हिमाचल के सीएम विदेश में और सेब की फसल हो गई बीमार, शिमला से लेकर मंडी तक फैली बीमारी, किसानों के उड़े होश
हिमाचल प्रदेश के सेब किसान इन दिनों बेहद चिंतित और डरे हुए हैं। वजह है सेब की फसल में लगी एक बीमारी है जिसे अंग्रेजी में स्कैब और आम भाषा में फफूंद कहते हैं। इस बीमारी के पूरे राज्य में फैलने की आशंका है।
हिमाचल का सेब इस बार बीमार है। सेब की फसल में फफूंद लग रही है। किसानों के चेहरों पर हवाइयां उड़ रही हैं। करीब 37 साल बाद हिमाचल में सेब की फसल में लगी इस बीमारी से किसानों में हड़कंप मचा हुआ है। आशंका है कि इससे हिमाचल के सेब की करीब 4000 करोड़ रुपए की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ेगा। फिलहाल इस बीमारी के लक्षण मंडी, कुल्लू और शिमला जिलों में नजर आए हैं, लेकिन मॉनसूनी मौसम में इसके जल्द ही पूरे राज्य में फैलने की आशंका है।
इस बीमारी का सबसे ज्यादा असर हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के गृह जनपद मंडी के सेब बागानों में नजर आ रहा है। मुख्यमंत्री इन दिनों विदेश दौरे पर हैं और राज्य के लिए निवेशकों को रिझाने की कोशिश कर रहे हैं, तो उनके पैतृक इलाके जंझेली और ठुनाग के किसान बीमी के महामारी बनने की आशंका में परेशान हैं। किसानों का कहना है कि राज्य की बीजेपी सरकार इस महामारी को लेकर एकदम उदासीन है और सरकारी स्तर पर कुछ नहीं किया जा रहा है।
जो खबरें आ रही हैं उसके मुताबिक कुल्लू जिले के अणी और दलाश में, मंडी जिले के जंझेली, ठुनाग और करसोग में के अलावा शिमला जिले के नारकंडा, रोहरू, खारापत्थर, जुब्बल और चिरगांव इलाकों में इस बीमारी का भयंकर प्रकोप है। हालांकि की किन्नौर की एपल बेल्ट अभी तक इस बीमारी से बची हुई है।
गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश देश में सेब उत्पादन करने वाला बड़ा राज्य है और हिमाचल की फल अर्थव्यवस्था में सेब की फसल का 90 फीसदी हिस्सा होता है।
इस बीच हिमाचल के उद्यान विभाग ने वाई एस परमार विश्वविद्यालय के उद्यान और वन विभाग के विशेषज्ञों से इस बीमारी का तोड़ निकालने की अपील की है। उद्यान विभाग के निदेशकर एम एल धीमन ने बताया कि कई टीमें बनाई गई हैं जो इलाकों का दौरा कर किसानों को बीमारी और उससे बचाव के बारे में जानकारियां दे रही हैं।
लेकिन, विशेषज्ञों का कहना है कि इस बार स्कैब यानी फफूंद की बीमारी ज्यादा भयावह प्रतीत हो रही है। इसका असर दूरदराज के इलाकों और युवा किसानों के बीच ज्यादा दिख रहा है, क्योंकि लोगों में इस बीमारी को लेकर जानकारी की कमी है। विशेषज्ञ के मुताबिक अगर इस पर समय रहते काबू नहीं पाया गया तो यह महामारी का रूप ले सकती है।
कोटखाई के एक सेब किसान पंकज नेगी ने बताया कि यह बीमारी करीह 37 साल बाद फिर सामने आई है और इससे अकेले शिमला जिले में करीब 10 फीसदी फसल बरबाद हो चुकी है। वहीं मंडी और कुल्लू जिलों में तो कहीं ज्यादा नुकसान हुआ है। वहीं चिरागांव के जोगिंदर सिंह का कहना है कि सरकार हालांकि बीमारी से बचाव के लिए छिड़काव आदि करवा रही है, लेकिन हवा में नमी बढ़ने के साथ ही बीमारी भी बढ़ेगी।
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