नूंह हिंसा: सांप्रदायिकता के सरकारी प्रतिशोध में कानूनी रोज़ी-रोटी को रौंदते बुलडोज़र

 नूंह में खास समुदाय के लोगों की इमारतें ढहाने की कार्रवाई अदालत के आदेश को ताक पर रखकर तो हुई ही, पिछली तारीखों के नोटिस का भी इस्तेमाल किया गया

यह अब्दुल रशीद हैं जिनकी दुकान नूंह के नलहर में मेवाती मेडिकल कॉलेज के पास थी। इसे प्रशासन ने ध्वस्त कर दिया। (: Getty Images
यह अब्दुल रशीद हैं जिनकी दुकान नूंह के नलहर में मेवाती मेडिकल कॉलेज के पास थी। इसे प्रशासन ने ध्वस्त कर दिया। (: Getty Images

नूंह में 4 अगस्त की शाम जिला प्रशासन ने मोहम्मद सऊद की पैतृक जमीन पर बनी 18 दुकानें ढहा दीं। उनका और उनके भाइयों का दावा है कि यह उन्हें 1998 में विरासत तौर पर हासिल हुई थी। 4,400 वर्ग फुट क्षेत्र में फार्मेसी, डायग्नोस्टिक सेंटर और खाने-पीने के सामान वाली दुकानों समेत 14 पक्के निर्माण यहां थे।

सऊद उन कई नूंह निवासियों में हैं जिन्हें अपनी संपत्तियों और प्रतिष्ठानों पर कानूनी अधिकारों के बावजूद राज्य की मनमानी कार्रवाई का शिकार होना पड़ा। यह कार्रवाई 31 जुलाई को नूंह में सांप्रदायिक हिंसा भड़कने के बाद की गई। इमारतों को ढहा देने की कार्रवाई 3 अगस्त को शुरु हुई और नूंह के नलहर, फिरोजपुर झिरका और नगीना इलाकों में चली। पिंगनवा और टौरू से भी ढहाए जाने के कुछ मामलों की खबरें आईंं।

गैर-लाभकारी विधिक सहायता और शैक्षिक संगठन- सोशियो-लीगल इन्फॉर्मेशन सेंटर की फैक्ट-फाइंडिंग रिपोर्ट के अनुसार, करीब 11 गांवों और तहसीलों में तोड़फोड़ की कार्रवाई की गई।

नगर परिषद ने अनधिकृत निर्माणों के लिए (कारण बताओ समेत) नोटिस जारी किए थे। राज्य सरकार मानती है कि यह अभियान गैरकानूनी निर्माणों के खिलाफ था लेकिन संबंधित दस्तावेज खुलासा करते हैं कि कई जगह तोड़फोड़ में न सिर्फ उचित प्रक्रियाओं, बल्कि यहां तक कि न्यायालय के आदेशों का भी उल्लंघन किया गया।

अख्तर हुसैन जिनकी खड़खड़ी मोड़ स्थित दुकान को गिरा दिया गया (Getty Images)
अख्तर हुसैन जिनकी खड़खड़ी मोड़ स्थित दुकान को गिरा दिया गया (Getty Images)

सरकारी जमीन पर अतिक्रमण को लेकर एसडीओ के आदेश के खिलाफ सऊद ने 19 जुलाई, 2022 को जिला न्यायालय में अंतरिम रोक के लिए आवेदन दिया था। राजस्व दस्तावेजों के मद्देनजर कोर्ट ने 7 अक्बटूर को दिए अपने आदेश में कहा था कि सऊद के 'निश्चित कब्जे' पर 'अगले आदेश तक' कोई कार्रवाई न की जाए। सऊद ने कहा कि 'मैंने (जिला प्रशासन के अधिकारियों को) न्यायालय के आदेश और पुनर्संशोधित राजस्व दस्तावेज दिखाने की कोशिश की लेकिन उन लोगों ने इन्हें देखने से भी मना कर दिया। मुझसे कहा गया कि उन्हें इलाके की सफाई कर देने का ऊपर से निर्देश मिला हुआ है। ये दुकानें हमारे जीवन-यापन का एकमात्र स्रोत थीं।'

