कोरोना संकट के बीच राहुल का राजीव बजाज से संवाद: बिगड़ी अर्थव्यवस्था, मौजूदा हालात समेत अहम मुद्दों पर की चर्चा
राहुल गांधी से राजीव बजाज ने कहा कि आज देश में 100 लोग बोलने से डरते हैं, 90 के पास छिपाने को है और आज कई कंकाल अलमारी से बाहर आए हैं। कई लोग नहीं बोलना चाहते हैं, देश में इन चीजों को बदलने की जरूरत है।
देश में कोरोना संकट के बीच बिगड़ी अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी लगातार विशेषज्ञों से बातचीत कर रहे हैं और केंद्र सरकार को जरूरी सलाह दे रहे हैं। इसकी कड़ी में राहुल गांधी ने आज बजाज ऑटो के मैनेजिंग डायरेक्टर राजीव बजाज से बात की।
राहुल गांधी: गुड मॉर्निंग राजीव, आप कैसे हैं?
राजीव बजाज: गुड मॉर्निंग राहुल, बहुत अच्छा। आप को फिर देखकर अच्छा लगा।
राहुल गांधी: कोविड संकट में आपके वहां क्या परिस्थिति है?
राजीव बजाज: मुझे लगता है कि हम सभी इस अनिश्चितता में कुछ निश्चितता खोजने की कोशिश कर रहे हैं। यह सभी के लिए नया अनुभव है। यह एक कड़वा मीठा अनुभव है, हम इसे ऐसा ही रहने देते हैं। हमारे जैसे कुछ लोग, जो इसे सहन कर सकते हैं, वे घर पर रहने से बहुत दुखी नहीं हैं। लेकिन जब आप अपने आसपास व्यवसायों और जनता की स्थिति देखते हैं, तो यह निश्चित रूप से मीठे की तुलना में अधिक कड़वा है। इसलिए हर दिन एक नई सीख लेकर आता है कि उसे कैसे झेलना चाहिए, चाहे वो चिकित्सा की दृष्टि से हो, व्यापार की दृष्टि से हो या व्यक्तिगत दृष्टि से।
राहुल गांधी: यह काफी गंभीर है। मुझे नहीं लगता कि किसी ने सोचा था कि दुनिया में इस तरह लॉकडाउन कर दिया जाएगा। मैं नहीं समझता कि विश्व युद्ध के दौरान भी दुनिया बंद हो गई थी। तब भी, चीजें खुली थीं। यह अकल्पनीय और विनाशकारी परिस्थिति है।
राजीव बजाज: मेरे परिवारजन और कुछ दोस्त जापान में हैं, क्योंकि कावासाकी के साथ हमारा जुड़ाव है। कुछ लोग सिंगापुर में हैं, यूरोप में बहुत सारी जगहों पर दोस्त हैं। अमेरिका, न्यूयॉर्क, मिशिगन, डीसी में करीबी दोस्त और परिवारजन हैं, तो जब आप कहते हैं कि दुनिया कभी इस तरह बंद नहीं हुई है, लेकिन जिस तरह से भारत में लॉकडाउन कर दिया गया है, वह एक ड्रेकोनियन लॉकडाउन है। क्योंकि इस तरह के लॉकडाउन के बारे में कहीं से नहीं सुन रहा हूँ। दुनिया भर से मेरे सभी दोस्त और परिवारजन हमेशा बाहर निकलने, टहलने, घूमने और अपनी ज़रूरत की चीज़ खरीदने और किसी से भी मिलने और नमस्ते कहने के लिए स्वतंत्र हैं। इसलिए इस लॉकडाउन के सामाजिक और भावनात्मक पहलुओं के संदर्भ में, वे लोग बहुत बेहतर परिस्थिति में हैं।
राहुल गांधी: और यह अचानक भी आया था। आपने जो कड़वी-मीठी वाली बात कही, वो मेरे लिए चौंकाने वाली है। देखिए, समृद्ध लोग इससे निपट सकते हैं। उनके पास घर है, आरामदायक माहौल है, लेकिन गरीब लोगों और प्रवासी मजदूरों के लिए यह पूरी तरह से विनाशकारी है। उन्होंने वास्तव में आत्मविश्वास खो दिया है। काफ़ी लोगों ने बोला है कि भरोसा खो दिया है, भरोसा ही नहीं बचा और और मुझे लगता है कि यह बहुत दुखद और देश के लिए खतरनाक है।
