राहुल गांधी का नर्सों से संवाद: एक स्वास्थ्य कर्मी ने कहा- काटी जा रही सैलरी, नहीं सुनी जा रही बात
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ‘डॉक्टर्स डे’ के मौके पर नर्सों से बातचीत की। राहुल गांधी ने कहा कि इस मुश्किल घड़ी में आप लोग कोरोना के खिलाफ जंग लड़ रहे हैं और अपने जान को खतरे में डालकर लोगों की सेवा कर रहे हैं।
कोरोना संकट में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कई एक्सपर्ट से बात की है। फिर चाहे वो अर्थव्यवस्था के दिग्गज हो या फिर बिजनेसमैन, इसके अलावा दुनिया के कई बड़े मेडिकल एक्सपर्ट्स से भी राहुल गांधी चर्चा कर चुके हैं। इसी कड़ी में आज ये बातचीत डॉक्टर्स के साथ की और उनके अनुभव जानें।
राहुल गांधी: नमस्ते कैसे हैं आप?
सभी लोग: बिलकुल ठीक।
राहुल गांधी: आपको देखकर बहुत अच्छा लगा। इस संकट के समय में भारतीय नर्सों द्वारा दुनियाभर में मदद करते देखकर गर्व होता है।
सभी लोग: धन्यवाद
राहुल गांधी: हमें यह कहने का मौका नही मिलता, लेकिन आप हमारे देश के प्रतिनिधि हैं। इस बात पर हमें गर्व है। सिर्फ आप ही नहीं बल्कि आपके जैसे लाखों भाई-बहन हैं। दरअसल आपसे बात करना मेरे लिए सम्मान की बात है।
सभी लोग: धन्यवाद। यह हमारे लिए भी गर्व की बात है।
राहुल गांधी: आप सोच रहे होंगे कि मुझे आपसे बात क्यों करनी चाहिए। इसके कई कारण हैं। आप में से कुछ लोग विदेश में काम कर रहे हैं, कुछ भारत में। आप सभी का अनुभव अलग है। मैं बातचीत के जरिए समझना चाहता था कि दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में लोग क्या देख रहे हैं, वे एक-दूसरे की मदद कैसे कर सकते हैं या आप हमारे लोगों को या हमारे लोग आपको विदेश में कैसे सलाह दे सकते हैं। वह एक पहलू है।
दूसरा पहलू यह है कि मैं चाहता हूँ कि एक समुदाय के रूप में आप ये महसूस करें कि हम आपके साथ हैं, हम समझते हैं कि आप जोखिम भरा काम कर रहे हैं; यह आसान काम नहीं है और इसके लिए आप अपना जीवन दांव पर लगा रहे हैं। आप दुनियाभर और भारत में जो कर रहे हैं, हम उसकी बहुत सराहना करते हैं। मैं चाहता हूं कि आप लोग अपना परिचय दें।
शैर्ली, इंग्लैंड: मैं हूं शैर्ली, मैं इंग्लैंड,लिवरपूल में 21 साल से हूं।
विपिन: राहुल जी नमस्कार, मैं विपिन कृष्णन, केरल से हूं। मैं पिछले 2 वर्षों से दिल्ली एम्स में काम कर रहा हूं।
राहुल गांधी: विपिन जी आपको कोरोना हो गया?
