असम में बीजेपी विधायक की खुली गुंडागर्दी, एनआरसी में नाम होने के बाद भी हाथी से रौंदवा दिए मुसलमानों के घर
अगर ये लोग सच में बांग्लादेशी हैं तो सरकार उन्हें तुरंत पकड़कर बांग्लादेश भेज दे। और अगर नहीं भेज रही है तो इसका मतलब वे भारतीय ही हैं, तो सरकार को उनके लिए रहने की व्यवस्था जरूर करनी चाहिए।
यह कहानी संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) से आगे की है। आप मुसलमान हैं, लेकिन अपने ही राज्य के किसी दूसरे जिले से संबंध रखते हैं या आपका विधानसभा क्षेत्र कोई और है, तो हो सकता है कि उस इलाके का विधायक आपको अपने क्षेत्र में रहने ही न दे।
सोनितपुर के मकुआ, सिरोवानी और बिहिया गांवों में रह रहे करीब 426 परिवारों के घर तोड़ डाले गए। ढाई हजार से अधिक लोग ठंड के इस मौसम में खुले आसमान के नीचे अपनी जिंदगी गुजारने को मजबूर हैं। शुक्र है कि इन लोगों के लिए कुछ संस्थाओं ने टेन्ट वगैरह लगवाकर राहत शिविर बनवा दिए हैं और फिलहाल वे इनमें ही रह रहे हैं। जिन लोगों के घर उजाड़े गए, उनमें ज्यादातर लोग डिगोली चपोरी, बाली चपोरी, लालटोप, बाटीमारी भैरवी और लुंगी बाजार गांवों के रहने वाले हैं। इन लोगों का आरोप है कि उनके पास जमीन और भारत के नागरिक होने के तमाम दस्तावेज मौजूद हैं, फिर भी उनके घरों को बेरहमी से बीजेपी विधायक पद्मा हजारिका ने सिर्फ इसलिए तोड़वा डाला क्योंकि वे इस इलाके के वोटर नहीं हैं।
डिगोली चपोरी के मोहम्मद इब्राहीम अली अपनी नम आंखों से बार-बार अपने टूटे हुए घर को निहार रहे हैं। वह आंसू पोछते हुए बताते हैं, “मैं तेजपुर से यहां आकर बसा था। यहां की मस्जिद में नमाज पढ़ाता हूं। पिछले 7-8 सालों से लगातार पैसे जमा करके जमीन खरीदी और इस घर को बनाया। लेकिन 5 दिसंबर को मेरे इस आशियाना को मुझे बांग्लादेशी बताते हुए तोड़ डाला गया। जिन लोगों ने आकर मकान तोड़े, वे अपने साथ हाथी और बुलडोजर भी लाए थे। कच्चे मकानों पर हाथी दौड़ा दिया गया, वहीं पक्के मकानों पर बुलडोजर चलाया गया। साथ में भारी संख्या में पुलिस फोर्स भी थी। हमें कुछ भी बोलने या कागज दिखाने का मौका नहीं दिया गया।”
इब्राहीम अली आगे कहते हैं, “मैं भारत में जन्मा हूं। मेरे बाप-दादा यहीं पैदा हुए। एनआरसी सूची में हमारा नाम 1951 में भी था। इस बार भी है। मेरे पास सारे कागजात हैं। फिर भी, पता नहीं किस आधार पर, विधायक पद्मा हजारिका मुझे बांग्लादेशी बता रहे हैं।” तोहरा खातून की भी यही कहानी है। जब इन पंक्तियों का लेखक उनके पास पहुंचा, तब वह कैंप से आकर चुपचाप किन्हीं खयालों में मगन अपने टूटे घर को निहार रही थीं। कई सवाल करने के बाद वह असमिया में बताती हैं, “मेरा वोट सोनितपुर में है। पद्मा हजारिका को वोट नहीं दे सके, इसलिए उन्होंने घर तोड़ दिया।”
राहत शिविर में अपनी जिंदगी गुजार रहे 60 साल के वहद अली बताते हैं कि उनका घर पहले नौगांव में था लेकिन 12 साल पहले वह इधर आ गए। वह कहते हैं, “मेरा वोटर आईडी नौगांव का ही है। वोट देने वहीं जाता हूं। अब यहां वोट नहीं देने से यहां के विधायक ने मेरा घर तोड़ दिया।” यह पूछने पर कि उन्होंने अपना वोटर आईडी यहां ट्रांसफर क्यों नहीं कराया, वह टूटी-फूटी हिंदी में कहते हैंः ‘आप यहां के नहीं हैं इसलिए ऐसा सवाल पूछ रहे हैं। यहां वोट ट्रांसफर कराना इतना आसान नहीं है। इस चक्कर में कई लोगों को डी (संदिग्ध) वोटर बना दिया गया। और अब एनआरसी के प्रक्रिया में यह काम और भी मुश्किल था।’
राहत शिविर में जिंदगी गुजार रहे औरतों और बच्चों में काफी निराशा और गुस्सा है। कई औरतों को लगने लगा है कि अब आगे की जिंदगी बेहद अंधकारमय है। पढ़ाई की बात पूछने पर एक युवक- जियाउर रहमान, भड़क जाता है। वह कहता हैः “कौन मां-बाप नहीं चाहता कि उसका बच्चा पढ़-लिखकर पैसा कमाए। लेकिन हम राहत शिविर में रहकर कैसे पढ़ेंगे। अब तो जबसे हमें बांग्लादेशी बोलकर हटाया गया है, स्कूल में जाने के बारे में हम सोच ही नहीं सकते। यहां तो यही नहीं पता, जिंदगी कैसे गुजरेगी। अब तो ज्यादातर लोग आत्महत्या करने के बारे में सोचने लगे हैं। हमारे घर हमसे छीन लिए गए। पहले घर था तो आस-पास कुछ अनाज या सब्जी उगाकर खा लेते थे। आस-पास के गांवों में काम मिल जाता था। लेकिन जब से सरकार एनआरसी और नया नागरिकता कानून लेकर आई है, हम इसी में उलझे हुए हैं। आजकल हर जगह विरोध हो रहा है। कहीं कोई काम नहीं है। सब बेकार हैं।”
वहीं पर मिले 19 साल के मो. उमर दसवीं पास हैं। 12वीं कर सेना में जाना चाहते थे। लेकिन अब उन्हें भविष्य अंधकारमय नजर आता है। वह कहते हैं, “पिता जी बीमार हैं। ऊपर से हमें बेघर कर दिया गया। ऐसे में आगे की जिंदगी में क्या होगा, पता नहीं।” आठवीं में पढ़ने वाली सैमुननिशा भी डॉक्टर बनना चाहती हैं। लेकिन अब वह स्कूल नहीं जा पा रही है। उसका कहना है कि राहत शिविर से स्कूल बहुत दूर है। कैसे जा पाएंगे?