राजीव बजाज: मुझे शुरू से ही लगता है, यह मेरा विचार है, इस समस्या के दृष्टिकोण के बारे में में मैं यह नहीं समझता कि एशियाई देश होने के बावजूद हमने पूरब की तरफ ध्यान कैसे नहीं दिया। हमने इटली, फ्रांस, स्पेन, ब्रिटेन और अमेरिका को देखा। जो वास्तव में किसी भी मायने में सही बेंचमार्क नहीं हैं। चाहे यह जन्मजात रोग प्रतिरोधक क्षमता हो से लेकर तापमान, जनसांख्यिकी, आदि हो। वैज्ञानिकों और डॉक्टरों ने जो कुछ भी कहा है, वो यही है कि हमें इनकी तरफ कभी नहीं देखना चाहिए था।
अगर मेडिकल की दृष्टि से देखा जाए, तो एक बेहतरीन में स्वास्थ्य ढांचा स्थापित करने से शुरू करना होगा। हम सभी जानते हैं कि इस तरह की स्थिति से निपटने के लिए ऐसा कोई भी चिकित्सा ढांचा नहीं हो सकता, जो पर्याप्त हो। लेकिन कोई भी हमें यह बताने के लिए तैयार नहीं कि कितने प्रतिशत लोग खतरे में हैं? यह ऐसा दिखता है कि या तो हम खुद को तैयार कर रहे हैं या शायद हम खुद को तैयार नहीं कर सकते हैं। शायद यह कहना राजनीतिक रूप से उचित नहीं है। लेकिन जैसा कि नारायण मूर्ति जी हमेशा कहते हैं, जहाँ संदेह होता है, वहां खुलासा होता है। मुझे लगता है कि हमारे यहाँ खुलासा करने और सच्चाई के मामले में कमी रह गई और फिर यह बढ़ता गया और लोगों में इतना बड़ा भय पैदा कर दिया है कि लोगों को लगता है कि यह बीमारी एक संक्रामक कैंसर या कुछ उसके जैसी है। और अब लोगों के दिमाग को बदलने और जीवन पटरी पर लाने और उन्हें वायरस के साथ सहज बनाने की नई नसीहत सरकार की तरफ से आने वाली है। इसमें लंबा समय लगने वाला है। आपको क्या लगता है? मुझे तो ऐसा ही लगता है।
राहुल गांधी: मैं कुछ विशेषज्ञों और निष्णात लोगों से बात कर रहा था। और लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में ही, उनमें से एक ने मुझे जो कहा, वो प्रभावी था, उसने कहा, जिस पल एक पूर्ण लॉकडाउन लागू करते हो, तुम बीमारी की प्रकृति बदल रहे हो। आप इस गैर घातक बीमारी को लोगों के दिमाग में एक घातक बीमारी बना रहे हैं। एक बार जब आप ऐसा कर लेते हैं, तो उसे पलटने के लिए बहुत समय और प्रयास चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि लॉकडाउन को ऑन-ऑफ स्विच के रूप में न देखें। यह ऑन-ऑफ स्विच होने वाला नहीं है। एक बार जब आप लॉकडाउन में चले गए, तो इसे फिर से खोलना आसान नहीं होगा। यह बेहद जटिल होने वाला है। मुझे आपकी बात पसंद आई, हम पश्चिम को देखते हैं, पूर्व की ओर नहीं। आपके अनुसार हम पश्चिम की ओर क्यों देखते हैं?
राजीव बजाज: मुझे लगता है कि कुछ लोग कहते हैं, यह पहली बार जब भारत में 100,000 बच्चों को मरने वाले टीबी या निमोनिया या डायरिया के विपरीत ऐसा कुछ है। यह ऐसा कुछ है कि जिसने विकसित दुनिया के सीधे दिल में चोट मारी है। जब अमीर और प्रसिद्ध लोग इससे प्रभावित होते हैं, तो एक बड़ी हैडलाइन बनती है। जैसा कि किसी ने इस समस्या के शुरुआती दिनों में कहा था, कि अफ्रीका में हर दिन 8000 बच्चे भूख से मरते हैं। एक बिंदु से आगे सिविल सोसाइटी में इसकी कौन परवाह करता है, हम इस स्थिति के बारे में जानते तक नहीं हैं। मुख्य रूप से यह सनसनी इसलिए थी, क्योंकि विकसित देशों में समृद्ध लोग इससे प्रभावित थे और शायद लोगों ने सोचा कि इन लोगों को ये हो सकता है, तो हम कहीं के नहीं रहे।