विपिन: दुर्भाग्य से राहुल जी
राहुल गांधी: आप इस बीमारी से दोहरे मोर्चे पर लड़ रहे हैं। व्यक्तिगत रूप से और एम्स की ओर से
विपिन: मैं और मेरी पत्नी दोनों संक्रमित हैं। हम अभी क़्वारंटीन में हैं
राहुल गांधी: उम्मीद करता हूं कि आप अभी ठीक हैं।
विपिन: जी, मैं बिलकुल ठीक हूं राहुल जी, धन्यवाद।
राहुल गांधी: यह तो बहुत अच्छी बात है।
नरेंद्र: मैं नरेंद्र सिंह, राजस्थान के सीकर जिले से हूं। मैं 15 साल से नर्सिंग में काम कर रहा हूं। देश छोड़ने से पहले मैंने जयपुर के आरएमएल अस्पताल व आखिरी काम मैंने सफदरजंग में किया था। अब मैं चार साल से ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स लिवरपूल हॉस्पिटल इंटेंसिव केयर में काम कर रहा हूं। यहाँ हम कोरोना संक्रमित रोगियों की देखभाल कर रहे हैं। हमने पिछले कुछ महीनों में बहुत कुछ सीखा है।
अनु: मेरा नाम अनु रागनात है। मैं न्यूज़ीलैण्ड से हूं और मैं 2004 में यहां आई थी। मैं Northland District Health Board, Whangarei में वृद्ध लोगों के विशेषज्ञ के रूप में काम करती हूं। हम भारतीय नर्सों से बात करने के लिए, अपना समय देने के लिए के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
राहुल गांधी: जिसका आपने सामना किया है, वो सबसे कठिन समय है । मुझे नहीं लगता कि आपमें से किसी ने भी ऐसा दौर देखा होगा। क्या आप मुझे बता सकते हैं कि इस बीमारी के अग्रिम मोर्चे पर रहते हुए आप कैसा महसूस कर रहे होते हैं?
नरेंद्र: जब कोविड की शुरुआत हुई थी तब हमें लगा कि यह एक साधारण फ्लू है। और हमने सोचा कि कोविड के मुक़ाबले फ्लू ज्यादा लोगों को मार रहा है। इसलिये हमने इसे वास्तव में गंभीरता से नहीं लिया। एक बार जब कोविड बढ़ना शुरू हुआ, तो उसके बाद लगातार खबरें आ रही है। उसके बाद इटली और मृत्यु दर दिनों दिन बढ़ती ही जा रही है। तब हमने सोचा कि यह फ्लू नहीं है। असल में यह एक गंभीर बीमारी है। मुझे लगता है कि हमें इसे गंभीरता से लेना होगा और उस पर तैयारी शुरू करनी होगी जैसे सभी उपकरण, आईसीयू बनाना, एक अलग आईसीयू जो विशेष रूप से केवल कोविड़ रोगियों के लिए ही हो।
राहुल गांधी: हां ऑस्ट्रेलिया न्यूजीलैंड बहुत अच्छा कर रहे हैं।
नरेंद्र: हां, असल में उन्होंने बहुत अच्छा काम किया, मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूं
अनु: ऑकलैंड, क्रिस्टचर्च, हैमिल्टन जैसे शहरों में बहुत भीड़ है। अगर न्यूजीलैंड लापरवाह होता तो संख्या आसानी से लाखों में जा सकती थी। इसलिए जल्द से जल्द शुरुआत और कठिन निर्णय करना प्रधानमंत्री जैसिंडा का मकसद था। जो उन्होने करके भी दिखाया। इसलिए मुझे लगता है कि कठिन नियमों के साथ इस स्थिति से उबरना वास्तव में सही था, जो न्यूजीलैंड में सही साबित हुआ और वहाँ स्थिति नियंत्रण में आ गई।
राहुल गांधी: आपने डर का उल्लेख किया और जाहिर है कि यह उनके बीच डर पैदा करेगा, जो सोचते हैं कि वे बीमार होने जा रहे हैं, नर्सों के बीच, डॉक्टरों के बीच डर पैदा करेगा। क्या आप मुझे बता सकते हैं कि अस्पतालों में यह डर कैसा था? आपने क्या महसूस किया? क्या आप चिंतित थे कि कुछ हो सकता है। आपके मन में क्या भाव थे?
