मुझसे बात करने के लिए प्रधानमंत्री के पास वक्त नहीं: बीजेपी सांसद उदित राज
बीजेपी के दलित चेहरा और सांसद उदित राज पार्टी में जरूर हैं, लेकिन न तो वह संतुष्ट हैं और न ही वैचारिक तौर पर पार्टी से सहमत हैं। उनकी बेचैनी से ऐसा लग रहा है कि शायद वह पार्टी छोड़ सकते हैं।
बीजेपी का दलित चेहरा, उत्तर पश्चिम-दिल्ली से लोकसभा सांसद और ऑल इंडिया कंफेडरेशन फॉर एससी-एसटी के अध्यक्ष उदित राज एससी-एसटी कानून पर हाल के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से चिंतित हैं। नवजीवन के साथ बातचीत में उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को इस संबंध में तत्काल एक पुनरीक्षण याचिका दाखिल करनी चाहिए या फिर संसद में इस संबंध में एक बिल लाना चाहिए। उन्होंने ये भी कहा कि आरएसएस की छात्र इकाई एबीवीपी को रोहित वेमुला की मौत से बरी नहीं किया जा सकता। पेश हैं उनसे बातचीत के प्रमुख अंशः
एससी-एसटी एक्ट (अत्याचार निरोधक कानून) पर हाल में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
मैं साफ कहूंगा कि यह फैसला पूर्वाग्रह से ग्रसित है। अदालत ने कहा है कि एससी-एसटी एक्ट (अत्याचार निरोधक कानून) से संबंधित सिर्फ 10-12 फीसद मामले ही सही होते हैं, बाकी सभी मामले फर्जी होते हैं। लेकिन मैं अदालत से ये पूछना चाहूंगा कि दहेज और बलात्कार के मामलों में उसकी क्या राय है। बहुत से लोग मानते हैं कि इनमें भी बड़े पैमाने पर फर्जी मामले होते हैं, तो क्या अदालत उन कानूनों को भी खत्म कर देगी। असल बात ये है कि आप कानून को किस नजरिये से देखते हैं।
इस कानून के तहत एफआईआर दर्ज कराने से लेकर अदालत में सबूत पेश करने और गवाही में लंबा समय लगता है। इसकी कमियों को दूर करने की बजाय एक तरह से कानून को ही खत्म कर दिया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट के पास ऐसा करने का अधिकार नहीं है।
क्या आपने पार्टी के अंदर इस मुद्दे को उठाया है?
इस संबंध में मैंने प्रधानमंत्री से बात करने के लिए वक्त मांगा है, लेकिन मुझे अभी तक वक्त नहीं दिया गया है।
आप प्रधानमंत्री से क्या कहना चाहते हैं?
मेरी पार्टी की सरकार को फौरन इस संबंध में अदालत में एक पूनरीक्षण याचिका दाखिल करनी चाहिए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो सरकार को इस संबंध में संसद में एक बिल पास कराना चाहिए। एससी-एसटी (अत्याचार निरोधक कानून) एक्ट को कमजोर करने की किसी भी कोशिश को किसी भी हालत में स्वीकार नहीं किया जाएगा।
मैं उनके सामने इस बात को भी उठाना चाहता हूं कि सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह के विचार दहेज और रेप के मामले में क्यों नहीं लिया। सिर्फ एससी-एसटी ऐक्ट के मामले में ही लिया, जिसका मतलब ये है कि सुप्रीम कोर्ट के जज जातिवादी हैं। गरीब, आदिवासी, दलित और पिछड़ों को जो अधिकार मिले हैं, उनको खत्म किया जा रहा है। उत्पीड़न से सुरक्षा की गारंटी संविधान द्वारा दी गई है लेकिन अफसोस है कि उसको भी खत्म किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट के हाल के फैसले के बाद ये कानून आम कानूनों से भी कमजोर हो गया है।
क्या इस मामले को लेकर बीजेपी के अंदर भी असंतोष है?
जी हां, इस मामले पर पार्टी के अंदर भी नाराजगी है। हालांकि, मैं दूसरों के बारे में कोई राय नहीं दे सकता, लेकिन इस मामले पर पार्टी को अपनी राय देनी होगी। हम ही नहीं बल्कि एनडीए में शामिल दूसरी पार्टियों का भी मानना है कि ये गलत है।
इस मामले को लेकर बीजेपी के कुछ नेता सामाजिक न्याय मंत्री थावरचंद गहलोत से मिलने गए थे, उन्होंने क्या कहा?
