उद्धव की गर्जना ने भर दिया 'असली' शिवसेना में जोश, तमाम प्रतीकों के बावजूद शिंदे नहीं छोड़ पाए कोई छाप
आने वाले दिनों में क्या स्थिति बनेंगी वह वक्त के सीने में छिपी हैं, लेकिन एक बात तो स्पष्ट हो गई कि जो लोग उद्धव ठाकरे को अपने पिता बाल ठाकरे की छांव में एक भीगी बिल्ली मानते रहे, उन्हें उद्धव की टाइगर रूपी गर्जना ने चौंकाया है।
अगर कुल मिलाकर देखें तो दोनों शिवसेना की बहुप्रतीक्षित और बहु प्रचारित दशहरा रैलियां एंटीक्लाइमेक्स साबित हुईं। दोनों रैलियों में भाषण ऐसे हुए जिनका अनुमान पहले ही लगाया जा रहा था। दोनों ही मैदान खचाखच भरे नजर आए, जैसी कि आशंका थी, किसी किस्म का कोई टकराव दोनों गुटों के बीच नहीं हुआ, लेकिन इन सबके बीच उद्धव ठाकरे बेहद आक्रामक तो एकनाथ शिंदे रक्षात्मक नजर आए।
लेकिन, जब ठाकरे हमला करें और शिंदे बचाव में नजर आएं, फिर भी एक ऐसा धागा जो दोनों ही रैलियों को जोड़ रहा था। और वह धागा है हिंदुत्व पर जोर। यह भी एक तथ्य है कि असली शिवसेना अभी उद्धव ठाकरे के ही पास है, इसीलिए उनकी शिवाजी पार्क में हुई रैली में हजारों लोग मुंबई के अलग इलाकों, सबअर्ब्स और दूरदराज के शहरों से चलकर पहुंचे, जबकि शइंदे को अपनी रैली में भीड़ जुटाने के लिए महाराष्ट्र रोडवेज की कम से कम 350 बसों का इंतजाम करना पड़ा। साथ ही विदर्भ और मराठवाड़ा से लोगों को ट्रेन के जरिए भी लाया गया। एक और बात जो निकलकर आई वह यह की शिवाजी पार्क में उद्धव को सुनने आए लोग निरंतर उनके भाषण में इस्तेमाल शब्दों पर तालियां बजाते और नारे लगाते नजर आए, जबकि शिंदे की बीकेसी में हुई रैली में ऐसा नजर नीहीं आया।
शिवसेना की शिवाजी पार्क रैली में उद्धव ठाकरे ने एक वकील, एक्टिविस्ट और लेखिका सुषमा अंधारे को सामने कर हिंदुत्व का नया नैरेटिव सामने रखा। सुषमा ने शिवाज पार्क रैली में जोरदार भाषण भी दिया। यह उनका पहला राजनीतिक भाषण था। सुषमा ने अपने भाषण में उन शब्दों और वाक्यों का इस्तेमाल किया जिनका शायद आदित्य ठाकरे या उद्धव ठाकरे इस्तेमाल नहीं करते। मसलन उनका कहना कि, “एक भी ऐसा सूत्र या मंत्र बता दो जिसमें कहा गया हो कि सच्चा हिंदू होने के लिए दूसरे धर्मों के प्रति कट्टर द्वेष होना जरूरी है..” या फिर यह सवाल उठाना कि कहां लिखा है कि अपने धर्म के प्रति सच्ची निष्ठा और आस्था दिखाने के लिए किसी मुस्लिम या ईसाई को पीटना या फिर किसी अन्य धर्म के व्यक्ति को मारना जरूरी है।
सुषमा के इस भाषण पर मानों मैदान में बिजली सी दौड़ गई और वहां मौजूद लोगों ने अपने भगवा अंगवस्त्र हवा में लहराना शुरु कर दिए। इस उत्साह को देखकर निश्चित ही उन भगवाधारी साधुओं की बोली बंद हो जाती जो धर्म के नाम पर नफरत का एजेंडा चलाते हुए मुसलमानों के नरसंहार का आह्वान कर रहे हैं।