शर्ली: मैं एक आपातकालीन चिकित्सा इकाई में काम करती हूं। इसलिए मरीज सीधे हमारे पास आते हैं। इसलिए शुरू में बहुत डर था। वायरस की चपेट में कौन आने वाला है? क्या सभी मरीज इस वायरस की चपेट में हैं? मेरा व्यक्तिगत अनुभव एक मरीज के बारे में है। उसमे कोविड का कोई लक्षण नहीं था, उसे केवल दस्त और उल्टी की शिकायत थी। लेकिन उसके पेट में दर्द के कारण, मैंने पेट और छाती के एक्स - रे का अनुरोध किया। उसकी छाती का एक्स-रे कुछ ही समय में हो गया था और यह विशिष्ट गंभीर COVID चेस्ट एक्स-रे के रूप में वापस आ गया। मैं घबराए हुए तो नहीं कहूंगी, लेकिन हम सब सतर्क थे।
इसलिए मैंने अपने क्लिनिक के निदेशकों से बात की और वो मार्च की शुरुआत का समय था। ब्रिटेन में उस समय हम लॉकडाउन में भी नहीं थे। इसलिए हमें पीपीई, सर्जिकल मास्क, एप्रन और दस्ताने का उपयोग करने के लिए कहा गया। तब से मैं इसका उपयोग कर रही हूं और हम उस समय से हर रोज मरीजों को देख रहे थे और फिर हम लॉकडाउन में चले गए।
राहुल गांधी: एम्स में आपका अनुभव क्या रहा? आप कैसा महसूस कर रहे हैं क्योंकि बाकी जगह महामारी ठीक हो रही है लेकिन यहाँ महामारी बढ़ रही है।
विपिन: राहुल जी आप हमारे देश की हालत मुझसे बेहतर जानते हैं।
राहुल गांधी: क्या आप सभी हिंदी समझते हैं? हम हिंदी और अंग्रेजी दोनों में बात करते हैं।
विपिन: मैं कुछ आंकड़ों को उजागर करना चाहूंगा। हमारे पास भारत में 1.2 मिलियन पंजीकृत एलोपैथिक डॉक्टर और लगभग 3.7 मिलियन पंजीकृत नर्स हैं। अगर अनुपात की बात करें तो भारत में डॉक्टरों के लिए 1:1500 और नर्स के लिए 1.7:1000 हैं। डब्ल्यूएचओ द्वारा सिफारिश किया गया अनुपात डॉक्टरों का 1:1000 और नर्सों का 3: 1000 है। मानव संसाधन कम पड़ रहे हैं, फिर भी हम कड़ी मेहनत कर रहे हैं।
लेकिन हमारे देश में यह परिदृश्य पूरी तरह से अलग है। भारत में सरकारी अस्पतालों और निजी अस्पतालों के बीच बहुत अंतर है।
राहुल गांधी: आप क्या अंतर देखते हैं?
विपिन: अगर हम निजी क्षेत्र की बात करें, तो वहां बहुत सारे भेदभाव होते हैं। प्राइवेट नर्स कह रही हैं कि उनके वेतन में कटौती की जा रही है। इस महामारी के दौरान वे अपने परिवारों की देखभाल कैसे करेंगे? ऐसी स्थिति में, मुझे लगता है कि सरकार को उनकी मदद करनी चाहिए और उनको पूरा वेतन देना चाहिए। इस हालत में, उनके लिए जीवन यापन करना मुश्किल है।
आपने अभी पूछा था कि क्या हम डरते हैं? मुझे नहीं लगता कि हम कोरोनावायरस जैसी महामारी से डरते हैं। देश को बचाने के लिए हमें मोर्चे पर लड़ना होगा। मेरे अपने अनुभव से पता चला कि मैं डरा हुआ नहीं था, लेकिन इसलिए नहीं कि मैं संक्रमित था, मुझे अभी भी ड़र नहीं लग रहा। मैं आपको और सरकार को बताना चाहता हूं कि एक बार ठीक होने के बाद, मैं वापस कोविड़ के वार्ड में जाना चाहता हूं।
राहुल गांधी: मैं इस तथ्य से हैरान हूं, और मुझे बताया गया है कि दिल्ली के कई अस्पतालों में टेस्ट की अनुमति नहीं दी जा रही है।
