पंजाब-हरियाणा के बीच मोदी सरकार के कारण फिर बनी दरार! 'चंडीगढ़ पर पूरा कंट्रोल' को लेकर दोनों राज्यों में घमासान
चंडीगढ़ के मुलाजिमों पर केंद्र के सर्विस रूल लागू करने के बाद छिड़े घमासान का अंजाम कुछ भी हो, लेकिन मोदी सरकार ने दोनों राज्यों के बीच एक नया मोर्चा जरूर खोल दिया है।
केंद्र सरकार ने हरियाणा और पंजाब के बीच एक नया फ्रंट खोल दिया है। राजधानी चंडीगढ़ को लेकर दोनों राज्य आमने-सामने खड़े हो गए हैं। हालत ऐसे बन गए हैं कि पंजाब ने अपना विशेष विस सत्र बुलाकर चंडीगढ़ तत्काल पंजाब को सौंपने की मांग कर दी है। अब हरियाणा में भी विस का तुरंत सत्र बुला उसमें प्रस्ताव पास कर चंडीगढ़ पर राज्य का हक पुख्ता करने की मांग उठी है। किसान आंदोलन के दौरान दोनों राज्यों में बना भाईचारा एक बार फिर केंद्र की मोदी सरकार ने तार-तार कर दिया है। अब राजनीतिक पंडित केंद्र के इस कदम के बाद भाजपा की सियासी मंशा के तार खोज रहे हैं।
चंडीगढ़ के मुलाजिमों पर केंद्र के सर्विस रूल लागू करने के बाद छिड़े घमासान का अंजाम कुछ भी हो, लेकिन मोदी सरकार ने दोनों राज्यों के बीच एक नया मोर्चा जरूर खोल दिया है। एसवाईएल, पंजाब के हिंदी भाषी क्षेत्र और विधानसभा में अपना हक हरियाणा पहले ही मांग रहा है। अब केंद्र के कदम से राजधानी का जिन्न एक बार फिर बोतल से बाहर आ गया है। न सिर्फ विस में 60 और 40 के अनुपात में पंजाब और हरियाणा के बीच बंटवारा है बल्कि चंडीगढ़ में भी इसी अनुपात में दोनों राज्यों के कर्मचारी तैनात करने की व्यवस्था चली आ रही है।
दोनों राज्यों के बीच कई मसले बेहद संवेदनशील हैं। फिर अभी तत्काल ऐसी क्या जरूरत आ पड़ी थी कि अमित शाह ने चंडीगढ़ आकर यहां के कर्मचारियों पर केंद्रीय सर्विस रूल लागने का ऐलान कर दिया और 1 अप्रैल से इसे अंजाम भी दे दिया गया। वह भी तब जब ऐसा कोई बड़ा आंदोलन भी वर्तमान में इस मांग को लेकर चंडीगढ़ में नहीं चल रहा था। भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) में पंजाब और हरियाणा के दो स्थायी सदस्यों की होने वाली तैनाती का रास्ता दूसरे राज्यों के लिए भी खोलने का मामला अभी ठंडा भी नहीं पड़ा था कि इस मुद्दे ने फिर सियासी फिजा को गर्म कर दिया है।
शुक्रवार को पंजाब की आम आदमी पार्टी की सरकार ने विधानसभा का स्पेशल सेशन बुलाकर चंडीगढ़ का पूर्ण अधिकार पंजाब को देने के लिए प्रस्ताव सर्वसम्मति से पास कर दिया। इससे पहले भी 1967, 1970, 1978, 1985, 1986 और 2014 को यह प्रस्ताव पंजाब विस में आ चुका है। भगवंत मान ने इसके पीछे तर्क देते हुए कहा कि यह प्रस्ताव केंद्र की दमनकारी नीतियों के विरुद्ध है। चंडीगढ़ पर पंजाब के हक के लिए हर स्तर पर आवाज उठाई जाएगी। पंजाब सरकार का तर्क है कि पंजाब के गांवों को उजाड़कर उस वक्त चंडीगढ़ बसाया गया। इसे अस्थायी तौर पर कुछ साल के लिए केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया था। केंद्र अब इसे पंजाब को दे। भाजपा को छोड़कर पंजाब के सभी दल इस मुद्दे पर एकजुट हो गए हैं।
