ब्रिटेन दौरे में पीएम मोदी को कर्नाटक चुनाव की चिंता, संत बसवेश्वर से जुड़ा वीडियो किया ट्वीट
कर्नाटक में बीजेपी की खिसकती जमीन की खबरों से पीएम मोदी चिंतित है, इसीलिए ब्रिटेन दौरे में उन्होंने लिंगायत वोटरों को रिझाने की कोशिश की है। उन्होंने वहीं लिंगायत समाज को लुभाने के लिए ट्वीट किया है।
कर्नाटक चुनाव की चिंता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश की विदेश नीति से ज्यादा सता रही है। संभवत: इसीलिए ब्रिटेन दौरे में भी वे कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए वोटरों को रिझाने की कोशिश कर रहे हैं। पीएम मोदी बुधवार को लंदन में हैं और उनके कार्यक्रम में टेम्स नदी पर स्थित लिंगायत संत बसवेश्वर की मूर्ति के सामने प्रार्थना करना भी शामिल है।
मोदी के ब्रिटेन दौरे में इस कार्यक्रम को शामिल किया जाना कर्नाटक चुनाव साधने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। 2015 में ब्रिटेन दौरे में मोदी ने संत बसवेश्वर की मूर्ति का लंदन में अनावरण किया था। न्यूज एजेंसी के मुताबिक ब्रिटेन की प्रधानमंत्री थेरेसा मे के साथ मुलाकात में भी पीएम मोदी ने भगवान बसवेश्वर का जिक्र किया।
मोदी ने बुधवार सुबह एक ट्वीट किया, जिसमें उन्होंने संत बसवेश्वर की जयंती का जिक्र किया है। उन्होंने लिखा कि “उनकी जयंती पर मैं भगवान बसवेश्वर के आगे नतमस्तक हूं। हमारे इतिहास और संस्कृति में उनका विशेष स्थान है। उनका जोर हमेश सामाजिक समरसता, एकता और उदारता पर रहा और वे हमेशा प्रेरित करते रहेंगे। भगवान बसवेश्वर ने समाज को जोड़ने का काम किया और हमें ज्ञान का महत्व समझाया।”
इस ट्वीट के साथ मोदी ने करीब दो मिनट का एक वीडियो भी शेयर किया। यह वीडियो 2015 का है, जब मोदी ने संत बसेश्वर की इस मूर्ति का अनावरण किया था।
मोदी के इस ट्वीट को कर्नाटक चुनाव से एक महीने पहले लंदन से खेला गया लिंगायत कार्ड माना जा रहा है। कांग्रेस ने पहले ही लिंगायत समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा देकर अपनी तरफ लुभाने की कोशिश की है। राज्य में इस समुदाय की आबादी 17 फीसदी है और ये चुनाव में अहम भूमिका निभाते हैं। कर्नाटक में 12 मई को विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होगा और 15 मई को नतीजे आएंगे।
कर्नायक की करीब 100 विधानसभा सीटों पर लिंगायत समुदाय के वोटरों को प्रभावशाली माना जाता है। मौजूदा विधानसभा में 224 में से 52 विधायक इसी समुदाय से हैं। इसके अलावा कर्नाटक में 400 से ज्यादा मठ लिंगायतों के हैं।
कहा जाता है कि करीब 800 साल पहले गुरु बासवन्ना ‘बसवेश्वर’ नाम के समाज सुधारक ने जाति व्यवस्था में भेदभाव के खिलाफ आंदोलन छेड़ा था। बासवन्ना के विचारों को मानने वाले ही लिंगायत और वीरशैव हैं। हालांकि, लिंगायत खुद को वीरशैव से अलग बताते हैं। उनका कहना है कि वीरशैव बासवन्ना से भी पहले से हैं। वे शिव को मानते हैं, जबकि लिंगायत शिव को नहीं मानते।
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