विपिन: यह वास्तव में यह एक दुखद स्थिति है। मैं आपको कुछ आंकड़ों के बारे में बताना चाहता हूं। 27 मई को, दिल्ली में संक्रमण दर 13.7% थी, जब हम प्रति दिन 7000 टेस्ट कर रहे थे। 12-13 जून तक, हमारी संक्रमण दर 30% के ऊपर चली गई थी और हम प्रति दिन 5000 टेस्ट कर रहे हैं। यह आश्चर्य की बात है कि हमारी मृत्यु और संक्रमण दर बढ़ रही है, लेकिन हमने टेस्ट कम कर दिया है। मुझे समझ नहीं आ रहा राहुल जी कि यह सब क्या हो रहा है।
राहुल गांधी: निजी अस्पताल के एक डॉक्टर मुझे बता रहे थे कि अगर वे कोरोना संक्रमितों का परीक्षण नहीं कर सकते, तो उनके लिए काम करना असंभव हो जाता है। अगर उन्हें ये पता नहीं है कि मरीज को कोरोना है या नहीं, तो इसका मतलब उन्हें नहीं पता कि उसे निजी अस्पताल के एक डॉक्टर मुझे बता रहे थे कि अगर वे कोरोना संक्रमितों का परीक्षण नहीं कर सकते, तो उनके लिए काम करना असंभव हो जाता है। अगर उन्हें ये पता नहीं है कि मरीज को कोरोना है या नहीं, तो इसका मतलब उन्हें नहीं पता कि उसे कहां रखा जाएगा। दो मरीज जो एक दूसरे के साथ ही हैं, एक वह जिसे कोरोना है और दूसरा जिसे कोरोना नहीं है। इसलिए वे कह रहे थे कि वे पूरी तरह से निराश हैं कि ऐसे में कैसे आगे बढ़ा जाए।
मुझे लगता है कि सरकारें इस धारणा को मैनेज करने की कोशिश कर रही हैं या वे यह समझने की कोशिश कर रही हैं कि समस्या उतनी भी बुरी नहीं है जितनी वह दिख रही है। लेकिन मेरा यह मानना है कि हमें समस्या का सामना करना पड़ता है, इसके लिए उस समस्या को स्वीकारना जरूरी है, सही ढंग से परिभाषित करना और फिर उस समस्या से लड़ना चाहिए। मुझे नहीं पता कि आप उस पर कैसी प्रतिक्रिया देंगे।
विपिन: बिल्कुल सही बात। हम एक महामारी की स्थिति में है और एम्स निदेशक ने भी कहा है कि हम जून के मध्य में चरम पर पहुंच जाएंगे। यहां तक कि दिल्ली के मुख्यमंत्री ने भी कहा है कि वे 5.5 लाख संक्रमितों मामलों की उम्मीद कर रहे हैं। हम दिल्ली में 10,000 बिस्तर लगा रहे हैं। क्या आप उस स्थिति की गहराई का अंदाज़ा लगा सकते हैं कि जहाँ 5.5 लाख लोग आ रहे हैं, बेशक वे एक ही समय पर नहीं आए, लेकिन एक दिन में औसतन 1 लाख मरीज। मैं स्थिति की गहराई की कल्पना नहीं कर पा रहा हूँ। हम क्या करेंगे?
राहुल गांधी: बाहर के लोगों की इस पर क्या प्रतिक्रिया है?
अनु: मैं विपिन से पूछना चाहती हूं कि आप तो इस समय छुट्टी पर हैं। क्या आपको वेतन मिल रहा है या क्या वे अभी भी आपको इतनी लंबी छुट्टी के लिए वेतन दे रहे हैं?
विपिन: हाल ही में संस्था ने बताया है कि आपका भुगतान हो रहा है, चूंकि यह एक महामारी है, इसलिए बहुत से लोग संक्रमित हो रहे हैं, विशेष रूप से स्वास्थ्य कार्यकर्ता। मैं उनके बारे में चिंतित हूं। तो अभी वे सब भी बता रहे हैं कि भुगतान किया जा रहा है, लेकिन मुझे नहीं पता कि आने वाले समय में क्या होगा।
अनु: हालांकि आपके लिए टेस्ट कराना कितना आसान था? क्या यह आपके लिए सिर्फ ठीक था या बहुत आसान?
