बिहार में बाढ़ पीड़ितों की ‘शरणस्थली’ बनी सड़कें, अब तक नीतीश सरकार की मदद नदारद
बिहार में आई भीषण बाढ़ में लाखों लोग प्रभावित हुए हैं। इनमें से हजारों पीड़ित सड़कों और तटबंधों के किनारे कामचलाऊ टेंट बनाकर वक्त गुजार रहे हैं। मुजफ्फरपुर और गोपालगंज में ये लोग सड़कों के किनारे किसी तरह दिन तो गुजार ले रहे हैं, पर रात में इन्हें डर सताता है।
बिहार के कई जिलों में आई बाढ़ ने कई लोगों को बेघर कर दिया है। अपने आशियानों के पानी में डूबने के दृश्यों को खुद निहार चुके लोग अब अपना आशियाना सड़कों के किनारे बना चुके हैं। कभी गांवों में शान से जीने वाले ये लोग आज अपने पालतू जानवरों के साथ सड़कों के किनारे रहने को विवश हैं।
बिहार में बाढ़ के कारण तटबंधों और सड़क के किनारे तंबू और कपड़ा टांगकर रहने को विवश इन लोगों को न अब प्रशसन से आस है और न ही सरकार से। ये लोग बस गांव से पानी उतरने के इंतजार में अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं कि पानी कम हो तो ये गांव में पहुंचकर उजड़ चुकी गृहस्थी को फिर से बसाएं।
मुजफ्फरपुर में राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या- 77 पर झोपड़ी बनाकर रह रहे गायघाट निवासी शंकर महतो ने कहा, "हम लोगों को प्रशासन और राजनीतिक नेताओं से अब आस नहीं है। हम बस बाढ़ के पानी के उतरने का इंतजार कर रहे हैं। अभी तक कोई भी सहायता पहुंचाने के लिए यहां नहीं आया है।"
सड़कों पर दिन और रात गुजार रहे कई लोग तो ऐसे हैं, जिन्होंने बाढ़ की आशंका के बाद अपने घर से कुछ राशन जमा कर लिया था और बाढ़ आने के बाद उसी राशन के साथ यहां आकर अपना अशियाना बना लिया। लेकिन, कई लोग ऐसे भी हैं जो बाढ़ का पानी गांव में घुसने पर अपनी जान बचाकर भागे। ऐसे लोगों की परेशानी और बढ़ गई है। इन्हें पेट भरना भी मुश्किल हो रहा है। आने-जाने वाले वाहनों से कुछ मांगकर ये अपना काम चला रहे हैं।
मुजफ्फरपुर के औराई, मीनापुर प्रखंड के लोग एनएच-77 पर तो कई गांवों के लोग एनएच-57 पर झोपड़ी बनाकर रह रहे हैं। इनके बच्चे भी इनके साथ उन दिनों के इंतजार में हैं, जब उनके गांव से पानी निकल जाएगा। औराई के बेनीपुर गांव के रहने वाले शंकर सिंह अपने पूरे परिवार के साथ झोपड़ी में पड़े हुए हैं।
बाढ़ के पानी ने इनकी जिंदगी भर की कमाई को तहस-नहस कर दिया। इनके पास तो अब बर्तन भी नहीं है, जिसमें वो खाना बना सकें। उन्होंने बताया कि आसपास के लोगों से वे बर्तन मांगकर खाना बनाते हैं। बाढ़ में कुछ बचा ही नहीं, सबकुछ डूब चुका है। हालांकि वे यह भी कहते हैं कि सामुदायिक रसोई खुलने के बाद राहत मिली है। लोग वहां जाकर खाना खा ले रहे हैं।
गोपालगंज में भी कई बाढ़ पीड़ित सडकों के किनारे आशियाना बनाकर जीवन गुजार रहे हैं। गोपालगंज में लोग सड़कों के किनारे दिन तो किसी तरह गुजार ले रहे हैं, लेकिन रात में इन्हें डर सताता है। मुजफ्फरपुर जिले के जनसंपर्क अधिकारी कमल सिंह कहते हैं कि बाढ़ प्रभावित इलाकों में राहत और बचाव कार्य चलाया जा रहा है। लोगों को सामुदायिक रसोईघर में खाना भी खिलाया जा रहा है।
बता दें कि मुजफ्फरपुर के 13 प्रखंडों के 202 पंचायतों में बाढ़ का पानी प्रवेश कर गया है, जिससे 11 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हैं। जिला प्रशासन का दावा है कि 189 सामुदायिक रसोई घर चलाए जा रहे हैं। हालांकि इस जिले में अभी तक राहत शिविर नहीं बनाए गए हैं। बिहार के 14 जिलों के 110 प्रखंडों की 45 लाख से ज्यादा आबादी बाढ़ से प्रभावित है।
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