इस तरह की भावना। मैंने अक्सर लोगों से कहा है कि एक आम आदमी के रूप में मैंने देखा कि हमारे सामने 4 विकल्प थे-
1 एक तरफ, अगर मैं कह सकता हूं तो एक कठिन लॉकडाउन विकल्प है। जिसका अर्थ है एक अभेद्य लॉकडाउन। और मेरी जानकारी में यह दुनिया में कहीं भी नहीं हुआ है। अपने आप को अपने घर बंद कर लो और किसी से मत मिलो।
2 दूसरी तरफ मैं कहूंगा, हमेशा की तरह व्यापार को चलने दो। जो होगा, सो होगा।
यह भी कोई नहीं कहता। हर कोई बीच का रास्ता खोजने की कोशिश कर रहा है। दुर्भाग्य से, भारत ने न केवल पश्चिम की तरफ देखा, बल्कि पश्चिम में बहुत आगे चला गया। मुझे लगता है कि हमारा झुकाव दूसरे पक्ष की ओर रहा। हमने एक कठिन लॉकडाउन को लागू करने की कोशिश की, जो अभी भी कमजोर था। हम दोनों विकल्पों के बुरे परिणामों के बीच फंस गए।
एक तरफ कमजोर लॉकडाउन यह सुनिश्चित करता है कि वायरस अभी भी मौजूद रहेगा और जैसा कि आपने कहा था, यह अभी भी अनलॉक होने का इंतजार कर रहा है। तो सरकार ने उस समस्या को हल नहीं किया है।
लेकिन निश्चित रूप से अर्थव्यवस्था को नष्ट कर दिया है। संक्रमण को समतल करने के बजाय जीडीपी को समतल कर दिया। यह वही है जो हमने समाप्त किया है। मेरे विचार में केंद्र के मोर्चे पर सही किए जाने की जरूरत थी। ठीक वैसा करने की जरूरत थी, जैसा हम जापान और स्वीडन से सुन रहे हैं। और जब लोग हर्ड इम्युनिटी के बारे में सुनते हैं, तो इसका मतलब कमजोरों को मरने देना है। इसका मतलब यह नहीं है। वे बारीकियों को भूल रहे हैं, चाहे वह स्वच्छता हो, मास्क या डिस्टेंसिंग हो। स्वीडन, जापान इनका पालन कर रहे हैं, लेकिन जैसा आपने कहा, वे बिना लक्ष्य के आगे जाने की कोशिश नहीं कर रहे हैं। कुछ ऐसा किया जाए, जो अपेक्षाकृत अधिक बेहतर और प्रबंध योग्य हो जो घातक और नियंत्रण से परे हो। मुझे लगता है कि दुर्भाग्य से हमारे पास एक आधा सख्त लॉकडाउन है जो मैं कहूंगा, जिसने हमें दोनों विकल्पों के बुरे परिणाम दिए हैं।
राहुल गांधी: और हमारी स्थिति को देखते हुए, यह पूरी तरह से अलग है। हमारे पास प्रवासी हैं, दैनिक मजदूर हैं और किसी कारण से, हम पश्चिम की ओर देखते हैं तो, मेरे लिए दिलचस्प सवाल यह है कि हम अपने समाधान के लिए अपने भीतर क्यों नहीं देखते हैं। पश्चिम या पूर्व की ओर देखने के बजाय, हमने यह क्यों नहीं कहा कि हम वास्तव में एक आत्मविश्वास से भरपूर देश हैं, चलो अपने आप को देखें और भारतीय समाधान के साथ सामने आएं, यह वैसा ही है, जैसा आप अपनी मोटर साइकिल के साथ करते हैं। यह एक प्राकृतिक विकल्प क्यों नहीं बना?
राजीव बजाज: तो अगर आपके पास मार्च के मध्य में वापस जाने का विकल्प होता, जब प्रधान मंत्री जी ने जनता कर्फ्यू की घोषणा की और फिर पहले लॉकडाउन की घोषणा की। यदि आप उस समय वापस जा सकते हैं, तो आपके दिमाग में पिछले तीन महीनों के लिए क्या अलग रोडमैप रहता ?