विपिन: हां, मेरे समय में हालात थोड़े ठीक थे, लेकिन जब पत्नी की बारी आई, तो उसे पूरे 10 घंटे इंतजार करना पड़ा था। यह मेरे लिए थोड़ा चिंताजनक और दुखद था।
अनु: हां बिलकुल, एक परिवार के रूप में यह काफी परेशान करने वाली बात है।
नरेंद्र: मैं एक बात यहाँ जोड़ना चाहता हूं, आप कहते हैं कि टेस्ट कराना बहुत कठिन है। हाँ, इसलिए जैसा कि राहुल जी ने उल्लेख किया है कि आप निजी अस्पताल जाते हैं तो वे इसका टेस्ट नहीं कर सकते। निजी अस्पताल जाकर भी आप टेस्ट नहीं करा सकते हैं, तो मैनेज करना मुश्किल हो जाता है। क्योंकि ये आपके जरिए बाकि कर्मचारियों तक फ़ैल सकता है और पूरा अस्पताल चपेट में आ सकता है। इसलिए टेस्ट बहुत महत्वपूर्ण है, जितना कि कोविड़ -19 को रोकने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग या कोई अन्य उपाय।
राहुल गांधी: आप लोग जो विदेश में हैं, इस महामारी से आपकी सबसे बड़ी सीख क्या है? आप भारतीय अस्पताल, नर्स, डॉक्टर को क्या सलाह देना चाहेंगे? आपके हिसाब से वो प्रमुख चीजें कौनसी हैं, जिनका हमें ध्यान रखना होगा?
नरेंद्र: अपने हाथ धोना। दिन में कई बार सही प्रकार से धोना जैसे मैं 12 घंटे की शिफ्ट में करता हूं, हम कई बार अपने हाथों को धोते हैं। सही पीपीई किट पहनो। दरअसल यही मेरी चिंता है। दिल्ली में काम करने वाले मेरे एक दोस्त ने मुझे बताया कि बहुत सारे कर्मचारी और डॉक्टर अब संक्रमित हो रहे हैं, जिनमें से एक विपिन भी है। यही बहुत चिंता का विषय है।
इसका मतलब है कि कहीं कुछ कमी है। या तो हम पीपीई किट को ठीक से नहीं पहन रहे हैं या हम हैंड सैनिटाइजर का उपयोग ठीक से नहीं कर पा रहे हैं या हम खुद को ठीक से आइसोलेट नहीं कर पा रहे हैं।
राहुल गांधी: आपके भी बच्चे होंगे। वो बहुत चिंतित होंगे कि आप अस्पताल में जा रहे हैं जहां हर किसी को कोरोना है। क्या कोई और इस बारे में बता सकता है?
शर्ली: मेरा व्यक्तिगत अनुभव यह है कि मेरे पति वास्तव में बड़े ख़तरे की श्रेणी में हैं और वह परिरक्षण में थे। क्योंकि मैं कोरोना मरीजों के साथ काम कर रही हूं, इसलिए मुझे अपने पति और मेरे बच्चों को छोड़कर छह सप्ताह के लिए अपने घर से बाहर जाना पड़ा। अब मैं वापस गई। दो हफ्ते पहले मैं घर वापस गयी, क्योंकि संक्रमितों की संख्या कम हो रही है। अस्पताल में रोगियों की संख्या अब कम होने से मेरा मैनेजमेंट सहयोग कर रहा है।
यहां ब्रिटेन में, यह इतना सम्मानजनक है, लोग इतना सम्मान करते हैं। हमने एनएचएस कर्मचारियों और देखभाल कर्मचारियों के लिए खरीदारी का समय निकाला। हर गुरुवार को सरकार आपको बताती है कि वह देखभाल करने वालों के लिए ताली बजा रही है। तो यह बहुत सहायक है, यहाँ के सुपरमार्केट बाज़ार भी बहुत सहायक हैं।
राहुल गांधी: तो आपको लगता है कि आपको सरकार सहयोग कर रही है? क्या आप एम्स में भी ऐसा महसूस करते हैं?
