मेघालय: शिलांग के पंजाबी लेन से सिखों को हटाने के फैसले पर पंजाब सरकार नाराज, डिप्टी CM रंधावा ने फिर जताया विरोध

मेघालय की राजधानी शिलांग में सिख लेन से सिखों को हटाए जाने के मेघालय सरकार के फैसले से पंजाब सरकार नाराज है।

फोटो: सोशल मीडिया
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अमरीक

हाल ही में एनडीए गठबंधन वाली मेघालय सरकार के उपमुख्यमंत्री प्रेस्टन टायन्सॉन्ग की अगुवाई में गठित उच्च स्तरीय समिति द्वारा सिफारिशों के आधार पर मेघालय मंत्रिमंडल ने थेम ल्यू मालौंग में रहने वाले सिखों को दूसरी जगह बसाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है।

गौरतलब है कि सिख लेन में सिख पीढ़ी दर पीढ़ी 200 साल से रह रहे हैं। दो साल पहले भी वहां से सिखों को उजाड़ने की बात सामने आई थी और तब कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार में मंत्री और अब चरणजीत सिंह चन्नी सरकार में उपमुख्यमंत्री तथा गृह विभाग के मुखिया सुखजिंदर सिंह रंधावा ने पंजाब सरकार के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करते हुए वहां का दौरा किया था और सिख समुदाय के सदस्यों को मिलकर भरोसा दिलाया था कि उनके विस्थापन के खिलाफ आवाज बुलंद की जाएगी।

जून 2019 में रंधावा शिलांग स्थित गुरु नानक दरबार भी गए थे, जहां गुरुद्वारा के प्रधान गुरजीत सिंह ने प्रतिनिधिमंडल को बताया था कि उनको वहां से जबरन हटाया जा रहा है। तब सुखजिंदर सिंह रंधावा ने केंद्र और प्रदेश सरकार से कड़ा विरोध जताया था।अब फिर रंधावा आगे आए हैं। उपमुख्यमंत्री व गृह मंत्री के मुताबिक वह केंद्र और मेघालय सरकार से फिर से लिखित में विरोध जाहिर करेंगे। रंधावा का कहना है कि मेघालय सरकार भू-माफिया के दबाव में सिख लेन से सिखों को विस्थापित कर रही है। यह सरासर अन्यायपूर्ण है और पंजाब सरकार इस फैसले का सख्त विरोध करती है। उन्होंने कहा कि 200 साल से भी अधिक समय से शिलांग में बसे इन सिखों के नागरिक अधिकारों का किसी भी कीमत पर उल्लंघन नहीं होने दिया जाएगा।

उ्होंने कहा है कि भाजपा गठबंधन वाली मेघालय सरकार यह फैसला फौरन वापस ले। रंधावा के मुताबिक एनडीए सरकार अल्पसंख्यकों को सुरक्षा का माहौल प्रदान करने और उनमें विश्वास पैदा करने में नाकाम रही है। पूरे देश में अल्पसंख्यक वर्ग असुरक्षित महसूस कर रहा है। इसका ताजा उदाहरण मेघालय है। जम्मू-कश्मीर कश्मीर और उत्तर प्रदेश में भी बहुत कुछ सामने आया है। यह संविधान की मूल भावना के उलट है जिसमें सबको समान अधिकार हासिल हैं।

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