राहुल गांधी: चूंकि यह समय गुजर चुका है, इसलिए मेरे लिए रोडमैप बताना बहुत आसान । लेकिन उस समय कांग्रेस पार्टी में आंतरिक रूप से हमारी जो चर्चा थी, इसका जवाब हम विकेंद्रीकरण के जरिए दे सकते हैं। केंद्र सरकार को एक समर्थन प्रणाली और एक Enabler के रूप में काम करना है। कुछ चीजें जो केंद्र सरकार को करने की जरूरत है- हवाई यातायात, रेलवे। लेकिन फिर लड़ाई को हमें जिलास्तर तक ले जाना था, मुख्यमंत्री तक ले जाना था और उन्हें अनुमति देना था तथा इस विपदा से लड़ने के लिए सक्षम बनाना था।
अब अगर आप देखते हैं कि लॉकडाउन के बाद क्या हुआ है और यही कारण है कि मैं इसे एक असफल लॉकडाउन कहता हूं, यहाँ लॉकडाउन खुलने के बाद संक्रमित मरीजों की संख्या में वृद्धि हो रही है। और आप पाएंगे कि हम उसी परिस्थिति में वापस जा रहे हैं। केंद्र सरकार अपने कदम पीछे खींच चुकी है और राज्यों के भरोसे स्थिति छोड़ने को मजबूर है। तो सही जवाब अब स्वतः शुरू हुआ है।
राजीव बजाज: एक आम नागरिक के रूप में यह हमारी धारणा बन रही है कि यह सब किसी रणनीति के तहत न होकर जिम्मेदारी दूसरे के सिर पर डालने के रूप में हो रहा है।
राहुल गांधी: ठीक है, यही बात हो सकती है। लेकिन परिणाम यह है कि भारत में 2 महीने का पॉज बटन है। भारत अब वापस पीछे जा रहा है और उस तरह से प्रतिक्रिया दे रहा है, जिस तरह से उसे पहले दिन प्रतिक्रिया देनी चाहिए थी। अब देश ने बागडोर अपने हाथ में ले ली है। आप एक अलग रणनीति देख सकते हैं। आप पंजाब में एक रणनीति देख सकते हैं, आप छत्तीसगढ़ में एक रणनीति देख सकते हैं, आप महाराष्ट्र में एक रणनीति देख सकते हैं। कुछ दूसरों की तुलना में बेहतर करेंगे। आपको पहले से अधिक प्रतिक्रिया मिली, जहां नुकसान अचानक कम हो जाएगा। स्थिति से निपटने की क्षमता में सुधार होगा। वह इसका एक पहलू है।
इसका दूसरा पहलू है, और मुझे लगता है कि यह बिल्कुल बुनियादी है। मैंने देखा कि जर्मनी, अमेरिका, कोरिया, जापान ने क्या किया है। अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए बहुत बड़े पैमाने पर पैसा डाला। मैं एक बड़े व्यवसायी व्यक्ति से बात कर रहा हूं, आप इसे बड़े व्यवसाय, छोटे व्यवसाय, मजदूर के तौर पर नहीं देखते हैं। आप इसे हमारे सबसे बड़े संसाधन हमारी अर्थव्यवस्था के रक्षण के रूप में देखते हैं। हमें हर कीमत पर अपनी अर्थव्यवस्था की रक्षा करनी होगी। जिस किसी को अभी सहयोग की जरूरत है, उसे सहयोग दिया जाना चाहिए। तो यह एक रणनीति का दूसरा घटक होगा।
कुछ लोगों का तर्क है कि आप लघु और मध्यम व्यवसायों को सहयोग के बारे में जानते हैं। बिल्कुल, 100% लेकिन छोटे उद्योग और श्री बजाज के बीच एक संबंध है। छोटे उद्योग बड़े व्यवसायों के बिना काम नहीं कर सकते। इसे सम्पूर्ण ढाँचे के तौर पर देखना चाहिए। मेरे विचार में जो केंद्रीय बात है, जो मैंने मेरे छोटे से अनुभव में सीखा है। भारत में अगर आप कुछ करना चाहते हैं, तो दयालु बनें। दयावान बनो, और सुनो। और देश अपने आप आपको बताएगा कि क्या चाहिए। तो अभी लोग परेशानी में हैं और सबसे ज्यादा दिहाड़ी मजदूर, मैनुअल मजदूर, किसान और छोटे उद्योग कष्ट में हैं। लेकिन बड़े व्यवसाय की भी परेशानियां हैं, क्योंकि वे भविष्य नहीं देख पा रहे हैं। तो इसका एक बड़ा पहलू, आत्मविश्वास पैदा करना है। आत्मविश्वास पैदा करने का काम सरकार का है, वो कहे कि हम हैं। देश में एक भयानक समय आ गया है, एक वायरस है जिसने हर किसी को चोट पहुंचाई है, अब हम हर किसी का सहयोग करने जा रहे हैं और इस स्थिति के लिए सभी को एक साथ लेकर चलना है। इसलिए यह एक ऐसी सहानुभूति है, जिसकी हर भारतीय नागरिक को जरूरत है, चाहे वह बड़ा व्यवसाय हो, मध्यम व्यापार, किसान या मजदूर, ताकि वो कहें कि, ''हाँ भाई हो जाएगा, निकल जाएंगे, नैया पार लग जाएगी।'' इस भावना को पूरा करने की जरूरत है। मेरा मुख्य रूप से यह मानना है कि जब आपके टॉप-डाउन की स्थिति होती है, तो वहां सहानुभूति नहीं होती है.. फिर आप मूल रूप से लोगों के लड़ने का आत्मविश्वास तोड़ देते हैं। यह मेरा लंबा विस्तृत हो गया। मुझे नहीं पता कि आप इसके बारे में क्या सोचते हैं?