थावरचंद गहलोत को अपना काम करने दें। मैं प्रधानमंत्री से मुलाकात की कोशिश कर रहा हूं, क्योंकि इस मामले में पार्टी के उच्च नेतृत्व के हस्तक्षेप की जरूरत है।
एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि दलितों पर अत्याचार की घटनाओं में बीजेपी सरकार के दौरान बढ़ोतरी हुई है। आपकी इस पर क्या राय है?
दलितों के खिलाफ भेदभाव और अत्याचार जितना सरकार से जुड़ा मामला है उससे कहीं ज्यादा समाज से जुड़ा मामला है। सामाजिक जागरुकता की जरूरत है और समाज में इस संबंध में कोई काम नहीं हो रहा है।
दलितों पर अत्याचार, एससी-एसटी ऐक्ट को खत्म करने जैसी बाते हैं, कुछ लोग यहां तक कहते हैं कि बीजेपी एक मनुवादी पार्टी है। आपका दावा है कि आप अंबेडकरवादी हैं, ऐसे में आप बीजेपी के अंदर कैसे सहज महसूस करते हैं?
मैं राजनीतिक तौर पर बीजेपी से जुड़ा हूं, वैचारिक तौर पर नहीं। किसी भी पार्टी से जुड़ने के लिए सामाजिक, वैचारिक या धार्मिक स्तर पर मेलजोल जरूरी नहीं। मैं बौद्ध हूं और बौद्ध धर्म में विश्वास करता हूं और पार्टी की धार्मिक मान्यताएं अलग हैं। ये एक बड़ा अंतर है। उनकी धार्मिक मान्यताएं मेरी मान्यताओं से अलग हैं। हम जात-पात की व्यवस्था को खत्म करना चाहते हैं, लेकिन वे इसे खत्म नहीं करना चाहते। जहां तक वैचारिक मतभेदों की बात है, तो वे तो हैं ही। इसमें कहने वाली कोई बात नहीं है। मैं बीजेपी में इस शर्त पर शामिल हुआ था कि मूल रूप से दलितों का प्रतिनिधित्व बढाया जाए। मीडिया के क्षेत्र में, शिक्षा के क्षेत्र में, सरकारी नौकरियों में दलितों की भागीदारी बढ़ाई जाए।
बीजेपी के कई नेताओं पर जातिवाद को बढ़ाने और संरक्षण देने के सीधे आरोप लगे हैं। रोहित वेमुला की आत्महत्या के मामले में तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री सवालों के घेरे में आई थीं। बीजेपी के छात्र संगठन एबीवीपी की भूमिका भी इस मामले में संदिग्ध है। क्या आप मानते हैं कि इस मामले में गलत हुआ है?
बिल्कुल गलत हुआ। ये कहना कि रोहित एक वामपंथी था, इसलिए एबीवीपी के साथ उसका झगड़ा था, गलत है। उसकी आत्महत्या का मुख्य कारण जातपात के नाम पर होने वाला भेदभाव था। एबीवीपी को क्लीन चिट नहीं दी जा सकती ना ही उसे बरी किया जा सकता है। मैं पहले ही कह चुका हूं कि इस मामले की सही तरीके से जांच की जानी चाहिए।
बीजेपी के पैतृक संगठन आरएसएस के बारे में आपकी क्या राय है। कहा जाता है कि बीजेपी को आरएसस ही चलाता है ?
आरएसएस के बारे में मुझे कुछ नहीं बोलना है। उनके अपने विचार हैं। उनके विचार के बारे में आप जाकर उनसे पूछें। मैं उनका प्रवक्ता थोड़े ही न हूं।
आप उत्तर प्रदेश के हैं, जहां हाल ही में हुए उपचुनाव में बीजेपी की करारी हार हुई है। कई टिप्पणीकार मानते हैं कि एसपी और बीएसपी के मिलने से बीजेपी की हार तय है। आपकी रणनीति क्या होगी ?
यूपी हमारे लिए कठिन राज्य साबित होने वाला है। इसमें कोई दो राय नहीं कि एसपी-बीएसपी जब एक साथ आ जाएंगे तो काफी मजबूत हो जाएंगे। इसके लिए पार्टी को नए सिरे से चुनावी रणनीति बनानी पड़ेगी। हमें दलितों और पिछड़ों को साथ लाना होगा। पार्टी इस पर चर्चा करेगी और अगर उन्होंने मुझे भी बुलाया तो मैं भी जाउंगा और अपनी राय दूंगा। लेकिन अभी तक ऐसी किसी भी बातचीत के लिए मुझे नहीं बुलाया गया है।
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