राष्ट्रपति से नहीं मिली निर्भया के दोषी पवन को दया, फांसी की सजा पर अमल का रास्ता साफ
निर्भया गैंगरेप और हत्या के चार दोषियों में से एक पवन की दया याचिका राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा खारिज किए जाने के बाद अब चारों दोषियों के पास फांसी की सजा से बचने का कोई विकल्प नहीं है। नए डेथ वारंट के लिए निर्भया के वकील ने कोर्ट से अपील कर दी है।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने साल 2012 के दिल्ली गैंगरेप केस के एक दोषी पवन गुप्ता की दया याचिका खारिज कर दी है। इसके साथ ही अब निर्भया के चारों दोषियों के पास फांसी से बचने का कोई विकल्प नहीं बचा है। अब चारों के पास न तो सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल करने और न ही राष्ट्रपति से दया की मांग करने का कोई विकल्प बचा है। अब चारों को मिली फांसी की सजा पर अमल का रास्ता पूरी तरह से साफ हो चुका है।
भारत के राष्ट्रपति के यहां से दोषी पवन की दया याचिका खारिज होने के बाद निर्भया की वकील ने दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट में याचिका दायर कर चारों की सजा पर अमल के लिए नया डेथ वारंट जारी करने की मांग की है। निर्भया के माता-पिता की वकील सीमा कुशवाहा ने राष्ट्रपति के फैसले के बाद कहा कि सभी दोषियों ने अपने सारे अधिकारों के इस्तेमाल कर लिए हैं। अब सजा के लिए जो भी तारीख तय होगी, वो आखिरी होगी।
हालांकि, राष्ट्रपति के यहां से पवन की दया याचिका खारिज होने के बाद भी कम से कम 14 दिन के बाद ही दोषियों को फांसी मिल सकती है। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के तय दिशा-निर्देशों के मुताबिक दया याचिका खारिज होने के बाद दोषी पवन को 14 दिन का नोटिस दिया जाएगा, जिसके बाद ही फांसी पर अमल हो सकता है। हालांकि, कहा जा रहा है कि अभी भी पवन अपनी दया याचिका खारिज होने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर सकता है, जैसा बाकी दोषियों ने किया था। हालांकि, बाकियों की तरह ही पवन के भी सभी कानूनी विकल्प खत्म हो चुके थे।
बता दें कि दो दिन पहले पटियाला हाउस कोर्ट ने दोषियों को 3 मार्च को फांसी दिए जाने वाले डेथ वॉरंट पर रोक लगा दी थी, जिसके चलते उनकी फांसी की सजा पर अमल नहीं हुआ। कोर्ट ने कहा था कि पवन की दया याचिका राष्ट्रपति के पास लंबित है, इसलिए दोषियों की फांसी पर अमल नहीं किया जा सकता। यह तीसरी बार था, जब चारों दोषियों की फांसी टाली गई। अब चारों के पास न तो सुप्रीम कोर्ट में कोई याचिका दायर करने और न ही राष्ट्रपति से दया की मांग करने का विकल्प बचा है।
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