राफेल डील: राहुल का जेटली पर पलटवार, कहा, आपके झूठ के लिए ये रहा यूपीए के रक्षा सौदों का जवाब
राहुल गांधी ने अरुण जेटली के उन आरोपों का जवाब दिया है, जिसमें उन्होंने यूपीए पर रक्षा सौदों से जुड़ी जानकारी नहीं देने का आरोप लगाया था। सबूत के तौर पर राहुल गांधी ने दस्तावेज भी पेश किया है।
राफेल डील को लेकर कांग्रेस का मोदी सरकार पर लगातार हमला जारी है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने रक्षा सौदों को लेकर वित्तमंत्री अरुण जेटली के आरोपों पर पलटवार किया है। राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा, “प्रिय जेटली जी आपने कहा कि यूपीए ने कभी रक्षा खरीद के दाम जारी नहीं किए? आपके झूठ के लिए, यूपीए द्वारा मूल्य निर्धारण को लेकर पूरी पारदर्शिता के साथ संसद में दिए गए 3 जवाब दिए जा रहे हैं।” राहुल गांधी ने 4 पन्ने का दस्तावेज सबूत के तौर पर ट्वीट किया है, जिनमें रक्षा सौदे को लेकर तत्कालीन यूपीए सरकार द्वारा जवाब दिया गया है।
राहुल गांधी ने जो ट्वीट किया है उसमें मनीष तिवारी द्वारा एयरक्राफ्ट कैरियर ऐडमिरल गोर्शकोव डील, ओवैसी द्वारा सुखोई-30 विमान की डील और कलिकेश नारायण सिंह देव के सवालों पर दिए गए जवाब हैं। यह सवाल यूपीए शासनकाल में डिफेंस डील पर सरकार से पूछे गए थे। राहुल ने इन सवालों के जवाब भी सबूत के तौर पर इस ट्वीट में जारी किया है।
राहुल गांधी ने वित्तमंत्री अरुण जेटली के उन आरोपों का जवाब दिया है, जिसमें 8 फरवरी को अरुण जेटली ने कहा था कि राफेल सौदे पर कांग्रेस को सवाल उठाने का हक नहीं है। जेटली ने कहा था, “इस सौदे को लेकर यूपीए सरकार के कार्यकाल पर भी सवाल खड़े किए गए थे, जिस पर तत्कालीन केंद्रीय मंत्री प्रणब मुखर्जी ने सवालों का जवाब देने से मना कर दिया था।” जेटली ने यह भी कहा था कि राहुल गांधी राफेल डील पर सवाल उठाने से पहले प्रणब मुखर्जी से जाकर मिलें। जेटली के इन्हीं आरोपों पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने करारा जवाब दिया है।
इससे पहले कांग्रेस पार्टी ने भी जेटली के आरोपों पर पलटवार करते हुए कई सवाल पूछे हैं। कांग्रेस के राज्य सभा सांसद राजव गौड़ा और प्रमोद तिवारी के साथ पार्टी के संचार विभाग के प्रमुख रणदीप सिंह सुरजेवाला ने एक प्रेस कांफ्रेंस कर राफेल डील को लेकर मोदी सरकार पर हमला बोला और 6 सवालों फेहरिस्त जारी करते हुए कहा कि देश इन सवालों के जवाब जानना चाहता है।
कांग्रेस पार्टी की ओर से जारी किए गए बयान में कहा गया कि मोदी सरकार लड़खड़ा रही है और सच्चाई को छिपाने और उस पर पर्दा डालने का काम कर रही है। यह सरकार राष्ट्रहित की बलि ले रही है और सरकारी खजाने को हुए नुकसान पर जवाब देने से इनकार कर रही है। देश मोदी सरकार से इन सवालों के जवाब की मांग कर रहा है-
1. मोदी सरकार द्वारा खरीदे जाने वाले 36 राफेल एयरक्राफ्ट की प्रति विमान कीमत क्या है? क्या 17 नवंबर, 2017 को रक्षा भवन में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान रक्षा मंत्री, निर्मला सीतारमण ने राफेल एयरक्राफ्ट की कीमत साझा करने की सहमति नहीं दी थी? क्यों प्रधान मंत्री, रक्षा मंत्री और वित्त मंत्री 'खरीद मूल्य' को छिपा रहे हैं?
2. 5 फरवरी, 2018 को रक्षा मंत्री ने राफेल एयरक्राफ्ट की कीमत 'गोपनीयता समझौते' के आधार पर बताने से इंकार कर दिया, जो संभवत: 24 जनवरी, 2018 को खत्म हो चुका है। 8 फरवरी, 2018 को वित्त मंत्री ने 'राष्ट्रीय सुरक्षा' को आधार बनाकर पर कीमत का खुलासा करने से इनकार कर दिया। क्या राफेल एयरक्राफ्ट की कीमत का पूरा खुलासा 'राष्ट्रीय हित' में नहीं है? क्यों सरकार के दो मंत्री दो अलग-अलग तरह की बातें कर रहे हैं? वे किसे बचाने की कोशिश कर रहे हैं? एयरक्राफ्ट की 'कीमत' को 'गोपनीयता' और ‘आवरण’ के पर्दे में क्यों छिपाया जा रहा है?
3. क्या यह सही है कि मोदी सरकार द्वारा तय की गई प्रति राफेल विमान की कीमत 241.66 मिलियन अमरीकी डॉलर (मौजूदा विनिमय दरों के अनुसार, 1570.8 करोड़) थी जो कि 12 दिसंबर, 2012 को लगाई गई अंतरराष्ट्रीय बोली में $ 80.95 मिलियन (526.1करोड़ रुपये) थी। क्या एक अन्य देश- कतर ने नवंबर 2017 में 12 राफेल लड़ाकू विमान 108.33 मिलियन डॉलर (694 .80 करोड़ रुपये मौजूदा विनिमय दरों के अनुसार) प्रति विमान की दर से खरीदा था? अगर यह सही है, तो मोदी सरकार ने राफेल एयरक्राफ्ट के लिए इतनी ज्यादा कीमत का भुगतान क्यों किया?
4. भारतीय वायु सेना के सभी तकनीकी आवश्यकताओं के अनुसार राफेल और यूरोफाइटर टाइफून, दोनों एयरक्राफ्ट बराबर पाए गए थे। क्या यह सही नहीं है कि 4 जुलाई 2014 को यूरोफाइटर टाइफून ने तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली को कीमतों में 20% की कमी करने का एक लिखित प्रस्ताव दिया था? प्रधान मंत्री मोदी और रक्षा मंत्री ने दोनों कंपनियों को 'अंतर-सरकारी समझौता मार्ग' के माध्यम से नई बोलियां प्रस्तुत करने के लिए क्यों नहीं कहा?
5. प्रधान मंत्री मोदी द्वारा 'रक्षा पर मंत्रिमंडल समिति' की पूर्वानुमति क्यों नहीं ली गई? रक्षा खरीद प्रक्रिया का उल्लंघन क्यों किया गया? इस मुद्दे पर प्रधान मंत्री, रक्षा मंत्री और वित्त मंत्री पूरी तरह से क्यों चुप हैं?
6. ‘एचएएल’ ने ‘डसॉल्ट एविएशन’ के साथ 13 मार्च 2014 को एक 'कार्य साझा समझौते' पर पहले से ही हस्ताक्षर किया हुआ था, इसके बावजूद, 30,000 करोड़ रुपए के 'ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट' के लिए एक निजी कंपनी के पक्ष में सरकारी पीएसयू ‘एचएएल’ की अनदेखी क्यों की गई?
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Published: 09 Feb 2018, 7:08 PM