पंजाब सरकार लाल किला हिंसा में गिरफ्तार किसानों को देगी 2-2 लाख रुपए, विधानसभा कमेटी की जांच में सनसनीखेज खुलासे
विधानसभा कमेटी ने बताया कि लाल किला हिंसा के आरोप में हिरासत में लिए गए किसानों को अमानवीय यातनाएं दी गईं और अपमानित किया गया। धार्मिक भावनाओं को भी ठेस पहुंचाई गई। किसी को माओवादी, किसी को खालिस्तानी कहा गया। बुजुर्गों की दाढ़ी उखाड़ी गई।
पंजाब सरकार ने बड़ा फैसला लेते हुए घोषणा की है कि 26 जनवरी को लाल किला हिंसा में गिरफ्तार आंदोलनरत 83 किसानों को दो-दो लाख रुपए का मुआवजा दिया जाएगा। उधर, इस हिंसा की जांच के लिए गठित पंजाब विधानसभा की पांच सदस्यीय विशेष कमेटी ने लाल किला हिंसा को बड़ी साजिश करार देते हुए केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस पर गंभीर आरोप लगाए हैं।
हिंसा मामले में गिरफ्तार किसानों और उनके परिजनों को राज्य सरकार की ओर से मुआवजा देने की जानकारी मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने अपने टि्वटर हैंडल पर दी है। इससे पहले राज्य सरकार किसान आंदोलन के दौरान मारे गए 76 किसानों के परिजनों को 5-5 लाख रुपए की आर्थिक सहायता दे चुकी है। आंदोलन के दौरान मारे गए प्रत्येक किसान के परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने की घोषणा भी की गई है। पंजाब सरकार ने यूपी के लखीमपुर खीरी हिंसा में मारे गए किसानों के परिजनों को भी 50-50 लाख रुपये की सहायता दी थी। सीएम चन्नी खुद लखीमपुर खीरी गए थे और पीड़ित परिवारों को यह सहायता राशि दी थी।
लाल किला हिंसा पर पंजाब सरकार ने 30 मार्च को विधायकों फतेहजंग सिंह बाजवा, हरिंदर पाल सिंह चंदूमाजरा, कुलबीर सिंह जीरा, सरबजीत कौर माणूके की अगुवाई में एक विशेष जांच कमेटी का गठन किया था। विधानसभा कमेटी ने पाया है कि 26 जनवरी का लाल किला प्रकरण केंद्र सरकार दिल्ली पुलिस की साजिश थी। इस हिंसा में दो लोग मारे गए थे और अनेक जख्मी हुए थे। दिल्ली पुलिस ने लाल किला इलाके में उपद्रव के लिए भारी संख्या में किसानों को गिरफ्तार किया था।
पंजाब की विशेष विधानसभा कमेटी का कहना है कि हिंसा के बाद मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन किया गया। कमेटी ने रिपोर्ट पीड़ितों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और प्रत्यक्षदर्शियों से मुलाकात के बाद तैयार की है। सूत्रों के मुताबिक पंजाब सरकार कमेटी की इस सिफारिश पर गंभीरता से विचार कर रही है कि दिल्ली पुलिस द्वारा गिरफ्तार किसानों पर बनाए गए मुकदमों की पैरवी राज्य के एडवोकेट जनरल की अगुवाई में हो। विधानसभा कमेटी ने यह भी कहा है कि राज्य सरकार दिल्ली पुलिस से कहे कि उसे अगर आंदोलन से संबंधित किसी किसान अथवा व्यक्ति की जरूरत है तो वह पहले पंजाब पुलिस को सूचित करे।
लाल किला हिंसा की जांच करने वाली कमेटी के मुताबिक 26 जनवरी को पुलिस ने बकायदा साजिश के तहत, बगैर किसी रोक-टोक के घटनास्थल पर जाने दिया और बाद में समूचे प्रकरण को अपनी पुलिसिया रंगत दे दी। 29 जनवरी को पेशेवर गुंडों द्वारा शांति से धरना प्रदर्शन कर रहे किसानों पर ईंटों से पथराव किया गया और किसानों से कहा गया कि वे वहां से चले जाएं। जत्थेदार गुरमुख सिंह को रास्ते में पकड़ कर पुलिसकर्मियों ने उनकी बेरहमी के साथ बूटों से पिटाई की। इंदजीत कौर और अन्य महिलाओं को देर रात अनजान जगह छोड़ा गया। पंजाब के दो नौजवानों को दिल्ली पुलिस ने स्थानीय पुलिस को सूचित किए बगैर हिरासत में लिया।
मुक्तसर की नौदीप कौर को हरियाणा पुलिस द्वारा यातनाएं देने की पुष्टि भी विधानसभा की जांच कमेटी ने की है। इसके अतिरिक्त कमेटी ने ये तथ्य सामने रखे हैं कि मोगा के मुखप्रीत सिंह का पासपोर्ट जब्त हो गया। वह जर्मनी जाने के लिए 8 लाख रुपए खर्च कर चुका था लेकिन नहीं जा पाया। गुरदासपुर का नौजवान मनजिंदर सिंह केस दर्ज होने के चलते यूके वापस नहीं लौट सका। गुरविंदर सिंह को भी विदेश जाना था लेकिन उसका पासपोर्ट जब्त हो गया। इसी तरह जतिंदर सिंह का साइप्रस का वीजा लग चुका था लेकिन पासपोर्ट जमा कर लिया गया और वह जाने से रह गया।
विधानसभा कमेटी ने बताया है कि कई नौजवानों ने कर्ज उठाकर जमानत की राशि अदा की है। विशेष छानबीन के दौरान कमेटी को जानकारी मिली कि लाल किला हिंसा के आरोप में हिरासत में लिए गए किसानों को अमानवीय यातनाएं दी गईं और अपमानित किया गया। धार्मिक भावनाओं को भी ठेस पहुंचाई गई। किसी को माओवादी, किसी को खालिस्तानी और किसी को भेड़िया-दरिंदा कहा गया। बुजुर्गों की दाढ़ी उखाड़ी गई। पुलिस ने शारीरिक चोट पहुंचाने के अलावा मानसिक अत्याचार भी किया। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार लगातार दावा कर रही है कि वह आंदोलनरत किसानों के साथ पूरा सद्भाव बरत रही है लेकिन पंजाब विधानसभा की विशेष जांच कमेटी की रिपोर्ट इस झूठ को बेपर्दा करती है।
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