दूसरी तरफ हरियाणा में भी सभी दल एक साथ आ गए हैं। पूर्व मुख्यमंत्री नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने पंजाब सरकार द्वारा विधानसभा में चंडीगढ़ को लेकर पेश किए गए प्रस्ताव पर कड़ी आपत्ति जाहिर की है। उन्होंने इस प्रस्ताव के खिलाफ दिल्ली में कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाई है। हुड्डा का कहना है कि पंजाब सरकार बेवजह दोनों राज्यों के भाईचारे में दरार डालना चाहती हैं। चंडीगढ़ हरियाणा की राजधानी थी, है और रहेगी। शाह कमीशन ने भी कहा था कि चंडीगढ़ पर पहला हक हरियाणा का है। अगर पंजाब सरकार राज्यों के मसलों पर बात करने की इच्छुक है तो उसे सबसे पहले एसवाईएल को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करना चाहिए। साथ ही हिंदी भाषी क्षेत्रों समेत तमाम मसलों पर बात करनी चाहिए। उन्होंने मांग की कि हरियाणा सरकार को पंजाब विधानसभा में पेश किए गए प्रस्ताव के खिलाफ बिना देरी किए एक सर्वदलीय बैठक बुलानी चाहिए।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी सैलजा का कहना है कि पंजाब की आम आदमी पार्टी सरकार द्वारा विधानसभा में प्रस्ताव पेश कर कहना कि चंडीगढ़ पर सिर्फ पंजाब का हक है। चंडीगढ़ को सिर्फ पंजाब की राजधानी घोषित किया जाए। यह प्रस्ताव आम आदमी पार्टी की हरियाणा विरोधी सोच को दर्शाता है। चंडीगढ़ हरियाणा का है और चंडीगढ़ पर हरियाणा का पूरा हक है। आम आदमी पार्टी हो या भाजपा दोनों को ही हरियाणा के हितों से कोई सरोकार नहीं है। सैलजा ने 4 अप्रैल को चंडीगढ़ में इस मुद्दे पर बैठक बुलाई है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल का कहना है कि चंडीगढ़ दोनों ही राज्यों की राजधानी है। पंजाब और हरियाणा दोनों का चंडीगढ़ पर हक है। पंजाब के ऐसे एकतरफा प्रस्ताव का कोई अर्थ नहीं है। इनेलो विधायक अभय चौटाला ने मांग की है कि मुख्यमंत्री को तुरंत विधानसभा का विशेष सत्र बुला कर हरियाणा के हितों के लिए चंडीगढ़ और एसवाईएल पर एक प्रस्ताव पास करना चाहिए कि चंडीगढ़ मुद्दे पर शाह कमीशन की रिपोर्ट और एसवाईएल पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय तुरंत प्रभाव से लागू किया जाए।
अभय चौटाला का कहना है कि शाह कमीशन की रिपोर्ट में साफ कहा गया था कि चंडीगढ़ पर पहला हक हरियाणा का है और अगर चंडीगढ़ पंजाब को दिया जाता है तो 109 हिंदी भाषी गांव हरियाणा को दिए जाएंगे। महम से निर्दलीय विधायक बलराज कुंडू का कहना है कि हरियाणा विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर न केवल पंजाब के इस प्रस्ताव का विरोध किया जाए बल्कि चंडीगढ़ के हक में हरियाणा का नया प्रस्ताव तैयार कर केंद्र सरकार को भेजा जाए। साथ ही हरियाणा के सभी नेताओं को साथ लेकर चंडीगढ़ पर अपनी दावेदारी को लेकर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और गृह मंत्री से मुलाकात करनी चाहिए। जाहिर है केंद्र के इस एक कदम ने पंजाब चुनाव के बाद यहां के शांत माहौल को एक बार फिर गर्म कर दिया है।
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