सऊद की संपत्तियों को ढहाया जाना जिला न्यायालय के आदेश का उल्लंघन है। पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में वकालत करने वाले अंजलि श्योराण ने कहा कि यह आदेश सरकार समेत सभी पक्षों के लिए तब तक बाध्यकारी है जब तक या तो यही न्यायालय या उच्चतर न्यायालय इसे रद्द न कर दे।

अतिक्रमण हटाने का अभियान तब ही रोका गया जब इसे जातीय सफाया बताते हुए पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने इस पर स्वतः संज्ञान लिया। हाई कोर्ट ने कहा कि 'कानून-व्यवस्था की समस्या के नाम पर एक खास समुदाय के लोगों की इमारतें गिराई जा रही हैं।'


हालांकि 18 अगस्त को दायर अपने हलफनामों में गुरुग्राम के डिप्टी कमिश्नर निशांत कुमार यादव और नूंह के डिप्टी कमिश्नर धीरेंद्र खडगटा ने कहा कि विध्वंस को 'कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए स्वतंत्र स्थानीय अधिकारियों ने अनधिकृत कब्जाधारियों या अवैध संरचनाओं के खिलाफ' नियमित कदम उठाया।

इन हलफनामों में उन तारीखों का जिक्र है जब नोटिस दिए गए। कुछ नोटिस तो 2016 के हैं और कुछ सबसे हालिया विध्वंस से एक पखवाड़े पहले के। इनमें कहा गया कि विध्वंस की ये कार्रवाई 'पांच विभागों/सरकारी प्राधिकरणों/यूएलबी (शहरी स्थानीय निकायों)' के साथ समन्वय में की गई। आलोचक इसके वक्त और इस तरह के अभियान की फौरा जरूरत पर सवाल उठाते हैं।

सोशियो-लीगल इन्फॉर्मेशन सेंटर की फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट के अनुसार, हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण (एचएसवीपी), नगर एवं ग्राम नियोजन विभाग, पुलिस, वन विभाग और स्थानीय पंचायतों के साथ मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर के ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी (ओएसडी) जवाहर यादव- ये सभी उन संपत्तियों की पहचान करने में शामिल थे जिन्हें ध्वस्त किया गया।

शपथ पत्रों के अनुसार, 443 संरचनाएं तोड़ी गईं जिनमें से 162 स्थायी और शेष 281 अस्थायी थीं। लेकिन फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट कहती है कि 72.1 एकड़ में 37 स्थानों पर 1,208 संरचनाएं ढहा दी गईं।

हिंसा, विनाश और अभाव के पीड़ितों पर काम करने वाले एक गैर-लाभकारी संगठन- माइल्स2स्माइल्स के जमीनी सर्वे में ध्वस्त संरचनाओं की संख्या 1,210 बताई गई है। कई मामलों में तोड़फोड़ से पहले उचित तरीके से नोटिस भी नहीं दिए गए।

सरकार ने इस दावे को बिल्कुल ही नकार दिया कि तोड़फोड़ की कार्रवाई का निशाना एक खास समुदाय के लोग थे और यह अवैध थी। हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने 13 अगस्त को फ्रंटलाइन को दिए इंटरव्यू में कहा कि 'तोड़फोड़ अभियान अवैध नहीं है।' उन्होंने कहा कि 'मैं नहीं समझता कि नूंह की हिंसा से अतिक्रमण हटाने को हम क्यों जोड़ना चाहते हैं। लेकिन हां, कोई कहता है कि उन्हें पूर्व नोटिस नहीं दी गई, तो हम हाईकोर्ट में आधिकारिक लिखित जवाब दायर करेंगे।' चौटाला ने यह भी कहा कि जैसा कि अन्य राज्यों में होता है, हरियाणा में शहरी और ग्राम नियोजन विभाग अवैध गतिविधियों को फैलने से रोकने का प्रयास कर रहा है।


