सावरकर पर राजनाथ सिंह के बयान को लेकर बवाल, जमकर खरी-खोटी सुना रहे हैं इतिहासकार और बुद्धिजीवी
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बयान दिया है कि सावरकर ने अंग्रेजी शासन से माफी गांधी जी के कहने पर मांगी थी। उनके इस बयान पर इतिहासकारों और बुद्धिजीवियों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। सबने लगभग एक सुर में कहा है कि राजनाथ इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश कर रहे हैं।
आजादी के बाद संभवत: यह पहला मौका है जब आरएसएस और बीजेपी ने खुलकर स्वीकार किया है कि हिंदुत्व की शुरुआत करने वाले वीडी सावरकर ने अंग्रेजी शासन से माफी मांगी थी। यह बाद किसी और ने नहीं बल्कि बीजेपी के वरिष्ठ नेता और केंद्र की मोदी सरकार में नंबर दो माने जाने वाले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कही है। उन्होंने चिरायु पंडित और दय माहुरकर द्वारा लिखिति किताब 'वीर सावरकर- द मैन हू कुड हैव प्रिवेंटेड पार्टिशन' के विमोचन के मौके पर कहा कि सावरकर महानायक थे, हैं और रहेंगे। उन्हें विचारधारा के चश्मे से देखने वालों को माफ नहीं किया जा सकता।" राजनाथ यहीं नहीं रुके, उन्होंने आगे कहा, "सावरकर के बारे में एक झूठ फैलाया जाता है कि 1910 में आजीवन कारावास की सजा काट रहे सावरकर ने ब्रिटिश हुकूमत के सामने दया याचिका दी थी। जबकि, सच यह है कि उन्होंने महात्मा गांधी के कहने पर ऐसा किया था।"
लेकिन राजनाथ सिंह यहां कुछ ऐतिहासिक तथ्य भूल गए। वी डी सावरकर को सेल्युलर जेल यानी कालापानी में 4 जुलाई 1911 को बंद किया गया। जेल जाने के छह महीने के भीतर ही सावरकर ने अंग्रेजी शासन के सामने दया याचिका दायर की। इसके बाद 14 नवंबर 1913 को सावरकर ने एक और दया याचिका दायर की। जबकि महात्मा गांधी तो उस समय दक्षिण अफ्रीका में थे। गांधी जी तो 9 जनवरी 1915 को भारत लौटे थे। ऐसे में कब और कहां से गांधी जी ने सावरकर को दया याचिका दायर करने को कहा होगा, समझ में आने वाली बात नहीं है। हालांकि सावरकर ने इसके बाद 4 और दया याचिकाएं ब्रिटिश हुकूमत के सामने दायर कीं जिसमें उन्होंने कहा था कि वे ब्रिटिश सरकार की हर तरह से सेवा करने को तैयार हैं।
इसके बाद 50 साल की सजा पाए हुए सावरकर की कैद को घटाकर पहले 13 साल किया गया और फिर उन्हें रिहा कर दिया गया। सावरकर ने 10 साल से भी कम समय पोर्ट ब्लेयर स्थिति सेल्युलर जेल में गुजारा। इतना ही नहीं ब्रिटिश हुकूमत ने सावरकर पर यूं तो राजनीतिक गतिविधियों में शामिल न होने का प्रतिबंध लगाया था, लेकिन उन्हें हिंदू महासभा की गतिविधिया जारी रखने की छूट मिली हुई ती।
राजनाथ सिंह के बयान पर इतिहासकार एस इरफान हबीब ने तीखी प्रतिक्रिया जताई है। उन्होंने कहा है कि, "हां, एक खास में रंगे इतिहास को लिखने का चलन सही में बदल रहा है जिसकी अगुवाई रक्षा मंत्री कर रहे हैं। कम से कम उन्होंने यह तो स्वीकार कर लिया कि सावरकर ने दया याचिका लिखी थी। ऐसे में अब कोई दस्तावेजी सबूत की जरूरत ही नहीं है। नए भारत का नया इतिहास...."
इसके अलावा पूर्व सांसद और वरिष्ठ पत्रकार शाहिद सिद्दीकी ने कहा है कि अब सावरकर की दया याचिका और कायरता के लिए गांधी जी को कुसूरवार ठहराया जाएगा।
सीपीआई-एमएल की पोलित ब्यूरो मेंबर कविता कृष्णन ने भी कहा है कि राजनाथ सिंह बताएं कब और कैसे गांधी जी ने सावरकर को दया याचिका लिखने की सलाह दी थी। कविता ने कहा है कि अब तो आप यह भी कहेंगे कि गांधी जी ने खुद ही गोडसे से कहा था कि वह उन्हें गोली मार दे।
कांग्रेस नेता शमा मोहम्मद ने भी राजनाथ सिंह के बयान पर प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा है कि गांधी जी ने तो खुद जेल में बरसों बिताए हैं और उन्होंने कभी भी अंग्रेजों के सामने दया याचिका दायर नहीं की। शमा मोहम्मद ने कहा है कि, "राजनाथ सिंह जी को इस झूठ पर शर्म आनी चाहिए। गांधी जी तो अंग्रेजों को सामने झुकने के बजाए जेल में ही रहना पसंद करते थे।"
गौरतलब है कि कल (मंगलवार को) ही संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भी सावरकर पर बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि आजादी के बाद से ही सावरकर को बदनाम करने की कोशिश हो रही है। उन्होंने कहा था कहा कि वीर सावरकर के बारे में लोगों में जानकारी का अभाव है। लेकिन अब लोग इस पुस्तक के जरिए वीर सावरकर को जान सकेंगे। इसके बाद स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद सरस्वती और योगी अरविंद का नंबर है। उनके बारे में भी सही जानकारियां लोगों तक पहुंचाई जाएंगी।
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