विपिन: राहुल जी मैं आपको कुछ बताना चाहूंगा। यह महत्वपूर्ण और चिंता का विषय है। दिल्ली में दो नर्सों की मौत हो गई है, वे दक्षिण भारत की थीं और एक एक्स-रे तकनीशियन। एम्स के एक सेवानिवृत्त डॉक्टर का निधन हो गया और स्वच्छता विभाग में एक सेवारत व्यक्ति, हमने उसे दुर्भाग्य से खो दिया। उन्हें दिल्ली सरकार द्वारा घोषित 1 करोड़ रुपये का मुआवजा मिलना बाकी है। ऐसा नहीं है कि हम कुछ राशि देकर उनकी मौत की भरपाई कर सकते हैं। लेकिन कम से कम हम उनके परिवारों की सहायता कर सकते हैं। सरकार को उनके लिए कुछ करना चाहिए। मैं ये सब आपके ध्यान में इसलिए लाना चाहता हूं, क्योंकि आप इस वक़्त विपक्ष के नेता हैं।
राहुल गांधी: मैं एक पत्र लिखूंगा और फिर देखते हैं कि क्या हम इसमें तेजी ला सकते हैं।
विपिन: दूसरी बात, नर्स और डॉक्टर भारत सरकार के जोखिम की श्रेणी में नहीं आते हैं। बहादुर सैनिकों की तरह आगे रहकर हम स्वास्थ्य कर्मियों के रूप में इस कोरोना से लड़ रहे हैं। जैसे कि हम इसे जैविक युद्ध मान सकते हैं। लेकिन यह एक जैविक युद्ध नहीं है, बल्कि एक वायरस है, एक छोटा सूक्ष्म जीव जो पूरी दुनिया और देश को चुनौती दे रहा है। इसलिए हम सेना, वायु सेना की तरह लड़ रहे हैं। मैं इसकी तुलना हमारे जाबांज सैनिकों से नहीं कर रहा हूं। लेकिन मुझे लगता है कि आप इस बात से सहमत होंगे कि हम एक सेना के रूप में ही यह लड़ाई लड़ रहे हैं।
राहुल गांधी: हां बिलकुल , इस वक़्त आप एक अहिंसक सेना ही हैं
विपिन: धन्यवाद राहुल जी। मैं आपके विचार में एक बात और लाना चाहता हूं कि नर्सों और डॉक्टरों को कम से कम इस समय जोखिम भत्ता दिया जाना चाहिए क्योंकि हम कई ज़िंदगियों को खो रहे हैं। हम थक गए हैं लेकिन हम बिना किसी डर के आगे आकर लड़ रहे हैं। आप और सरकार हमारे साथ हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि हम कोरोनोवायरस के खिलाफ इस युद्ध को लड़ेंगे और जीतेंगे।
राहुल गांधी: मैं आप सभी से एक सवाल पूछना चाहता हूँ कि आपका परिवार, बच्चे सब इसके बारे में कैसा महसूस करते हैं। आप उनकी देखभाल कैसे कर रहे हैं? क्योंकि उन्हें चिंता तो होती होगी कि उनके माँ और पिताजी इस महामारी के बीच काम कर रहे हैं। आप कैसे ये सब संभाल रहे हैं?