राजीव बजाज: मैं आपकी बात के अधिकांश हिस्सों से सहमत हूं। उसमें बस कुछ जोड़ना है।
मैं पुणे के पुलिस कमिश्नर डॉ. वेंकटेशम के साथ बात कर रहा था, बहुत अच्छे आदमी हैं। मैंने उनसे कहा कि डॉक्टर साहब, 50 वर्षों से मैं पुणे में रहता हूं और मैं इस तथ्य के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील हूं, कि दुनिया में सड़क दुर्घटनाओं से होने वाली मौतों की संख्या में से भारत में सबसे ज्यादा है। जो भी कारण हो, लेकिन परिणाम यही है। लेकिन मैंने आज तक कभी ऐसा नहीं देखा जब 30-40-50 तक के लोग बिना हेलमेट बाइक चलाते हैं, तो पुलिस वाले क्या करते हैं? 99.9% समय कुछ नहीं करते। दूसरी ओर, किसी ने अगर मास्क नहीं पहना या सुबह की सैर के लिए कोई बाहर निकलता है, आप उन्हें डंडे मारते हैं, उन्हें बीच सड़क अपमानित करते हैं। आपने उनके हाथ पर बोर्ड लगा दिया कि मैं देशद्रोही हूँ, गधा हूँ आदि। जिस तरह से हम अपने ही लोगों के साथ व्यवहार कर रहे हैं, उसकी तुलना में हम कहाँ हैं? आपने करुणा की बात की। मैं उन उदाहरणों के बारे में बात कर रहा हूं जो मैंने यहां अपनी आंखों से देखे हैं। मैंने देखा है कि बस कुछ ताजा हवा पाने के लिए बाहर निकलने पर बुजुर्गों को डंडे से मारा जाता है।
हम जापान, अमरीका के लोगों को 1000 डॉलर प्रति व्यक्ति देने की बातें सुनते हैं, प्रोत्साहन के रूप में नहीं, सहयोग के रूप में। हम यहां प्रोत्साहन के बारे में बात भी नहीं कर रहे हैं। हम सिर्फ समर्थन की बात कर रहे हैं, चाहे वह बड़े व्यवसायों, छोटे व्यवसाय और व्यक्तियों के लिए हो। मुझे पता है कि ये संख्या कितनी विश्वसनीय है। लेकिन मुझे बताया गया है,दुनिया में कई जगहों पर सरकार ने जो दो तिहाई काम दिए हैं, वे प्रत्यक्ष लाभ के रूप में संगठनों और लोगों के पास गए हैं। जबकि भारत में यह केवल 10% है। आप ज्यादा बेहतर बता सकते हैं कि हमने लोगों को सीधा सहयोग क्यों नहीं दिया?
राहुल गांधी: कांग्रेस में यह पूर्व प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री और मेरे सहित सबको चौंकाने वाला है। मैं यह पता लगाने की कोशिश कर रहा हूं। कुछ दिन पहले, मैंने एक जानकार के जरिए कुछ सरकारी लोगों को एक सन्देश भेजा था, मैंने कहा कि मुझे समझ नहीं आ रहा है कि आप प्रोत्साहन पैकेज क्यों नहीं दे रहे हैं। क्योंकि तार्किक रूप से इसकी आवश्यकता है। और मैंने कहा, इसकी राजनीति को भूल जाओ, बस मुझे इसका तर्क दो। मैं तर्क को समझना चाहता हूं, क्योंकि मुझे इसका मतलब समझ नहीं आ रहा। और मुझे जो प्रतिक्रिया मिली, वो कुछ बिंदु थे।
पहला- चीन के संबंध में भारत के लिए बहुत बड़ा अवसर है
दूसरा -अगर हम मजदूरों की सहायता करते हैं, तो उनकी आदत खराब हो जाएगी और वे अपने गांवों से वापस नहीं आएंगे।
तीसरा- इससे हमारे यहाँ निवेश करने वाले अंतरराष्ट्रीय समुदाय में गलत संदेश जाएगा।
चौथा- बाद में हम इन मजदूरों और छोटे उद्योगों को पैसा देने पर विचार कर सकते हैं।
आपकी छवि आपकी मजबूती पर निर्भर होती है, आपकी मजबूती आपकी छवि पर नहीं। लेकिन यहां आप छवि को को बचा रहे हैं और मजबूती को नष्ट कर रहे हैं।
