मणिपुर में हिंसा के चलते ऑफिस नहीं जा रहे लोगों को नहीं मिलेगी सैलरी, 'काम नहीं-वेतन नहीं' का नियम लाएगी सरकार
मणिपुर में करीब एक लाख सरकारी कर्मचारी हैं। करीब दो महीने से जारी जातीय हिंसा के कारण पूरे मणिपुर में 65,000 से अधिक लोग अपने घर छोड़कर दूसरी जगहों पर शिफ्ट हुए हैं, जिनमें बड़ी संख्या में सरकारी कर्मचारी भी शामिल हैं, जिन्होंने राहत शिविरों में शरण ली है।
मणिपुर में जारी हिंसा के बीच राज्य सरकार ने अब सरकारी कर्मचारियों पर 'काम नहीं वेतन नहीं' नियम लागू करने का फैसला किया है। सरकार यह नियम उन कर्मचारियों के लिए लागू करेगी जो जातीय हिंसा के कारण उत्पन्न विभिन्न वजहों से अधिकृत छुट्टी के बिना दफ्तर नहीं जा रहे हैं।
मणिपुर के एक सरकारी अधिकारी ने कहा, "सामान्य प्रशासन विभाग (जीएडी) ने सभी प्रशासनिक सचिवों से उन कर्मचारियों की डिटेल देने को कहा है, जो मौजूदा स्थिति के कारण अपने आधिकारिक काम पर नहीं आ रहे हैं।" माना जा रहा है कि राज्य भर में ऐसे सरकारी कर्मचारियों की संख्या बहुत अधिक है जो ऑफिस नहीं जा रहे हैं।
मणिपुर सरकार में करीब एक लाख कर्मचारी हैं। रिपोर्ट के अनुसार, करीब दो महीने से जारी जातीय हिंसा के कारण पूरे मणिपुर में 65,000 से अधिक लोग अपने स्थानों को छोड़कर दूसरी जगहों पर शिफ्ट हुए हैं, जिनमें बड़ी संख्या में सरकारी कर्मचारी भी शामिल हैं, जिन्होंने राहत शिविरों में शरण ली है।
मणिपुर में 3 मई को जातीय हिंसा फैलने के बाद से अब तक 120 से अधिक लोगों की जान चली गई है। वहीं 400 से अधिक लोग घायल हुए हैं। इसके अलावा हिंसा में बड़े पैमाने पर घरों और संपत्तियों को नुकसान पहुंचा है। मणिपुर में 3 मई को मैतेई और कुकी समुदायों के बीच जातीय हिंसा भड़क उठी थी।
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