अनु: न्यूजीलैंड सरकार के स्वास्थ्य मंत्री द्वारा घोषित पहली चीजों में से एक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिए 10 मिलियन का पैकेज था। उसमें आवास निधि भी शामिल है। Sherly के मामले की तरह, यदि आप एक प्रतिरक्षण परिवार के सदस्य के घर वापस नहीं जाना चाहते हैं, तो आप या तो अस्पताल में या पास के किसी मोटल में रह सकते हैं और सरकार इसके लिए भुगतान करेगी। बाकी टीम की बात सुनकर मुझे ऐसा लग रहा है कि हम वास्तव में एक अच्छी स्थिति में हैं।
राहुल गांधी: तो आप एक बात बताइए कि ऐसा क्यों है कि विदेश में भारतीय नर्सों को अधिक महत्व दिया जाता है। यह सब क्या है, मैं जहां भी गया, जब मैं मध्य पूर्व में गया और वे मुझे वहां एक अस्पताल ले गए और उन्होंने कहा कि अगर हमारे पास भारतीय नर्स नहीं हो, तो हम अपना अस्पताल नहीं चला सकते हैं।
शर्ली: मुझे यह कहना ही होगा कि भारतीय नर्सें बहुत मेहनती होती हैं। वे अपने काम के लिए, अपना जीवन तक समर्पित कर देते हैं। आप जानते हैं, उन्हें अपनी परवाह बिलकुल नहीं है। वे अपने सामने मरीजों को अपने माता-पिता, बच्चों, माँ, भाई या बहन के रूप में देखते हैं। तो शायद यही बात सबसे महत्वपूर्ण होगी
अनु: बहुत सारे कोविड वार्ड हैं, जहाँ भारतीय नर्स सिर्फ इलाज तक सीमित नहीं है, वो रणनीति और योजना बनाने में शामिल हैं। निश्चित रूप से, काफी संख्या में भारतीय नर्स हैं। मुझे लगता है कि हम पहले मोर्चे पर हैं। जिस तरह से हमारे पाठ्यक्रम में या हमें सिखाया जाता है, मुझे लगता है कि हम किसी भी स्थिति में, किसी भी देश में काम करने के लिए तैयार हैं। हमारी पृष्ठभूमि से हमें मजबूती मिलती है। मुझे लगता है कि भारतीय नर्सों के लिए किसी भी क्षेत्र में काम करना आसान है। हम इससे पहले कुछ अन्य भूमिकाओं को आसानी से अपना चुके होते हैं और अभी दो महीने से वहाँ हैं और हाँ, अपनी पृष्ठभूमि की ठोस शिक्षा की वजह से हम बहुत जल्दी सीखते हैं। और जैसा Sherly ने कहा कि हम स्वभाव से काफी दयालु हैं।.
राहुल गांधी: और इस लड़ाई को लड़ रहे भारतीय नर्सों और डॉक्टरों की मदद हम कैसे कर सकते हैं, फिर चाहे वो विदेश में हों या भारत में। मुख्य बात यह है कि हमें आपकी मदद करने की कोशिश करनी चाहिए? आपकी मदद करने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
नरेंद्र: हमसे यह पूछने के लिए आपका धन्यवाद। कृपया हमसे बात करते रहें ताकि हम अपने अनुभव आपसे साझा करते रहेंगे और आप अपना अनुभव साझा कीजिए। हम हमेशा भारत से प्यार करते हैं। बहुत अच्छा लगा कि आपने हमसे बात की
विपिन: मुझे नहीं लगता कि नीति बनाने में हमारी कोई आवाज भी सुनी जा रही है। जब नर्सिंग पेशे या चिकित्सा पेशे से संबंधित नीति बनाई जा रही है तो, उस पेशे के विशेषज्ञों से उनके इनपुट लिए जाने चाहिए। तब नीतियां बननी चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य से हमारे देश में ऐसा नहीं हुआ है। जब नीतियों से संबंधित निर्णय लेने की बात आती है, तो कई संगठन के नेताओं को बुलाया भी नहीं जाता है
राहुल गांधी: कोरोना की इस लड़ाई में, क्या कोई ऐसा अनुभव था जो आपके लिए सकारात्मक था? अगर था तो यह बहुत खुशी की बात है। क्या आप इस तरह के एक अनुभव के बारे में बता सकते हैं।