आपके यहाँ निवेश आपकी छवि के कारण नहीं, बल्कि वे इस बात के लिए निवेश करने जा रहे हैं कि आप क्या हैं और आपके पास क्या है और आपकी अर्थव्यवस्था क्या है, उस पर निर्भर है। इसलिए पहला तर्क होना चाहिए, उस अर्थव्यवस्था की रक्षा करना।
यदि आप उस अर्थव्यवस्था का अच्छी तरह से बचाव करते हैं, तो आपके पास एक छवि होगी और आप जिसे भी आप निवेश के लिए बुलाना चाहेंगे, वो आएँगे। यदि आपके पास अर्थव्यवस्था नहीं बची है, तो कुछ भी नहीं बचेगा।
राजीव बजाज: मैं दृढ़ता से मानता हूं कि भारत जैसा बड़ा देश खुद को मुसीबत से नहीं बचा सकता। उसको मुसीबत से निकलना पड़ता है। हमें फिर से मांग पैदा करनी होगी, हमें कुछ ऐसा करना होगा जो लोगों के मूड को बदल दे। हमें मनोबल बढ़ाने की आवश्यकता है। और मुझे समझ में नहीं आता है कि कोई मजबूत पहल क्यों नहीं है, भले ही यह 6 महीने या सालभर की अवधि के लिए हो और मांग को एक प्रोत्साहन प्रदान करना हो।
राहुल गांधी: कोरोनावायरस से पहले अर्थव्यवस्था धीमी हो गई। कोरोनावायरस से पहले बेरोजगारी एक गंभीर समस्या बन रही थी। अब कोरोना ने इसे एकदम किनारे पर धकेल दिया। आपके हिसाब से भारत बेरोजगारी की समस्या से कैसे निपटे? हम आगे इसके बारे में कैसे सोच सकते हैं? आप निश्चित रूप से इस दुविधा का एक हिस्सा हैं। लघु और मध्यम उद्योग इसका एक बहुत बड़ा हिस्सा हैं। हम उत्पादन को कैसे प्रोत्साहित करेंगे? मैं उन लोगों में से नहीं हूं, जो यह सोचते हैं कि भारत का निर्माण बिना उत्पादन बढ़ाए मुमकिन है। तो हम वैश्विक मंच पर प्रतिस्पर्धा कैसे शुरू करें?
राजीव बजाज: एक दिन मैं ब्राजील के संभावित उम्मीदवार का साक्षात्कार कर रहा था, क्योंकि बजाज अब ब्राजील में प्रवेश करने के बारे में सोच रहा है और मैंने उससे एक प्रश्न पूछा। ब्राज़ील में होंडा का दबदबा है, दूसरी जापानी कंपनियां हौंडा को पीछे नहीं छोड़ पाई है, आपको क्यों लगता है कि बजाज के पास एक मौका है। उसने कुछ बहुत ही सरल बात कही। लेकिन अक्सर सत्य सरल चीजों में रहता है। बजाज में मुझे यूरोपीय डिजाइन और जापानी गुणवत्ता और भारतीय कीमतों का एक संयोजन दिखाई देता है। मुझे लगता है कि यह कई भारतीय कंपनियों के लिए एक जादू का फार्मूला है। आप मिक्सर ग्राइंडर बना रहे हैं या मोटरसाइकिल, यह कोई मायने नहीं रखता है। यह जो कुछ भी है, मुझे लगता है कि यदि आप इस दृष्टि से देखते हैं तो दुनिया आपकी मुट्ठी में हो सकती है। इसलिए मुझे लगता है कि वैश्विक स्तर पर खेलने की चाह से मांग पैदा होना शुरू होती है। इसका मतलब होगा कि आपको उन चीजों पर ध्यान केंद्रित करना होगा, जो आप कर सकते हैं। यदि आप धोनी बनना चाहते हैं, तो आप एक ही समय में छह खेल नहीं खेल सकते। सब लोग जानते हैं। एक महान शेफ, एक महान खिलाड़ी, एक महान डॉक्टर, एक महान संगीतकार जो वे सभी विशेषज्ञ हैं। भी विशेषज्ञ बनना पड़ेगा। मुझे लगता है कि रणनीति का सरल अर्थ विशेषज्ञता है।
राहुल गांधी: लेकिन आपके द्वारा कही गई बातों में, मुझे एक बात बहुत दिलचस्प लगी। आपने कहा कि जापानी तकनीक, यूरोपीय स्टाइल और भारतीय कीमतें। आप मूल रूप से कह रहे हैं कि भारत एक पुल है। भारत विभिन्न संस्कृतियों और प्रणालियों को जोड़ने वाला पुल है। यह ऐसी चीज है जो भारत में ऐतिहासिक रूप से बहुत अच्छी रही है। जब भी हम सफल हुए हैं, तो हमने हमेशा एक पुल के रूप में काम किया है। चाहे वह हमारी विदेश नीति हो या व्यापार प्रणाली हो या हमारा दर्शन हो। हमारे पास वह क्षमता है, जो कई देशों या सभ्यताओं के पास नहीं है। वह हमारे लिए एक शक्तिशाली चीज है।