उद्धव की दशहरा रैली हुए करीब 24 घंटे होने को आए, और अब तक न तो शिंदे और न ही देवेंद्र फडणवीस की तरफ से उस किसी भी दावे का खंडन नहीं किया गया है जिनका जिक्र उद्धव ठाकरे ने रैली में किया। हां इतना जरूर कहा गया है कि उद्धव ठाकरे पुराने ही मुद्दों को उठा रहे हैं।
शिवाजी पार्क रैली में कई भावुक क्षण भी आए। ऐसे क्षण जिनका जवाब विरोधी गुट के पास शायद नहीं है। पूरा मैदान उस वक्त भावुकता में डूबा नजर आया जब उद्वव ठाकरे ने डॉक्टरों की सलाह के विरुद्ध जाकर झुककर लोगों का अभिवादन किया। ध्यान रहे कि हाल ही में उद्धव की पीठ का ऑपरेशन हुआ है और उन्हें झुकने को मना किया गया है, लेकिन जनता-जनार्दन के सामने वे झुके और उन्हें मंच पर माथा रखा।
इसी तरह जब उन्होंने कहा कि वे अपने माता-पिता की कसम खाते हैं कि वे सच बोल रहे हैं अमित शाह ने उनसे वादा किया था कि शिवसेना को ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री पद मिलेगा, तो लोग अधिक भावुक हो उठे। उद्धव ने सवाल उठाया, “अब भी आप वही कर रहे हो, तो फिर पहले क्यों नहीं किया ऐसा...” इस तरह उन्होंने शिवसेना में टूट के लिए परोक्ष रूप से बीजेपी को जिम्मेदार ठहराया।
उधर बीकेसी ग्राउंड में एकनाथ शिंदे बाल ठाकरे के हिंदुत्व का ही जिक्र करते नजर आए। वे सिर्फ इतना ही कह पाए कि बाल ठाकरे की विरासत के असली हकदार वही हैं। लेकिन इसका जवाब तो उद्धव ने ही दे दिया जब उन्होंने अपने पिता बाल ठाकरे के उस बयान की याद दिलाई कि हर व्यक्ति को, वह हिंदू हो या मुसलमान, जो भी देश को प्यार करता है, वही सच्चा शिवसैनिक है।
उद्धव ने साफ कहा कि उन्होंने अभी तक कुछ खास नहीं कहा है, लेकिन शिंदे कई स्तर पर बयानबाजी कर रहे हैं। वैसे भी शिवाजी पार्क की रैली में शिवसेना के दूसरे नेताओं ने शिंदे सरकार की बीते दो महीने की नाकामियां भी गिनाईं। खासतौर बेशुमार बारिश से परेशान किसानों का मुद्दा उठाया, वेदांता-फॉक्सकॉन को गुजरात जाने का मुद्दा उठाया। और हो सकता कि आने वाले समय में अंधेरी ईस्ट विधानसभा सीट के उपचुनाव में भी नजर आए।
आने वाले दिनों में क्या स्थिति बनेंगी वह वक्त के सीने में छिपी हैं, लेकिन एक बात तो स्पष्ट हो गई कि जो लोग उद्धव ठाकरे को अपने पिता बाल ठाकरे की छांव में एक भीगी बिल्ली मानते रहे, उन्हें उद्धव की टाइगर रूपी गर्जना ने चौंकाया है। ठाकरे ने साबित कर दिया है वे जोश से भरे हुए टाइगर हैं, जबकि शिवेसना के दहाड़ते टाइगर की फोटो समेत शिवसेना के सभी प्रतीकों को कब्जाने की कोशिश करते शिंदे महज एक दिखावटी शिवसैनिक ही हैं।
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