सऊद के भाई अब्दुल रशीद सवाल करते हैं, ‘हमारे पास 1998 से ही जमीन थी, हमने 2012 तक इनमें दुकानें नहीं बनवाईं जब तक कि एसएचकेएम कॉलेज ने काम करना आरंभ नहीं किया था। अगर ये दुकानें अवैध थीं, तो उन्होंने तब क्यों नहीं उन्हें तोड़फोड़ दिया जब वे बनाई जा रही थीं। इस वक्त अचानक इन्हें नष्ट करने का इंतजार क्यों किया गया?’ वह नलहर में राजस्व अधिकारी एक पटवारी का पत्र दिखाते हैं जो बताता है कि वह भूमि 'पहाड़ नहीं' थी, मतलब वह अरावली पहाड़ी श्रृंखला का हिस्सा नहीं थी।

वैध स्वामित्व, नलहर में भेदभावपूर्ण कार्रवाई

उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश-जैसे बीजेपी-शासित राज्यों में ऐसी तोड़फोड़ वाली कार्रवाइयां बुलडोजर न्याय के तौर पर देखी गई हैं, जिनमें एक खास समुदाय के लोगों से जुड़ी संपत्तियों को निशाना बनाया गया। नलहर के शिव मंदिर इलाके में तोड़फोड़ की काफी कार्रवाइयां की गईं जहां विश्व हिन्दू परिषद की रैली गुजरी और जिससे सांप्रदायिक हिंसा शुरू हुई।

नूंह में रहने वाले वकील ताहिर हुसैन रूपार्या ने तोड़फोड़ से प्रभावित 100 परिवारों की तरफ से हाईकोर्ट में आवेदन लगाया है। उनका कहना है कि उनमें से ज्यादातर के पास नलहर में जमीन के मालिकाना हक को साबित करने के जरूरी दस्तावेज हैं, जहां शहीद हसन खान मेवाती सरकारी मेडिकल कॉलेज (एसएचकेएम) के आसपास बाजार विकसित हो गया। इस 2.6 एकड़ क्षेत्र में 40 से ज्यादा दुकानें, डायग्नोस्टिक सेंटर, फास्ट फूड ज्वाइंट्स, फार्मेसी थीं। इनमें सहुद और भाइयों की भी थीं।

रूपार्या जिन लोगों का हाईकोर्ट में प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, उनमें से चार भाइयों के एक अन्य परिवार के पास इलाके में 24 दुकानें थीं और उन्होंने दो को छोड़कर सभी को किराये पर दे दिया था। जैसा कि एक भाई आरिफ ने दावा कियाः 3,000 वर्ग फीट में फैली इन दो दुकानों को वे लोग खुद ही चलाते थे। आरिफ बताते हैं कि हमारी दुकानें फार्मेसी, डायग्नोस्टिक लैब, मनी एक्सचेंज, किताबों की थीं और एक रेस्तरां भी था। हम अधिकतर दुकानों को चलाने में खुद शामिल भी नहीं थे। घटना के बाद हम इतने आशंकित थे कि हमें नूंह से बाहर चला जाना पड़ा क्योंकि हम नहीं जानते थे कि अधिकारी हमारे साथ और क्या करेंगे। वह बताते हैं कि रोजाना औसतन करीब 4,400 रुपये की कमाई हो जाती थी जो अब खत्म हो गई।

इसी तरह, मोहम्मद शरीफ के पास उनके नाम छह दुकानें और सलीम के पास एक थी। सलीम ने बताया कि 2018 में दुकान खरीदने के लिए उन्होंने 2.6 लाख रुपये से अधिक खर्च किए थे। उन लोगों की दोनों संपत्तियां बिना नोटिस या चेतावनी ढहा दी गईंं। सरकारी हलफनामों में कहा गया है कि सलीम के स्वामित्व वाली लगभग 300 वर्ग फीट की संरचना 'अनधिकृत स्थायी संरचना' थी।