राजीव बजाज: और मैं आपसे सहमत हूं। यह एक बहुत ही मान्य बिंदु है और मैंने कभी इसे इस तरह नहीं देखा। मुझे लगता है, मैं खुद से पूछ रहा था जैसे आप बोल रहे थे कि ऐसा क्यों है। मुझे लगता है यह निश्चित ही आंशिक रूप से हमारा स्वभाव, आंशिक रूप से अंग्रेजी में हमारी प्रवीणता है। लेकिन इससे इतर, जब मैं उस पर चिंतन करता हूं, तो मुझे लगता है कि यह इसलिए है, क्योंकि हम एक व्यक्ति के रूप में बहुत सकारात्मकता हैं। मेरा मतलब यह नकारात्मक नहीं है। मैं कहूंगा, हम सीखने-समझने के लिए और अधिक खुलेपन का प्रदर्शन करते हैं। कभी-कभी हो सकता है कि हम उनसे प्रभावित होकर करते हैं। कभी-कभी हम वास्तव में बौद्धिक रूप से किसी चीज को चालू करते हैं; लेकिन जो कुछ भी है, हम लोगों के रूप में बहुत खुले हैं, एक देश के रूप में काफी सकारात्मक लोग हैं। यह कभी-कभी हमारे खिलाफ काम कर सकता है। यह खुलापन, कभी नहीं खोना चाहिए। जैसा कि आप कह रहे थे, यह बहुत महत्वपूर्ण है चाहे वह सरकार के संदर्भ में हो या व्यवसाय के संदर्भ में।
राहुल गांधी: आपने खुलेपन की बात कही। सही बात है, हममें खुलापन है, हमारी सभ्यता में खुलापन है। क्योंकि हमारे देश में परंपरागत रूप से एक निश्चित सहिष्णुता रही है। मेरा मतलब है, जो कहना है, कह दो। और ऐसा ही हुआ है। किसी को लगता है कि पिछले कुछ वर्षों में काफी कम हो गया है। मेरा मतलब है, मैं आपके साथ स्पष्ट रहूंगा। कल, मेरे एक मित्र ने मुझसे पूछा कि आपका अगला संवाद किसके साथ है? और मैंने मैंने उसे बताया कि मैं मिस्टर बजाज से बात कर रहा हूं और उस आदमी ने कहा, "दम है बंदे में''। तो मैंने कहा, क्या मतलब? और उसने कहा, ''अच्छा है, उनमें आपसे बात करने की हिम्मत है?
राजीव बजाज: मैं आपको अपना अनुभव बताता हूँ। आपकी तरह मैंने भी किसी के साथ साझा किया कि मैं कल 12 बजे राहुल से बात करने जा रहा हूँ और ये बातें करने जा रहा रहा हूं। उसकी पहली प्रतिक्रिया थी, यह मत करो। मैंने कहा, लेकिन क्यों नहीं ? उसका जवाब था- मत करना, इससे आपको परेशानी हो सकती है। लेकिन मैंने कहा, मैंने कुछ बातें कही हैं, शायद थोड़ी बहुत सख्ती से, लेकिन मैंने इसे NDTV इकनोमिक टाइम्स, आजतक पर कहा है, इतने सारे चैनलों पर, मीडिया में कहा, तो अब अगर गलती है, तो वो हो चुकी है। उन्होंने कहा, नहीं, मीडिया में बोलना अलग बात है, लेकिन राहुल गांधी से बातें करना दूसरी बात है।' मैंने उसे विस्तार से बताया, मैं आपको बहुत स्पष्ट रूप से बताता हूं। मैंने कहा, हम व्यापार, अर्थशास्त्र, लॉकडाउन के बारे में बात करने जा रहे हैं, क्या करें, कैसे आगे बढ़ें, प्रौद्योगिकी, उत्पाद, वो मोटरसाइकिल से प्यार करते हैं और इसलिए हम मोटरसाइकिल आदि के बारे में बात करेंगे ? अभी ये बातें भी नहीं हो सकती क्या? फिर भी वो इस बात पर टिका रहा कि क्यों जोखिम लेते हो?
राहुल गांधी: क्या आपको लगता है कि इस प्रकार का वातावरण, जिसके बारे में आपने बात की, भारत में व्यापार के लिए नुकसानदेह है?