अनु: मुझे लगता है कि यहां और न्यूजीलैंड में भी, सरकार और हेल्थकेयर कार्यकर्ताओं के बीच इस तरह की बातचीत वास्तव में अच्छी थी। उन पांच हफ्तों के दौरान रोजाना दोपहर 1 बजे , हमारे स्वास्थ्य मंत्री और हमारे राष्ट्रपति आकर प्रेस कॉन्फ्रेंस करते थे और मुझे लगता है कि लगभग सभी न्यूजीलैंडवासी इन आँकड़ों को सुनने के लिए उत्सुक होते होंगे। और खुद राष्ट्रपति, जिन्होंने हमें इस लड़ाई में भाग लेने और जीतने के लिए हमें जिम्मेदार महसूस कराया। संकट के समय में भी उनकी नेतृत्व शैली एक हमदर्दी जैसी थी।
शर्ली: हां मेरा भी सकारात्मक अनुभव है। मैं आपके बारे में कुछ कहना चाहूंगा, सप्ताह के अंत में, इस कोरोना महामारी के दौरान, आप एक विकसित तरीके से काम कर रहे हैं। जिस कोविड यूनिट में मैंने काम किया, उसमें से किसी भी नर्स को कोरोना नहीं था, यह हमारे लिए इतनी शानदार खबर थी, क्योंकि हमारे 20 मरीज थे और सभी मरीज कोरोना पॉजिटिव थे। किसी भी नर्स को कोरोना नहीं था। तो हमारे लिए यह एक अच्छी और शानदार खबर थी।
राहुल गांधी: तो इन सब में मेरा आखिरी सवाल यह है कि, गैर कोरोना संक्रमित मरीजों को एक दुविधा हो रही है, क्योंकि अस्पताल में तो कोरोना संक्रमित मरीजों की भरमार है।
शर्ली: सब नहीं, और ना सब अस्पतालों में। हमारे पास अपने दुर्घटना और आपातकालीन विभाग हैं जिनमें एक रेड ज़ोन है और एक ग्रीन ज़ोन है। जिन मरीजों में कोविड के लक्षण पाए जाते हैं, उन्हें रेड ज़ोन में भेज दिया जाता है और अन्य मरीज़ जिनमें कोविड के लक्षण नही होते, उन्हें ग्रीन ज़ोन में भेज दिया जाता है। तो जब सब ठीक हो रहे हैं, हर किसी का टेस्ट भी हो रहा है। तो यह एकमात्र तरीका है जिसे हम जानते हैं, और अब हमें ज्यादा रोगी नहीं दिख रहे हैं।
विपिन: मुझे लगता है कि आपका प्रश्न भारत के लिए अधिक प्रासंगिक है। कई सरकारी अस्पतालों में ओपीडी काम नहीं कर रही है। अब हमारे पास कोई रास्ता नहीं है। हमें यह सोचना होगा कि गैर कोरोना मरीजों की मदद कैसे की जाए। मुझे भी फोन आते हैं, कैंसर के मरीज मदद के लिए कहते हैं, लेकिन हम उनकी मदद करने में असमर्थ हैं। सिर्फ एम्स में ही नहीं बल्कि ज्यादातर सरकारी अस्पतालों में ज्यादातर बेड कोरोना मरीजों के लिए आवंटित किए जा रहे हैं।.
राहुल गांधी: मुझे लगता है महत्वपूर्ण यह है कि लोग विभिन्न आवाज़ें सुनें। इसलिए मैं ये बातचीत कर रहा हूँ, चाहे यह नर्सों या किसी भी क्षेत्र के विशेषज्ञों के साथ हो या फिर मजदूरों से हो। लेकिन मुझे लगता है कि भारत के पास भी अपनी आवाज है जो सुनी जानी चाहिए। इसलिए आपने इस पर काफी अच्छा दृष्टिकोण दिया है।
नरेंद्र: इसलिए, अगर हम सब एक टीम के रूप में काम करते हैं तो जल्द ही कोविड-19 के खिलाफ ये जंग जीत सकते हैं
राहुल गांधी: आप सभी को अपना समय देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। मुझे पता है कि यह बहुत कीमती है, क्योंकि आप कोरोना के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। इसलिए, धन्यवाद और मुझे बहुत गर्व है आप जो काम कर रहे हैं। केवल आप ही नहीं बल्कि आपके जैसी लाखों नर्स और डॉक्टर, जो हमारे देश से हैं, भारत और विदेशों में एक बेहतरीन काम कर रहे हैं उनके लिए भी।
विपिन: अपना कीमती समय देने और इस बातचीत के लिए धन्यवाद राहुल जी
अनु: वायनाड के लिए आपने जो कुछ किया है, उसके लिए धन्यवाद, मुझे भी यही कहना था।
सभी लोग: धन्यवाद।
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: 01 Jul 2020, 12:47 PM