शपथ पत्र के अनुसार, मोहम्मद अकील के स्वामित्व वाला और नूंह तहसील में 2010 में बनाया गया दो मंजिला 'सहारा होटल' 'अनधिकृत स्थायी संरचना' थी। अकील को 27 अक्तूबर, 2016, 16 फरवरी, 2017 और 21 मार्च, 2017 को नोटिस दिए गए थे। हरियाणा विकास एवं शहरी क्षेत्र नियमन कानून, 1975 और पंजाब अनुसूचित सड़क और नियंत्रित क्षेत्र अनियंत्रित विकास नियंत्रण कानून, 1963 के अनुसार, ऐसे मामलों में संबंधित पक्ष को सुनवाई का अवसर दिया जाना है। अगर न्यायिक प्राधिकरण उस व्यक्ति के खिलाफ कोई तथ्य पाता है, तो किसी दंडात्मक कार्रवाई (जिसमें ध्वस्तीकरण हो भी सकता है और नहीं भी) से पहले उस व्यक्ति को आवश्यक कदम उठाने का अवसर दिया जाना चाहिए। जैसा कि साफ है, इन मामलों में अनिवार्य प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया।

अकील के होटल से कुछ दुकानें आगे तीन मंजिला 881 वर्ग फुट का कजारिया टाइल्स शोरूम है। इसके कुछ हिस्सों को 'अतिक्रमण' के आरोप में तोड़ दिया गया। इसके मालिक मुबीन खान दिल्ली में रहते हैं। उन्होंने कहा कि न तो पहले और न अब इस किस्म की कार्रवाई के लिए कोई नोटिस दिया गया। मैं वहां जा भी नहीं पाया और नुकसान का आकलन नहीं कर पाया क्योंकि इलाके में कर्फ्यू लगा हुआ था।

यह जमीन 2019 में उनकी बेगम अरफिना के नाम पर खरीदी गई थी। वकील श्योराण ने कहा कि स्वामित्व के दस्तावेज को देखने से साफ हो जाता है कि सरकार कागजात की जांच किए बिना ही तोड़-फोड़ अभियान चला रही थी। उन्होंने कहा कि 'हाईकोर्ट ने भी ऐसा ही पाया और प्रशासन से इस बात के प्रमाण मांगे कि उसने इस किस्म की कार्रवाई किस तरह की। उन्हें उचित तरीके से पहले नोटिस भेजी जानी चाहिए थी और भू संपत्तिधारक को अपने दस्तावेज प्रदर्शित करने के लिए पर्याप्त समय दिया जाना चाहिए था।'

फिरोजपुर झिरका तहसील में अधिवक्ता मोहम्मद यूसुफ लगभग 70 ध्वंसात्मक  कार्रवाइयों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि स्वामित्व के वैध दावों के काफी सारे मामले हैं।

सरकारी आवास योजना प्रियदर्शिनी आवास योजना के तहत 2011 में नगीना में अकबरी बेगम को भूखंड आवंटित किया गया था। यह सरकार की आवासीय योजना है जिसमें गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों को मकान बनाने के लिए फंड दिए जाते हैं। लगभग 10 साल पहले अकबरी का एक कमरे का घर बना था। उसे इस आधार पर ध्वस्त कर दिया गया कि यह पंचायत की जमीन पर है। उनके बेटे मोहम्मद शाद कहते हैं कि 'तत्कालीन सरपंच ने यह घर हमें तब दिया था। इस जमीन पर कोई मामला नहीं था। हमारे परिवार में 12 लोग हैं और ध्वस्त किए जाने के बाद अब हम बेघर हैं। अब हम पड़ोस में किराये पर रह रहे हैं।'


