राफेल पर कांग्रेस का मोदी सरकार पर बड़ा हमला: कहा, ‘कल्चर ऑफ क्रोनी कैपिटलिज़्म’ बन गया है सरकार का डीएनए
राफेल विमान सौदे में मोदी सरकार के कार्पोरेट दोस्तों की वजह से देश को 1,30,000 करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ा है, और इस मामले में रक्षा मंत्री देश के सामने सच नहीं रख रही हैं। यह आरोप कांग्रेस ने शुक्रवार को एक प्रेस कांफ्रेंस में लगाए।
कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि, “60,145 करोड़ रुपए के राफेल विमान सौदे ने साबित कर दिया कि ‘कल्चर ऑफ क्रोनी कैपिटलिज़्म’ यानि 3सी मोदी सरकार का डीएनए बन गया है।” उन्होंने कहा कि ‘झूठ परोसना’ व ‘छल-कपट का चक्रव्यूह बुन’ देश को बरगलाना ही अब सबसे बड़े रक्षा सौदे में बीजेपी का मूल मंत्र है। सुरजेवाला ने बताया कि वास्तविकता यह है कि 36 राफेल लड़ाकू विमानों की एकतरफा खरीद से सीधे-सीधे ‘गहरी साजिश’, ‘धोखाधड़ी’ और ‘सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाने के षडयंत्र’ की बू आती है।
सुरजेवाला ने अपने इन दावों और आरोपों के संबंध में कुछ दस्तावेज पेश किए। इन दस्तावेज़ों के जरिए यह साबित करने का दावा किया गया है कि कैसे इस सौदे में देश से झूठ बोला जा रहा है। उन्होंने बताया कि राफेल विमान बनाने वाली फ्रांस की कंपनी दसां एविएशन ने 13 मार्च, 2014 को एक ‘वर्कशेयर समझौते’ के रूप में सरकारी कंपनी, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) से 36,000 करोड़ रु. के ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर किए।
उन्होंने आरोप लगाया कि इस विमान सौदे को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘क्रोनी कैपिटलिज़्म प्रेम’ तब जगजाहिर हो गया, जब 10 अप्रैल, 2015 को 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद की घोषणा के फौरन बाद सरकारी कंपनी, एचएएल को इस सबसे बड़े ‘डिफेंस ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट’ से दरकिनार कर निजी क्षेत्र की एक कंपनी को दे दिया गया।
सुरजेवाला ने दावा किया कि जिस निजी कंपनी, रिलायंस डिफेंस लिमिटेड को यह ‘डिफेंस ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट’ दिया गया, उसे लड़ाकू विमानों के निर्माण का कोई अनुभव नहीं था। इतना ही नहीं फ्रांस में 10 अप्रैल, 2015 को प्रधानमंत्री द्वारा 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद की घोषणा किए जाने से महज 12 दिन पहले यानी 28 मार्च, 2015 को ही रिलायंस डिफेंस लिमिटेड अस्तित्व में आई। यानी इससे पहले यह कंपनी थी ही नहीं। उस समय तक रिलायंस डिफेंस लिमिटेड के पास लड़ाकू विमान बनाने का लाइसेंस तक नहीं था।
कांग्रेस ने दावा किया इस सौदे की घोषणा होने के 14 दिन बाद रिलायंस धीरूभाई अंबानी समूह ने एक और कंपनी रिलायंस एयरोस्ट्रक्चर लिमिटेड बनाई और इस कंपनी ने वाणिज्य मंत्रालय में लड़ाकू विमान बनाने का लाइसेंसे लेने के लिए आवेदन दिया। इस कंपनी के आवेदन पर उसे वाणिज्य मंत्रालय ने लाइसेंस तो दे दिया, लेकिन न तो आवेदन करते समय और न ही 22 फरवरी 2016 को लाइसेंस हासिल करते समय इस कंपनी के पास न तो कोई जमीन थी, और न ही कोई इमारत जिसमें लड़ाकू विमान बनाए जा सकें।
