राज्यसभा में रंजन गोगोई ने 3 साल में एक भी सवाल नहीं पूछा, अयोध्या फैसले के बाद सरकार ने भेजा था संसद
नवंबर 2019 में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद केस में फैसला देने वाली पांच जजों की संविधान पीठ में शामिल पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस अशोक भूषण के बाद अब पूर्व जज एस अब्दुल नजीर की भी अहम पद पर नियुक्ति हुई है, जिस पर सवाल उठ रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज एस. अब्दुल नजीर को आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बनाए जाने के बाद उठ रहे सवालों के बीच राज्यसभा भेजे गए पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई का ट्रैक रिकॉर्ड सामने आया है, जो अपने आप में कई सवाल खड़े करता है। इससे पता चलता है कि गोगोई का राज्यसभा में प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा है। तीन साल में बतौर सांसद गोगोई ने राज्यसभा में एक भी सवाल नहीं पूछा है। यही नहीं, सांसद में उनकी औसत उपस्थिति 29 प्रतिशत रही है, जबकि बाकी सांसदों की 79 प्रतिशत है।
दरअसल, संविधान के तहत राष्ट्रपति विशिष्ट क्षेत्रों के 12 लोगों को उच्च सदन में नामित कर सकते हैं। इसी के तहत पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को उच्च सदन भेजा गया था। लेकिन तीन साल और आठ संसद सत्र में भी पूर्व सीजेआई ने एक भी सवाल नहीं पूछा है। यहां तक कि वह किसी भी विषय पर चर्चा में शामिल नहीं हुए और न ही उन्होंने कोई प्राइवेट मेंबर बिल ही पेश किया।
यहां बता दें कि उच्च सदन में अपनी नियुक्ति पर उठे विवाद पर तब गोगोई ने कहा था कि यह उनके लिए विधायिका में न्यायपालिका का नजरिया सामने रखने का एक अवसर होगा। उन्होंने लिखा था कि उन्होंने यह ऑफर इसलिए स्वीकार किया क्योंकि वह न्यायपालिका और पूर्वोत्तर क्षेत्र से जुड़े मुद्दों को संसद में उठाना चाहते हैं। लेकिन उनके रिकॉर्ड से सच्चाई सबके सामने है।
गौरतलब है कि हाल में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज अब्दुल नजीर को गवर्नर बनाने पर एक बार फिर पूर्व जजों की नियुक्ति को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं। कांग्रेस ने इसे न्यायपालिका के लिए खतरा बताया है। कांग्रेस की यह चिंता इसलिए वाजिब है क्योंकि हाल के वर्षों में पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस अशोक भूषण को भी रिटायरमेंट के बाद अहम पदों से नवाजा गया था। और ये तीनों जज नवंबर 2019 में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद केस में फैसला देने वाली पांच जजों की संविधान पीठ में शामिल थे।
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