रजनी तिलक: दलित नारीवादी आंदोलन की एक सशक्त आवाज
रजनी तिलक ने धार्मिक और पितृसत्तात्मक आडंबर से न सिर्फ खुद को दूर रखा, बल्कि अपने साथियों को भी तार्किक जीवन जीने और पितृसत्ता और जाति की जकड़नों के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ने के लिए प्रेरित किया।
रजनी तिलक (1958-2018) दलित नारीवादी आंदोलन की एक सशक्त आवाज थीं। वह लेखक-कवि होने के साथ-साथ एक कर्मठ संगठनकर्ता भी थीं। उन्होंने तमाम तरह के धार्मिक और पितृसत्तात्मक आडंबर से न सिर्फ खुद को दूर रखा, बल्कि अपने तमाम साथियों को भी तार्किक जीवन जीने और पितृसत्ता और जाति की जकड़नों के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ने के लिए लगातार प्रेरित किया। दिल्ली के सेंट स्टीफेंस अस्पताल में 30 मार्च, 2018 को उनका निधन हो गया।
उनकी आत्मकथा ‘अपनी जमीं, अपना आसमां’ काफी प्रशंसित हुई थी। इसमें उन्होंने उत्तर भारतीय दलित महिला के साथ होने वाले भेदभाव, अत्याचार को उसी सहजता से रखा, जिस सहजता से वह भाषण देती थीं या लोगों को जातिवाद से लड़ने को कहती थीं। उनका नया कहानी संग्रह ‘बेस्ट ऑफ करवाचौथ’ काफी विचारोत्तेजक है। इसमें उन्होंने पूरी बेबाकी से अपने अनुभवों को, खासतौर से पितृसत्ता से टकराने वाले जीवन संघर्षों को चित्रित किया है और सामाजिक आंदोलनों की भी पड़ताल की है। इस संग्रह से साफ होता है कि वह सिर्फ अंबेडकरवादी विमर्श तक ही सीमित नहीं थी, इससे बाहर समाज के बड़े बदलावों से जुड़ी हुई थीं। उनके कविता संग्रहों ‘पदचाप’ और ‘हवा सी बेचैन युवतियां’ से पता चलता है कि वह हर समय नया जोखिम उठाने को तैयार रहती थीं। सफाई-कामगारों पर, खासतौर पर दिल्ली के भीतर, उन्होंने उल्लेखनीय काम किया।
दिल्ली में एक गरीब दर्जी पिता की सबसे बड़ी लड़की होने की वजह से रजनी तिलक उच्च शिक्षा नहीं पा सकीं और यह बात उन्हें बहुत खटकती थी। उन्होंने अपने बारे में लिखा है कि किस तरह उन्होंने 1975 में हायर सेकेंडरी की परीक्षा देने के बाद कटिंग और टेलरिंग और स्टेनोग्राफी सीखी, ताकि परिजनों की मदद कर सकें। लंबे सांगठनिक अनुभव रजनी तिलक ने अर्जित किए और वे दलित आंदोलन और दलिता महिला आंदोलन के कई धड़ों के बीच संवाद की डोर भी रहीं। वह बामसेफ, दलित पैंथर, अखिल भारतीय आंगनबाड़ी वर्कर एंड हेल्पर यूनियन, आह्वान थियेटर, नेशनल फेडरेशन फॉर दलित वीमेन, नेकडोर, वर्ल्ड डिगनिटी फोरम, दलित लेखक संघ और राष्ट्रीय दलित महिला आंदोलन से जुड़ी रहीं। रजनी तिलक सेंटर फॉर अल्टरनेटिव दलित मीडिया (सीएडीएएम) की कार्यकारी निदेशक भी थीं। परिवार में उनकी बेटी ज्योति, बहन अनिता भारती और भाई अशोक भारती हैं।
दलित बहुजन नारीवादी विमर्श की इस अहम कड़ी को श्रद्धांजलि देने आज दिल्ली के निगम बोध घाट में बड़ी संख्या में लोग जमा हुए, जिसमें परिजनों के अलावा ज्यां द्रेज, बेजवाडा विल्सन, शबनम हाशमी, हेमलता महेश्वर, बजरंग बिहारी तिवारी, रजनी अनुरागी, अंजलि देशपांडे, मुकेश मानस, पुनम तुषामड आदि प्रमुख थे।
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Published: 31 Mar 2018, 7:27 PM