‘यामिन हजारिका अवॉर्ड’ से नवाजी गईं ‘इतिहास की बेटी’ राना सफ़वी, सम्मान पर बोलीं- हजारिका से मिलती है प्रेरणा
राना सफ़वी को इस अवॉर्ड को दिए जाने पर असम के डीजीपी भास्कर ज्योति महंत ने भी उन्हें अवॉर्ड की बधाई देते हुए कहा है कि वह खुद राना सफ़वी के प्रशंसक हैं। भास्कर महंत इस कार्यक्रम में मेज़बान के तौर पर उपस्थिति थे।
इल्मी दुनिया में 'इतिहास की बेटी' के तौर पर पहचान बनाने वाली इतिहासकार, शायरा और लेखिका राना सफ़वी को इस साल का ‘यामिन हजारिका अवॉर्ड 2020’ से नवाजा गया है। राना सफ़वी ने इस अवॉर्ड के मिलने पर खुशी जाहिर की है और इसे अपने लिए एक बड़ी उपलब्धि बताया है। उन्होंने कहा कि वह बहुत खुश हैं और उन्हें खुद यामिन हजारिका से प्रेरणा मिलती है।
महिलाओं में बेहद प्रतिष्ठित यह पुरस्कार असम की पहली महिला पुलिस अफसर यामिन हजारिका की याद में दिया जाता है। यामिन हजारिका को लाखों असमीज लड़कियों का रोल मॉडल होने का गौरव प्राप्त है। राना सफ़वी को यहे पुरस्कार मंगलवार 22 सितंबर को प्रदान किया गया। कोरोना महामारी के चलते कार्यक्रम को वर्चुअल के तौर पर आयोजित किया गया। राना सफ़वी यह पुरस्कार इस मशहूर पत्रकार सुहासिनी हैदर और असम के डीजीपी भास्कर ज्योति ने प्रदान किया। इस दौरान सुहासिनी हैदर और भास्कर ज्योति महंत ने राना सफ़वी की जमकर तारीफ की और उन्हें एक बड़ी प्रेरणा करार दिया, उन्होंने कहा कि यामिन हजारिका अवार्ड की राना सफ़वी ने शोभा बढ़ाई है।
दिल्ली में महिला अपराध संबंधी मामलों की पुलिस कमिश्नर रही यामिन हजारिका की 1999 में कैंसर की वजह से निधन हो गया था। तब वो सिर्फ 43 साल की थीं। यामिन हजारिका को खुले विचारों की एक बोल्ड अफसर के तौर पर पहचान मिली, जिन्होंने पुलिस में पुरुषों के वर्चस्व को कड़ी चुनौती दी। यामिन हजारिका 1977 बैच की डीएपीएनएस पुलिस अफसर थी। वह उत्तरी पूर्वी इलाके की पहली महिला पुलिस अफसर थी। अंडमान निकोबार, लक्षदीप, दमन और दीप, दादरा नगर हवेली जैसी जगहों पर वो आज भी रोल मॉडल हैं। यह पुरस्कार उनकी याद में लीक से हटकर महिलाओं में प्रेरक काम करने वाली विशेष महिला को हर साल प्रदान किया जाता है।
राना सफ़वी से पहले पांच अन्य प्रतिभाशाली महिलाओं को यह अवॉर्ड मिल चुका है। पिछले साल यह अवॉर्ड मेघालय की सामाजिक कार्यकर्ता हसीना खारबी को गुवाहाटी में प्रदान किया गया था। हसीना को मेघालय मॉडल के लिए जाना जाता है। इससे पहले पत्रकार इंद्राणी रैमेधी, एथलीट तयाबुन निशा अभिनेत्री मोलोया गोस्वामी और पर्यावरणविद पूर्णिमा देवी बर्मन को मिल चुका है।
राना सफ़वी को इस अवॉर्ड को दिए जाने पर असम के डीजीपी भास्कर ज्योति महंत ने भी उन्हें अवॉर्ड की बधाई देते हुए कहा है कि वह खुद राना सफ़वी के प्रशंसक हैं। भास्कर महंत इस कार्यक्रम में मेज़बान के तौर पर उपस्थिति थे। राना सफ़वी को इस अवॉर्ड की घोषणा के साथ ख़ासकर महिलाओं ने बेइंतहा खुशी का इज़हार किया है। महिला पत्रकारों और लेखकों में ख़ासा उत्साह है।
खास बात यह है कि राना सफ़वी के पिता खुद एक आईपीएस अफसर रहे हैं और उन्हें एक ऐसी महिला पुलिस अफ़सर की यादगार के तौर पर दिया जाने वाला अवार्ड प्रदान किया जा रहा है, जिसने उत्तरी पूर्व राज्यों में पहली बार सिविल सर्विस का एग्जाम क्रैक किया था। बता दें कि राना सफ़वी भी सिविल सर्विस का एग्जाम पास किया था, लेकिन वह फाइनल एग्जाम में शामिल नही हुई थीं। मूलतः अलीगढ़ की रहने वाली हैं। वह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की अदुभुत प्रतिभाओं में शुमार होती हैं।
जानसठ के मशहूर सय्यद घराने के अब्बास अली खान ने उनको इस अवॉर्ड मिलने पर खुशी जाहिर की है। वह कहते हैं "राना आपा ने हमेशा फ़ख्र करने का मौका दिया है। इस बार फिर हमारा सर ऊंचा हुआ है। उन्होंने लड़कियों को इल्मी दुनिया मे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। इसमें कोई संदेह नहीं है कि वो खुद भी एक रोल मॉडल हैं। उन्हें इतिहास की काफी जानकारी है इसलिए हम लोग उन्हें इतिहास की बेटी कहते हैं।”
63 साल की राना सफ़वी आधुनिक दुनिया के खबरी प्लेटफार्म सोशल मीडिया पर खासी लोकप्रिय हैं। वो चर्चित हैशटैग शेर के लिए भी जानी जाती हैं। सोशल मीडिया पर उनकी सक्रियता, रचनात्मकता और कलात्मकता चर्चाओं के केंद्र में रहती हैं। उनकी गंगा जमुनी तहज़ीब की मुहिम और रचित किताबों में आती सुगंध उन्हें दूसरों से अलग कर विशेष बनाती है। राना सफ़वी ने दिल्ली के इतिहास पर कई अदुभुत किताबें लिखी हैं। इनमें ‘शाहजहानाबाद’, ‘जहां पत्थर बोलते हैं’ और ‘फोरगेटन सिटीज ऑफ देहली’ जैसी किताबें है।
राना सफ़वी के बारे में उनके करीबी दावा करते हैं कि उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा (प्री) उत्तीर्ण की थी लेकिन वह फ़ाइनल एग्जाम में शामिल नही हुई थीं। इसके बाद उन्होंने बिहार के एक इंजीनियर ग़ज़नफर से शादी कर ली। एक जगह बातचीत में राना सफ़वी की बहन फरज़ाना ने बताया था वह अपने फैसले जिंदादिली से लेती रही हैं, जिसमें उन्होंने कोई लेबल नहीं लगने दिया। वो अभी भी समाजसेवा ही कर रही हैं।
अब इत्तेफ़ाक यह है कि राना सफ़वी को एक ऐसा अवॉर्ड मिला है जो एक सिविल सर्विस में नाम कमाने वाली एक महिला के नाम पर है। यामिन हजारिका की तरह राना सफ़वी की अम्मी की भी 2004 में कैंसर से मौत हो गई थी। जाहिर है इस अवॉर्ड से उनके जज़्बात जुड़ गए हैं।
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Published: 23 Sep 2020, 11:38 AM