6 साल पहले शुरू हुई NRC प्रक्रिया ने लाखों लोगों को डर के साए में जीने पर किया मजबूर, पढ़ें दर्द भरी दास्तान

नेशनल सिटिजन रजिस्टर (एनआरसी) की अंतिम लिस्ट शनिवार को जारी कर दी। एनआरसी के स्टेट कोऑर्डिनेटर प्रतीक हजेला के मुताबिक, अंतिम सूची में 19 लाख 6 हजार 657 लोग बाहर हैं। छह साल पहले एनआरसी को अपडेट करने के लिए बड़े पैमाने पर प्रक्रिया शुरू की गई थी।

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

असम एनआरसी की फाइनल लिस्ट जारी कर दी गई है। एनआरसी के स्टेट कॉर्डिनेटर प्रतीक हजेला ने बताया कि 3 करोड़ 11 लाख 21 हजार लोगों का एनआरसी की फाइनल लिस्ट में जगह मिली और 19,06,657 लोगों को बाहर कर दिया गया। जो लोग इससे संतुष्ट नहीं है, वे फॉरनर्स ट्रिब्यूनल के आगे अपील दाखिल कर सकते हैं।

छह साल पहले असम में रहने वाले अवैध विदेशियों की पहचान करके 1951 के राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) को अपडेट करने के लिए बड़े पैमाने पर प्रक्रिया शुरू की गई और तब से लाखों लोग चिंता में रहते रहे हैं। सरकार ने 25 मार्च, 1971 को भारत की नागरिकता पर विचार करने के लिए कटऑफ की तारीख निर्धारित की, जिसका मतलब यह है कि जो लोग 24 मार्च, 1971 की मध्यरात्रि से पहले आए, वे भारतीय नागरिक हैं, जबकि उसके बाद आए लोगों का पता लगाया जाना चाहिए और उन्हें उनके देश भेजा जाना चाहिए।

पिछले साल, असम सरकार ने एनआरसी के मसौदे को प्रकाशित किया था जिसमें से 40,07,707 लोगों के नामों को उनकी भारतीय नागरिकता साबित करने के लिए जमा किए गए दस्तावेजों में कुछ विसंगतियों के कारण बाहर रखा गया था। अंतिम एनआरसी में अपने नामों को शामिल करने के लिए इनमें से 36 लाख से अधिक लोगों ने नए सिरे से आवेदन किया।


सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में काम करने वाले एनआरसी अधिकारियों ने भी बाहर रखे गए लोगों को उनकी भारतीय नागरिकता साबित करने के लिए एक बार फिर से प्रयास करने के लिए दावे और आपत्तियों की प्रक्रिया की व्यवस्था की। उन लोगों के लिए जो इसे अंतिम सूची में शामिल करने में विफल रहते हैं, लंबी कानूनी लड़ाई का इंतजार है। सूची से बाहर रखे गए लोगों के पास राज्य भर में फॉरनर ट्रिब्यूनल के माध्यम से अपनी भारतीय नागरिकता साबित करने के लिए 120 दिन होंगे।

शनिवार को अंतिम सूची के प्रकाशन के पहले, पश्चिमी असम के गोलपारा जिले के खुटामारी गांव में तनाव का माहौल रहा। एनआरसी के ड्राफ्ट में गांव के 100 से अधिक लोगों ने अपना नाम नहीं पाया था। उनमें से अधिकांश ने अपनी भारतीय नागरिकता साबित करने के लिए नए आवेदन दायर किए।

असम की राजधानी गुवाहाटी के पश्चिम में लगभग 170 किलोमीटर की दूरी पर स्थित, खुटामारी गांव है, जहां विभिन्न धर्मो के लोग रहते हैं जिनमें मुस्लिम, बोडो, राबास और कोच राजबोंगशीस शामिल हैं। हालांकि, मुसलमान पीढ़ियों से गांव में रह रहे हैं, उनमें से कुछ एनआरसी के ड्राफ्ट में अपना नाम खोजने में असफल रहे।


गांव के निवासी 55 वर्षीय साहब अली ने कहा, “मैं यहां पैदा हुआ था और यही रहा हूं। मेरे पास भारतीय नागरिकता साबित करने के लिए मेरे सभी स्कूल प्रमाण पत्र और सब कुछ है। हालांकि, मुझे 1997 में चुनाव अधिकारियों द्वारा 'डी' मतदाता के रूप में वर्गीकृत किया गया था। मुझे पहले मामले को फॉरनर्स ट्रिब्यूनल ले जाना पड़ा और फिर यहां सत्र न्यायालय में। 2012 में, अदालत ने फैसला सुनाया कि मैं एक वास्तविक भारतीय नागरिक हूं। फिर भी मेरा नाम एनआरसी ड्राफ्ट में शामिल नहीं किया गया।”

साहब की तरह, एनआरसी ड्राफ्ट में उनकी मां का नाम भी शामिल नहीं किया गया, जबिक उनकी मां का नाम 1966 की मतदाता सूची में था। एनआरसी ड्राफ्ट से 26 वर्षीय अकबर हुसैन और उनके चार भाई-बहनों के नाम भी गायब थे। अकबर ने फाइनल एनआरसी सूची के पब्लिश होने से पहले कहा था, “हमारे पिता का नाम एनआरसी में था। हमने अपने पिता से संबंधित लेगसी डॉक्युमेंट सौंपी, लेकिन एनआरसी के ड्राफ्ट में हमारे नाम शामिल नहीं हैं।”

उन्होंने बताया गया कि वैध दस्तावेज दिए, लेकिन उन्हें खारिज कर दिया गया। हुसैन ने कहा, “हम वास्तविक भारतीय नागरिक हैं। वे हमें विदेशी कैसे बता सकते हैं? हमारे गांव में ऐसे 100 से अधिक मामले हैं। वे सभी वास्तविक भारतीय नागरिक हैं।”

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Published: 31 Aug 2019, 1:59 PM