सरकार के असली मार्गदर्शक तो राहुल गांधी ही हैं, कोरोना संकट ने बीजेपी नेताओं की समझ की पोल-पट्टी खोल दी
अन्य वैक्सीन को भी जल्द मंजूरी देने के लिए राहुल गांधी के पीएमओ को पत्र पर रविशंकर प्रसाद ने उन्हें ‘विफल पार्ट टाइम नेता’ करार देते हुए दवा कंपनियों की लॉबिंग का आरोप लगाया। लेकिन पत्र के चार दिन बाद सरकार ने बिल्कुल वही किया जैसा राहुल ने सुझाव दिया था।
एक साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सर्वदलीय बैठक में दावा किया था कि ‘न तो कोई हमारे क्षेत्र में घुसा है और न ही हमारी किसी चौकी पर कब्जा हुआ है।’ इस पर राहुल गांधी ने सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि चीनी आक्रामकता के आगे भारतीय जमीन खो दी गई। राहुल ने बार-बार सवाल किए कि ‘अगर वह जमीन चीन की ही थी तो हमारे सैनिक क्यों मारे गए? और वे कहां मारे गए?’
ऐसा करने वाले राहुल अकेले व्यक्ति नहीं थे। लेकिन भारत-चीन सीमा में बदलाव करने के मामले में टीवी पर प्रधानमंत्री से सवाल करने वाले वह पहले विपक्षी नेता थे। अगर कोई भारतीय सीमा में नहीं घुसा तो इतना बवाल किस बात पर मचा? सेनाओं के बीच बैठकों का दौर क्यों चला, राजनयिक स्तर पर बात क्यों हुई? रक्षा और कूटनीतिक मामलों के विशेषज्ञों ने सार्वजनिक तौर पर कहा कि या तो प्रधानमंत्री को गलत तरीके से ब्रीफ किया गया या फिर सरकार को यह लगा कि वह कुछ भी कहकर निकल जाएगी।
एक रक्षा विशेषज्ञ ने हाल ही में ट्वीट किया कि राहुल गांधी को छोड़कर विपक्ष के किसी नेता ने क्षेत्रीय अखंडता पर सरकार से सवाल नहीं किए, फिर भी 2024 में वे प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं? इस ट्वीट के आने से कुछ ही घंटों पहले राहुल गांधी ने जोर देकर कहा कि ‘भारत में जल्दी और पूर्ण वैक्सिनेशन की जरूरत है, न कि मोदी सरकार के कारण हुई वैक्सीन की कमी को छिपाने के लिए गढ़े गए भाजपाई ब्रांड वाले झूठे और तुकबंदी वाले नारों की। वायरस फैलता जा रहा है और लोगों की जान जा रही है।’
खास तौर पर पिछले डेढ़ साल के दौरान राहुल गांधी ने सरकार से लगातार सवाल किए और यही बात उन्हें औरों से अलग करती है। किसी भी मामले में उनकी तत्काल प्रतिक्रिया आती है और दुष्प्रचार की ओर लगातार लोगों का ध्यान खींचने वाले वह अकेले शख्स हैं। लगभग हर बार केंद्रीय मंत्रियों की टोली और बीजेपी का आईटी सेल उन्हें ट्रोल करता है, लेकिन वे लोग कभी भी राहुल गांधी को चुप कराने में कामयाब नहीं हो सके।
कोरोना महामारी ने तो खासतौर पर बीजेपी नेताओं की सीमित समझ की पोल-पट्टी खोल दी और यह बात साबित कर दी कि राहुल उनसे कितने आगे हैं। जब केंद्रीय मंत्री महामारी के खतरे के प्रति अनजान से थे, तो राहुल गांधी ने 12 फरवरी, 2020 को ट्वीट किया, ‘हमारे लोगों और अर्थव्यवस्था के लिए कोरोना वायरस बहुत गंभीर खतरा है। सरकार इसे गंभीरता से नहीं ले रही। समय पर कदम उठाना बेहद जरूरी है।’
उसी दिन प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत यात्रा की औपचारिक घोषणा की और टाइम्स नाऊ समिट में भाग लिया लेकिन सिर पर खड़े संकट की कोई बात नहीं की। इसके दो हफ्ते बाद 3 मार्च को हर्षवर्धन ने कहाः ‘एक डॉक्टर होने के नाते मैं यही सलाह दूंगा कि व्यक्तिगत सफाई का ध्यान रखें। घबराएं नहीं और मुझे नहीं लगता कि लोगों को डरकर हर समय मास्क पहनने की जरूरत है।’