योजना के अंतर्गत आवंटन के बावजूद अकबरी बेगम को जमीन का मालिकाना हक नहीं मिला था। 2017 में सरपंच ने सब डिविजनल मजिस्ट्रेट को पत्र लिखा लेकिन इसका कोई जवाब नहीं आया। इसके बजाय उसी साल अकबरी बेगम को नोटिस मिला जिसमें दावा किया गया था कि उसने सरकारी धन से अतिक्रमित भूमि पर निर्माण किया है। इस माह तोड़फोड़ से पहले वही एक नोटिस था जो उन्हें मिला था।

उचित प्रक्रियाएं दरकिनार

आजाद और आस मोहम्मद 1996 से अपने पक्के मकानों में रह रहे थे लेकिन 3 अगस्त को उनके घरों को जमींदोज कर दिया गया और उन्हें आस मोहम्मद के बेटे के घर में शिफ्ट कर जाना पड़ा। वन विभाग द्वारा जारी नोटिस में कहा गयाः यह 'वन संरक्षण कानून, 1980 के तहत भूमि को 'गैर-वन उपयोग' में बदलकर अवैध अतिक्रमण' है। 55 साल के आस कहते हैं कि 'हमें बिजली और पानी के बिल मिलते थे। मालिकाना हक को लेकर कभी कोई आपत्ति नहीं आई।' उन्होंने बताया कि उन्हें अपना सामान बाहर निकालने के लिए पांच मिनट का भी समय नहीं दिया गया। लिहाजा, घर के साथ-साथ सारा सामान भी तहस-नहस हो गया।

वन विभाग के अवैध अतिक्रमण के बयान के आधार पर अरावली रेंज से सटे नलहर में 12 और आवासीय संपत्तियों को ध्वस्त कर दिया गया। आजाद और आस’ दोनों ने दावा किया कि विध्वंस के दिन उनके घरों पर पिछली तारीख के नोटिस चिपकाए गए थे। इसी किस्म के आरोप दूसरे इलाकों में भी लगाए गए जहां लोगों ने कहा कि न तो उन्हें समय पर उचित नोटिस दिए गए और न किसी तरह की सूचना दी गई।

नूंह के डिप्टी कमिश्नर धीरेन्द्र खडगटा ने कहा कि 'मामला कोर्ट में है। चूंकि यह न्यायालय में विचाराधीन है, मैं कोई टिप्पणी नहीं कर सकता।' फ्रंटलाइन ने शहरी और ग्राम नियोजन विभाग, हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण, हरियाणा वन विभाग, नूंह जिजा प्रशासन और प्रशासन से भी संपर्क किया। लेकिन किसी ने कोई उत्तर नहीं दिया।

कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि भले ही संपत्तियों पर अतिक्रमण हुआ हो, तोड़फोड़ की प्रक्रिया के दौरान स्थापित दिशानिर्देशों का पालन किया जाता है। पिछले साल कृष्णा नगर ग्राम विकास समिति बनाम केन्द्र सरकार मामले में हाईकोर्ट ने कहा था कि पुनर्वास की उचित योजना तैयार किए बिना लोगों को बेदखल करना सही नहीं है। 1985 के ओल्गा टेलिस बनाम बॉम्बे म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि सुनवाई का उचित अवसर दिए बिना फुटपाथ पर रहने वालों को जबरन बेदखल करना असंवैधानिक था।

भले ही उचित प्रक्रिया और निष्पक्षता को लेकर सवाल बने हुए हैं, सहुद के जैसे सैकड़ों परिवार बेघर हो गए हैं और कई बिना किसी आय और आजीविका स्रोत के रह गए हैं। सवाल है कि वे कब तक भला वहां रह सकते हैं और सरकार के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ सकते हैं?

(सुकृति वत्स राइटिंग फेलो हैं और प्रियांशा चौहान शोधकर्ताओं के स्वतंत्र नेटवर्क- लैंड कॉन्फ्लिक्ट वॉच’ में कानूनी शोध फेलो हैं। यह रिपोर्ट LAND CONFLICT WATCH में छपी रिपोर्ट का संपादित स्वरूप है। यह रिपोर्ट फ्रंटलाइन पत्रिका के 25 अगस्त अंक में भी प्रकाशित हो चुकी है।)

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