राजीव बजाज: देखिए, बिना उत्साह और आत्मविश्वास के कोई निवेश नहीं करता। तो इसमें तो कोई संदेह है नहीं। अब सवाल ये उठता है कि अगर हिंदुस्तान में 100 लोग बोलने से डरते हैं, तो 90 के पास छिपाने के लिए कुछ है। देखिए हमें यह भी स्वीकार करना चाहिए कि पिछले कुछ वर्षों में, मैं कहूंगा कि यूपीए 2 और एनडीए 1 में बहुत सारे कंकाल अलमारी से बाहर आ चुके हैं। इसलिए व्यवसायी भी दूध का धुला नहीं है। और बहुत सारे उदाहरण जो हमने देखे हैं, इसलिए, शायद, मेरा विचार है कि बहुत सारे लोग नहीं बोलते हैं, इसके विपरीत, जैसे कि कई लोग मेरे पिताजी की तरह बोलने का जोखिम नहीं उठा पाते हैं। तो, यह भय हो सकता है, लेकिन सवाल यह है कि क्या डर है? हो सकता है कि उन्हें कुछ छिपाने का डर हो। दूसरा, मैं कहूंगा कि ऐसे लोग हैं और बहुत लोग हैं, जो बोलना नहीं चाहते। जो नहीं करना चाहते हैं, क्योंकि वे अपने रास्ते में आने वाली प्रतिक्रिया से नहीं निपट सकते, आप जानते हैं, और थोड़ा मैं उस श्रेणी में आता हूं। आपको पता है कि यही कारण है कि मैं सोशल मीडिया पर नहीं हूं और कुछ चैनलों का नाम लिए बिना मैं आपसे कहूंगा कि कल भी, मुझे एक बहुत बड़े चैनल से निमंत्रण मिला था, जिसका झुकाव सरकार की तरफ है और मैं इस तरह के चैनलों पर जाने से इनकार करता हूं, क्योंकि सोशल मीडिया पर जिस तरह का कंटेंट देखने को मिलता है, ऐसे चैनलों पर पैनलों में वही तरीका किसी थोड़े-बहुत संवेदनशील व्यक्ति को गहराई से परेशान करता है। इसलिए, मुझे लगता है कि सहिष्णु होने के मामले में, संवेदनशील होने के संदर्भ में, मुझे लगता है, भारत को कुछ चीजों को सुधारने की जरूरत है।
राहुल गांधी: अंतिम प्रश्न। अब हम लॉकडाउन खोलने की प्रक्रिया में हैं, आप अपनी सप्लाई चैन खला के बारे में कैसा सोचते हैं, आपकी सप्लाई चैन वास्तव में कब उचित स्तर पर कार्य करना शुरू कर देगी? किसको पूरी तरह से खोलने की आवश्यकता है?
राजीव बजाज: देखिए, मैं अनलॉक करने की दिशा में सहज, ठोस, लयबद्ध गतिविधि नहीं देख रहा हूं। जो मैंने कल सुना उसके आधार पर हां, मैं समझता हूं कि हम उस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। लेकिन मुझे लगता है कि जो एक संगठित दृष्टिकोण आवश्यक है कि भाई एक व्यक्ति एक बात कहेगा, अभी मुझे नहीं पता कि वह राज्य का सीएम होगा या डीएम होगा या जो भी होना चाहिए और सभी को एक साथ मिलकर आगे बढ़ना चाहिए। यह नहीं हो रहा है और मुझे लगता है कि इसका दोष उस डर को जाता है, जो हमने पहले बनाया है कि संक्रमण का मतलब मृत्यु है। और आज जैसे-जैसे संक्रमण बढ़ रहा है, लोग अभी भी इस बात को आगे बढ़ा रहे हैं, इसलिए मुझे खेद है कि मैं सीधे आपके सवाल का जवाब नहीं दे रहा हूं, लेकिन मैं वास्तव में व्यथित हूं क्योंकि लॉकडाउन खोलना एक बेहद कठिन कार्य है।
मुझे लगता है कि पहली समस्या लोगों के दिमाग से इस डर को बाहर निकालना है। इसके बारे में स्पष्ट बात होनी चाहिए। मैं इसके लिए पीएम से कहूंगा क्योंकि, सही या गलत, जब भी वो कुछ कहते हैं, ऐसा प्रतीत होता है कि लोग उनका अनुसरण करते हैं। मुझे लगता है कि उनको सामने आकर सभी को यह कहने की ज़रूरत है कि हम कैसे आगे बढ़ने वाले हैं, सब नियंत्रण में है, संक्रमण से डरो मत, आप जानते हैं लगभग कोई नहीं मर रहा है और हमें अब आगे बढ़ना होगा।
राहुल गांधी: बहुत-बहुत धन्यवाद राजीव। आपसे बात करके बहुत अच्छा लगा।
राजीव बजाज: धन्यवाद। अपना समय देने के लिए धन्यवाद। बहुत बहुत धन्यवाद, वास्तव में यह सराहनीय है।
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