एक और चौंकाने वाला खुलासा यह किया गया कि रिलायंस धीरूभाई अंबानी समूह ने स्वंय 16 फरवरी 2017 को एक प्रेस रिलीज़ में ऐलान किया कि उसे फ्रांस की दसां एविएशन से 30,000 करोड़ का ‘ऑफसेट कांट्रेक्ट’ और एक लाख करोड़ रुपए का ‘लाईफसाईकल कॉस्ट कॉन्ट्रैक्ट’ मिल गया है। (देखें नीचे दिया गया रिलायंस अनिल धीरूभाई अंबानी समूह का प्रेस रिलीज़)
इसके अलावा रिलायंस अनिल धीरूभाई अंबानी समूह ने निवेशकों के लिए जो प्रेजेंटेशन तैयार किया उसमें साफ लिखा है कि उसकी दसां के साथ साझेदारी हुई है और उसे 30,000 करोड़ का ऑफसेट कांट्रेक्ट और एक लाख करोड़ रुपए मूल्य का लाइफसाइकिल अपॉर्चिनिटी कांट्रेक्ट भी मिला है।
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि एक तरफ तो 16 फरवरी 2017 को रिलायंस एडीएडी खुद यह कांट्रेक्ट मिलने का ऐलान करता है, वहीं दूसरी तरफ रक्षा मंत्रालय द्वारा, पाईआईबी के माध्यम से 7 फरवरी 2018 को जारी प्रेस रिलीज़ में कहा गया है कि राफेल विमान सौदे के संबंध में दसां एविएशन द्वारा अभी तक किसी को ‘ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट दिया ही नहीं गया है। (देखें नीचे दिया गया पीआईबी द्वारा जारी रक्षा मंत्रालय का प्रेस रिलीज़)
इतना ही नहीं इस मामले में रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण सच नहीं बोल रही हैं, इसका एक और सबूत है फ्रांस की दसां एविएशन की सालाना रिपोर्ट। दसां एविएनस ने अपनी 2016-17 की सालाना रिपोर्ट में साफ लिखा है कि उसके साथ ‘ऑफसेट कांट्रेक्ट’ रिलायंस समूह कर रहा है।
कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि इस पूरे मामले में सिर्फ ऑफसेट कांट्रेक्ट को लेकर ही गलतबयानी नहीं की जा रही है, बल्कि डिफेंस ऑफसेट कांट्रेक्ट दिए जाने के दिशा-निर्देशों की भी जबरदस्त अनदेखी की गई है। नियमानुसार किसी भी कंपनी को ऑफसेट कांट्रेक्ट समझौते पर रक्षामंत्री और रक्षा मंत्रालय के एक्विजिशन मैनेजर की मंजूरी अनिवार्य है। लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं किया गया। इसके अलावा ऐसे कांट्रेक्ट को अंतिम रूप देने से पहले इसे डिफेंस एक्विजिशन काउंसिल के सामने भी रखना जरूरी है। लेकिन ऐसा भी नहीं किया गया। इस तरह मोदी सरकार ने सारे नियम-कायदों को ताक पर रख दिया।
गौरतलब है कि रक्षा मंत्रालय में एक स्थायी ‘डिफेंस ऑफसेट मैनेजमेंट विंग’ (डीओएमडब्लू) की स्थापना की गई है और सभी ‘ऑफसेट कॉन्ट्रेक्ट’ के लिए ‘डिफेंस ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट दिशानिर्देश’ भी जारी किए गए हैं। इन दिशा निर्देशों को सरकार की वेबसाइट http://www.makeinindiadefence.gov.in/DefenceOffsetGuidelines.pdf पर देखा जा सकता है।
इस पूरे मामले पर कांग्रेस ने कुछ सवाल पूछे हैं:
- क्या रिलायंस और दसां एविएशन के बीच 30,000 करोड़ रुपए का ‘ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट’ रक्षामंत्री की अनुमति के बिना हो सकता है?
- क्या इस ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट पर रक्षा मंत्रालय के ‘एक्विजि़शन मैनेजर’ ने हस्ताक्षर किए?
- डीओएमडब्लू द्वारा हर 6 महीने में किया जाने वाला ऑडिट क्यों नहीं किया गया?
- नियमानुसार ‘एक्विजि़शन विंग’ ने ‘डिफेंस एक्विजि़शन काउंसिल’ को अपनी वार्षिक रिपोर्ट क्या जमा कराई है? अगर नहीं, तो इसका कारण क्या है?
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Published: 27 Jul 2018, 8:24 PM