सत्तारूढ़ बीजेपी से नज़दीकियों और हितों के टकराव की मिसाल हैं राफेल पर रिपोर्ट बनाने वाले सीएजी राजीव महर्षि
जब अक्टूबर 2014 में पीएम मोदी ने राजीव महर्षि को सीएजी बनाया तो किसी को अचरज नहीं हुआ। सब जानते थे कि महर्षि की बीजेपी नेताओं से गहरी नज़दीकिया हैं और उनके परिवार के वरिष्ठ सदस्य आरएसएस के सक्रिय कार्यकर्ता रह चुके हैं।
भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक यानी सीएजी राजीव महर्षि ने सोमवार को राफेल सौदे पर सीएजी रिपोर्ट राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को सौंप दी। इसके बाद मंगलवार को इस रिपोर्ट को संसद में भी पेश कर दिया गया। राजीव महर्षि को बीजेपी नेताओं का बेहद नज़दीकी माना जाता है। एक जमाने में वे राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के करीबी सहयोगी रहे हैं।
63 वर्षीय महर्षि 1978 बैच के राजस्थान कैडर के आईएएस अफसर हैं। 31 अगस्त 2017 को केंद्रीय गृह सचिव के पद से सेवानिवृत्त होने के अगले ही दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें देश का सीएजी बना दिया था।
लेकिन, महर्षि की नियुक्ति से अफसरशाही गलियारों में किसी को कोई अचरज नहीं हुआ था। सब जानते थे कि सत्तारूढ़ बीजेपी के बड़े नेताओं के साथ उनके बेहद नज़दीकी रिश्ते हैं। इत्तिफाक से महर्षि के परिवार के वरिष्ठ सदस्य राजस्थान के भरतपुर में आरएसएस के सक्रिय कार्यकर्ता और पूर्व उप प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृहमंत्री रहे बीजेपी के बुजुर्ग नेता लाल कृष्ण आडवाणी के करीबी सहयोगी रहे हैं। उस जमाने में आडवाणी भी आरएसएस के सक्रिय कार्यकर्ता हुआ करते थे।
दिसंबर 2013 में जब राजीव महर्षि ने राजस्थान में मुख्य सचिव का पद संभाला तो उनके दोस्तों और विश्लेषकों ने उन्हें डिप्टी सीएम कहना शुरु कर दिया था। वजह थी वसुंधरा सरकार में उनके पास बेशुमार अधिकार।
वसुंधरा राजे जब 2013 में दोबारा मुख्यमंत्री बनीं तो उन्होंने राजीव महर्षि को ही मुख्य सचिव नियुक्त किया क्योंकि महर्षि उनके साथ 2003 स 2008 के दौरान प्रधान वित्त सचिव के तौर पर काम कर चुके थे। लेकिन 2008 में जब वसुंधरा चुनाव हारीं तो महर्षि प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली आ गए थे। उन्हें पहले कृषि मंत्रालय में और फिर विदेशों में रह रहे भारतीयों के मामले वाले मंत्रालय में सचिव बनाया गया था।
केंद्र में जब 2014 में मोदी सरकार ने सत्ता संभाली तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें अक्टूबर 2014 में वित्त सचिव बना दिया। उस दौरान रीडिफ डॉट कॉम पर प्रकाशित एक खबर में बताया गया था कि राजीव महर्षि को वित्त सचिव बनाए जाने का एकमात्र कारण था उनके द्वारा कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार की योजनाओं की आलोचना करना।
राजीव महर्षि की पत्नी मीरा महर्षि भी आईएएस थीं और राजस्थान की नौकरशाही में एक मजबूत अफसर के तौर पर उनकी पहचान थी। मई 2013 में वे सेवानिवृत्त हो गईं थी, लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने फौरन ही उन्हें सलाहकार समिति में फुल टाईम मेंबर और आमेर विकास और प्रबंधन प्राधिकरण का अध्यक्ष बना दिया। इसी दौरान उन्होंने बीमा कंपनी इफको-टोकियो जनरल इंश्योरेंस में कार्पोरेट सोशल रेस्पांसिबिलिटी कमेटी का चेयरपर्सन भी बनाया गया। बीमा कंपनी में वे बोर्ड ऑफ डायरेक्टर की हेड थीं और फिर मेंबर ऑडिट, नामिनेशन एंड रिम्युनिरेशन कमेटी की भी सदस्य बन गईं।
