एनआरसी से बाहर लोगों के लिए बंदी गृहों का निर्माण तेज़, मुस्लिम बहुल इलाकों में बन रहे हैं ‘यातना शिविर’
असम में एनआरसी का अंतिम मसौदा जारी होने के बाद राज्य में बंदी गृह बनाने का काम तेज़ हो गया है। ऐसे ही एक बंदी गृह, जिसे नाजी दौर के यातना शिविर की संज्ञा भी दी जा रही है, गुवाहाटी से कोई 160 किलोमीटर दूर बनाया जा रहा है। नवजीवन ने इस बंदी गृह का दौरा किया।
असम की राजधानी गुवाहाटी से करीब 160 किलोमीटर दूर मटिया इलाके के डोमिनी में एक बड़े से बंदी गृह का निर्माण जोर-शोर से जारी है। इस निर्माण कार्य में स्थानीय लोगों को ही लगाया गया है। इसमें उन लोगों को रखा जाएगा, जिनके नाम एनआरसी में नहीं आ पाए हैं, विदेश न्यायाधिकरण की जांच के बाद उन्हें विदेशी घोषित किया जाएगा। असम की बीजेपी सरकार भले ही इन्हें बंदी गृह का नाम दे रही है, लेकिन तमाम लोग इन्हें यातना शिविर की संज्ञा दे रहे हैं। लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इस शिविर को गोआलपाड़ा जिले के मुस्लिम बहुल इलाके में बनाया जा रहा है। लोगों का कहना है कि इसके पीछे मकसद उन लोगों को एक संदेश देना है जो सीमा पार कर भारत में आए हैं। इस गृह के निर्माण की लागत करीब 45 करोड़ है और इसकी क्षमता 3000 है।
इस शिविर के चारों कोनों पर वॉच टॉवर बनाए गए हैं, प्रवेश द्वार पर पुलिस चौकी बनाई जा रही है। इसके चारों तरफ लाल रंग की ऊंची चहारदीवारी बनाई गई है जिसके ऊपर कंटीले तारों की बाड़ लगाई जा रही है। देखने में यह सरकारी जेल की तरह लगता है। इस बंदी गृह में जिन लोगों को रखा जाना है, उनका कुसूर सिर्फ इतना होगा कि उनके पास खुद को भारतीय साबित करने का कोई दस्तावेजी सबूत नहीं है। जाहिर है ऐसे लोगों में ज्यादा तादाद गरीबों की होगी।
इस गृह के अंदर ही पानी की टंकी, अफसरों की रिहायश के लिए क्वार्टर बनाए जा गए हैं। लेकिन बंदियों के लिए कोई कमरा अभी नहीं बना है। इस परिसर के अंदर ही एक इलाके में अस्पताल बनाया जाएगा, जबकि परिसर के बाहर एक स्कूल भी बनाया जा रहा है। इस गृह में महिला और पुरुष बंदियों को अलग-अलग रखा जाएगा।
यहां काम कर रहे मजूदरों का कहना है कि इस गृह के दस मंजिल तक होने की संभावना है।
इस बंदी गृह का निर्माण 2018 के दिसंबर में शुरु हुआ था और इसे इस साल यानी दिसंबर 2019 तक पूरा करना है। गौरतलब है कि इसी महीने में 120 दिनों की वह मीयाद खत्म होगी, जिसमें एनआरसी से बाहर रह गए लोगों को अपील करने की अनुमति है। लेकिन निर्माण कार्य की गति देखकर नहीं लगता कि दिसंबर तक इस का निर्माण पूरा हो पाएगा। जिस दिन यह संवाददाता इस साइट पर पहुंची तो वहां एक बैलगाड़ी पर लादकर ईंटे लाई जा रही थीं।
गोआलपाड़ा जैसे ही बंदी गृह राज्य के 11 और इलाकों में बनाए जा रहे हैं। इनमें कुछ सेंटर बारपेटा, कामरूप, नलबाड़ी, दीमा हसाओ, करीमगंज, लखीमपुर, नागांव और सोनितपुर हैं।
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि ऐसे किसी भी केंद्र के निर्माण पर सुप्रीम कोर्ट ने एतराज़ जताया था। सुप्रीम कोर्ट पहले ही इस बात पर आपत्ति और नाराजगी जता चुका है कि पूर्व में विदेशी घोषित किए गए लोगों को बंदी गृह में उनके परिवारों से अलग-थलग रखा जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने असम सरकार से इस मामले में दखल देने को कहा था ताकि परिवार एक दूसरे से अलग न हों।
असम की जेलों में बंद ऐसे ही कम से कम 25 लोगों की मौत हो चुकी है। फिलहाल असम की जिला जेलों में कम से कम 6 ऐसे बंदी गृह हैं, जहां विदेशी घोषित किए गए लोगों को रखा गया है। जिन जेलों में ऐसे केंद्र हैं उनमें तेजपुर, डिब्रूगढ़, जोरहाट, सिलचर, कोकराझार और गोआलपाड़ा हैं।
नियमानुसार, विदेशी घोषित किए गए लोगों को तब तक इन बंदी गृहों में रखा जाएगा, जब तक कि कानूनी तौर पर उन्हें देश निकाला नहीं दे दिया जाता। चूंकि असम के ज्यादातर राजनीतिज्ञ इन लोगों को बांग्लादेशी कह रहे हैं, ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि इन लोगों को किस तरह बांग्लादेश वापस भेजा जाएगा, क्योंकि बांग्लादेश के साथ भारत की ऐसी कोई संधि नहीं है। इतना ही नहीं, यह कथित बांग्लादेशी तो जीवन भर असम में रहे हैं और बांग्लादेश में अब उनका कोई जान-पहचान तक वाला मिलना मुश्किल होगा। यह भी देखने वाली बात होगी कि आखिर कब तक इन लोगों को ऐसे बंदी गृहों में रखा जाएगा।
ध्यान रहे कि 31 अगस्त को जारी अंतिम एनआरसी मसौदे में 19 लाख से ज्यादा लोगों का नाम शामिल नहीं हुआ है, जबकि इस रजिस्टर में 3.11 करोड़ से ज्यादा लोगों के नाम शामिल किए गए हैं। माना जा रहा है कि अपील आदि के बाद इन 19 लाख लोगों में से करीब 85 फीसदी को रजिस्टर में शामिल कर लिया जाएगा।
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