सरकार की ओर से बरती जा रही लापरवाही से बेचैन होकर 5 मार्च को राहुल गांधी ने कहाः ‘स्वास्थ्य मंत्रालय कहता है कि भारत सरकार ने कोरोना वायरस पर काबू पा लिया है। क्या यह वैसा ही है जैसा टाइटैनिक के कैप्टन ने जहाज में सवार लोगों को कहा था कि वे घबराएं नहीं, क्योंकि यह जहाज डूब ही नहीं सकता? इस समय सरकार को संकट का सामना करने के लिए अपनी कार्ययोजना को सार्वजनिक करना चाहिए।’
हर्षवर्धन को टाइटैनिक से तुलना नागवार गुजरी और उन्होंने राहुल गांधी पर यह कहते हुए हमला किया कि ‘अफसोस है कि गांधी परिवार ने कोरोना के गंभीर वैश्विक संकट की तुलना इतिहास में शांति काल के सबसे बड़े समुद्री हादसे से कर देश के लोगों का मनोबल गिराया। जाहिर है, राहुल गांधी विश्व स्वास्थ्य संगठन से ज्यादा ‘जानते’ हैं जो कह रहा है कि घबराने की जरूरत नहीं।’ गौरतलब है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 30 जनवरी, 2020 को कोविड-19 के सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल होने की घोषणा की और 11 मार्च, 2020 को वैश्विक महामारी होने की।
फिर 13 मार्च, 2020 को राहुल गांधी ने कहा, ‘मैं दोहराता रहूंगा कि कोरोना वायरस बहुत बड़ा संकट है। मुंह फेर लेना समस्या का समाधान नहीं। अगर कड़े कदम नहीं उठाए तो अर्थव्यवस्था तबाह हो जाएगी।’ हालांकि, सरकार ने इसके बाद जनता कर्फ्यू लगाया और फिर अचानक पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा कर दी गई। लेकिन इन सबके बावजूद कई केंद्रीय मंत्री राहुल गांधी का मजाक उड़ाते रहे।
दूसरी लहर से कुछ ही दिन पहले 28 जनवरी, 2021 को प्रधानमंत्री ने दावोस में ऐलान किया कि भारत ने कोरोना के खिलाफ लड़ाई जीत ली है। हमेशा की तरह, राहुल गांधी ने फिर आगाह किया, ‘सरकार बड़ी लापरवाही कर रही है। कोविड-19 अभी गया नहीं है।’ इसके बावजूद कि राहुल गांधी सही साबित हुए, उनका मजाक बनाया जाना नहीं रुका।
इसी अप्रैल में रविशंकर प्रसाद ने इसलिए राहुल पर हमला बोला कि उन्होंने तमाम सुझावों के साथ पीएमओ को पत्र लिखा जिनमें अन्य वैक्सीन को जल्दी मंजूरी देने की भी मांग थी। यह दावा करते हुए कि वैक्सीन की कोई कमी नहीं, रविशंकर ने राहुल को ‘विफल पार्ट टाइम नेता’ करार देते हुए आरोप लगाया कि वह विदेशी वैक्सीन के लिए दवा कंपनियों की लॉबिंग कर रहे हैं। लेकिन राहुल के पत्र लिखने के चार दिन बाद ही सरकार ने बिल्कुल वही किया जैसा राहुल ने सुझाव दिया था।
23 मार्च, 2020 को राहुल गांधी ने सवाल किया था कि ‘सभी भारतीयों का वैक्सिनेशन कब तक होगा?’ इसका जवाब 6 अप्रैल को स्वास्थ्य सचिव ने दिया। उन्होंने कहा, "हमारा लक्ष्य उन्हें वैक्सीन देना नहीं जो इसे लेना चाहते हैं, बल्कि उन्हें देना है जिन्हें इसकी जरूरत है।" राहुल गांधी ने अगले ही दिन इसका जवाब दिया- ‘जरूरत और इच्छा की बहस खड़ी करना हास्यास्पद है। हर भारतीय को सुरक्षित जीवन का अधिकार है।’
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