माफिया के अलावा सबसे ताकतवर रेत माफिया हो चला है। कहने को नदियों से रेत निकालने पर रोक लगी हुई है, इसी बहाने माफिया अवैध खनन करके रेत भवन निर्माताओं को पहुंचा रहे हैं और उनसे मोटी रकम वसूल रहे हैं। राज्य के कई इलाके ऐसे हैं, जहां रात में बेतहाशा भागते वाहन अवैध कारोबार का खुलासा करने के लिए काफी हैं। इन्हें पकड़ना तो दूर, रोकने तक का कोई साहस नहीं कर पाता। अब आने वाले दिनों में किस अफसर, किस पत्रकार की जान पर बन आएगी कौन जाने।

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