इस सिलसिले में इस लेखक ने विधायक पद्मा हजारिका से भी बात की। वह इन तमाम आरोपों को खारिज करते हैं। हजारिका का कहना हैः “ये लोग डी-वोटर हैं और ये लोग यहां जमीन कब्जा कर रहे थे इसलिए हमने इन्हें यहां से हटाया।” जब उनसे सवाल किया गया कि अगर ये लोग ‘डी-वोटर’ हैं तो क्या आप सबके घर तोड़ देंगे, विधायक ने कहा कि इस संबंध में जो भी बात करनी है, वह जिला प्रशासन से कीजिए। जिला कमिश्नर मानविन्द्र प्रताप सिंह का भी कहना है कि इन लोगों ने सरकारी जमीन पर कब्जा कर रखा था इसलिए इन्हें वहां से हटाया गया।
लेकिन यह बताने पर कि इन तमाम लोगों के पास जमीन से जुड़े तमाम कागजात मौजूद हैं, मानविन्द्र प्रताप सिंह कहते हैं, “उनके पास कागज हैं तो उन्होंने ये जमीन किसी अवैध कब्जाधारी से ही खरीद रखी थी क्योंकि यह सरकारी जमीन है।” यह पूछने पर कि क्या कारण है कि कुछ चुनिंदा घरों को ही तोड़ा गया जबकि अगल-बगल के घर बिल्कुल सुरक्षित हैं, क्या वे सरकारी जमीन पर नहीं हैं? इस पर उन्होंने कहा कि हम सबको जल्दी ही वहां से हटाएंगे क्योंकि हमारी योजना वहां इंडिस्ट्रियल पार्क स्थापित करने की है। साथ ही मानविन्द्र प्रताप सिंह जिले में किसी भी प्रकार का राहत शिविर होने की बात से इंकार करते हैं।
जमाअत इस्लामी हिंद से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता इस्फाकुल हुसैन बताते हैं कि पहले तो इनके साथ कुदरत ने अन्याय किया। जिया भरोली नदी इनकी जमीन लील गई। और अब सरकार के लोग उनसे जमीनें छीन रहे हैं। यहां हर आदमी जानता है कि यह जिया भरोली नदी किस तरह से लोगों के जमीनें छीन लेती है। वह कहते हैंः ‘अगर ये लोग सच में बांग्लादेशी हैं तो सरकार उन्हें तुरंत पकड़कर बांग्लादेश भेज दे। और अगर नहीं भेज रही है तो इसका मतलब वे भारतीय ही हैं, तो सरकार को उनके लिए रहने की व्यवस्था जरूर करनी चाहिए।’ बता दें कि जमाअत इस्लामी हिंद और उनसे जुड़ी संस्थाएं यहां के तीन शिविरों में रह रहे लोगों के लिए रिलीफ का काम कर रही है।
कौन हैं पद्मा हजारिका
पद्मा हजारिका सोनितपुर जिले के सुतिया से विधायक हैं। पहले इनका संबंध असम गण परिषद से था लेकिन अब वह बीजेपी में हैं। वह हमेशा सुर्खियों में रहते हैं। पिछले दिनों गोआलपाड़ा के आस-पास के लोग एक जंगली हाथी से परेशान थे। खबरों के मुताबिक, इस जंगली हाथी ने पांच लोगों की जान ले ली थी। दिलचस्प है कि बीजेपी नेताओं की तरफ से इस हाथी को ओसामा बिन लादेन नाम दिया गया। और इसे पकड़ने के लिए पद्मा हजारिका खुद बंदूक लेकर अपने साथियों के साथ जंगल में तलाश में निकल पड़े और हाथी को मार गिराया। तब मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने जमकर उनकी तारीफ की थी। यही नहीं, जब नागरिकता संशोधन अधिनियम (कैब) का विरोध करने वाले लोगों ने हजारिका के घर के सामने प्रदर्शन किया, तब उन्होंने प्रेस बयान जारी कर कहा, “6 दिसंबर को मैंने खुद 500 बांग्लादेशियों को अपने दम पर निकाला और दौड़ाकर भगाया है। क्या मैंने ऐसा कर अपने समाज के खिलाफ कोई काम किया है?
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