2015 में राजीव महर्षि और उनकी पत्नी मीरा महर्षि पर अपने पद के दुरुपयोग के आरोप लगे थे। आरोप था कि राजीव महर्षि ने जयपुर के आमेर ब्लॉक में 25 लाख रुपए में जमीन खरीदी थी, जिसे कुछ समय बाद 5 करोड़ रुपए में बेच दिया गया। यह खबर इंडिया टुडे ने प्रकाशित की थी।
रोचक बात यह है कि तत्कालीन राजस्थान सरकार ने जस्टिस एस के गर्ग को इस मामले की जांच सौंपी थी। उस समय राजीव महर्षि उस समय केंद्रीय गृह सचिव थे। महर्षि पर आरोप एक आरटीआई कार्यकर्ता ने लगाए थे, जिस पर महर्षि ने प्रेस कांफ्रेंस कर कहा था कि उन्होंने सरकार से हाईकोर्ट के मौजूदा जज से मामले की जांच कराने का आग्रह किया है। इस जांच का क्या हुआ, इसकी जानकारी नहीं है।
राफेल सौदे में जब सीएजी रिपोर्ट संसद के सामने पेश करने का मौका आया तो कांग्रेस ने आरोप लगाया कि जो शख्स अक्टूबर 2014 से 30 अगस्त 2015 तक वित्त सचिव रहा है, वह इस सौदे में हुए कथित भ्रष्टाचार पर निष्पक्ष कैसे रह सकता है। इसके जवाब में पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली महर्षि के बचाव में कूदे।
जेटली ने सफाई दी कि रक्षा मंत्रालय से जुड़ी फाइलें सचिव (खर्च) और सचिव (वित्त मामले) देखते हैं, ऐसे में महर्षि का रक्षा मंत्रालय के खर्च से कुछ लेना देना नहीं था। लेकिन सूत्रों का कहना है कि, “भले ही राजीव महर्षि आर्थिक मामलों के विभाग के सचिव थे, लेकिन सबसे वरिष्ठ अफसर होने के नाते उनकी भूमिका समन्वयक के तौर पर जरूर थी, और वे मंत्रालय के सभी चारों विभागों के बीच समन्वय करते थे।”
सूत्रों का कहना है कि भारत और फ्रांस के बीच हुए 59,000 करोड़ रुपए के राफैल सौदे में विदेशी मुद्रा का इस्तेमाल हुआ था, और विदेशी मुद्रा का मामला नियमानुसार आर्थिक मामलों का विभाग ही देखता है। सूत्रों ने बताया कि, “आमतौर पर किसी भी मंत्रालय के खर्च की फाइल वित्त सलाहकार के पास जाती है, जो व्यय सचिव के मातहत काम करता है। अरुण जेटली भी ऐसा कह रहे हैं, लेकिन इस सौदे में बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा शामिल थी, तो ज़ाहिर है कि राफेल सौदे पर दस्तखत होने के दौरान राजीव महर्षि ने ही इस मामले को देखा होगा।”
हाल ही में एक विज्ञप्ति में कांग्रेस ने कहा था कि, राजीव महर्षि, “संवैधानिक, कानूनी और नैतिक आधार पर न तो किसी मौजूदा रिपोर्ट का ऑडिट कर सकते हैं और न ही लोकलेखा समिति और संसद के सामने कोई रिपोर्ट पेश कर सकते हैं।” कांग्रेस ने आग्रह किया था कि राजीव महर्षि को इस मामले से खुद को अलग कर लेना चाहिए था और सार्वजनिक तौर पर मानना चाहिए कि 36 राफेल विमान खरीदने की रिपोर्ट के ऑडिट में इम्प्रोप्रायटी यानी अनुपयुक्तता का मामला बनता है।
कांग्रेस ने विज्ञप्ति में कहा था कि, “जिस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 58,000 करोड़ रुपए के राफेल सौदे का ऐलान किया था उस समय महर्षि वित्त सचिव थे। साथ ही पूर्व के सौदे 126 राफेल विमानों की खरीद के प्रस्ताव को रद्द करते समय भी महर्षि ही वित्त सचिव थे, ऐसे में ऑडिट रिपोर्ट में निष्पक्षता नहीं हो सकती।”
कांग्रेस ने कहा था कि, “चूंकि आप सीधे राफेल सौदे से जुड़े थे, साथ ही कीमतों पर मोलभाव के दौरान भी वित्त मंत्रालय के कॉस्ट अकाउंट सर्विस के मेंबर और वित्त सलाहकार सौदा करने वाली टीम का हिस्सा थे, ऐसे में कोई अपने ही किए किसी कर्म पर कैसे फैसला दे सकता है।”
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी मंगलवरा को कहा कि, “सीएजी रिपोर्ट तो चौकीदार द्वारा चौकीदार के लिए है। जिन महाशय ने सीएजी रिपोर्ट बनाई है वह तो खुद इस मामले में फैसला करने वालों में से हैं।”
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