सीबीआई का घमासान: केंद्र की नौकरशाही में मोदी के चहेते गुजरात काडर के अफसरों का बोलबाला है असली वजह

सूत्र बताते हैं कि सीबीआई जैसा युद्ध इस समय पूरी नौकरशाही में चल रहा है, और कारण है हर महत्वपूर्ण महकमे और पद पर गुजरात और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जुड़े रहे अफसरों की तैनाती।

फोटो : Getty Images
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उमाकांत लखेड़ा

सीबीआई में जारी घमासान अब राष्ट्रीय अखबारों की सुर्खियों में है। सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा और उनके नंबर-2 स्पेशल डायरेक्टर राकेश आस्थाना के बीच जारी युद्ध खुलकर सामने आ चुका है। राकेश आस्थाना के खिलाफ सीबीआई ने रिश्वतखोरी की एफआईआर दर्ज कर दी है तो राकेश आस्थाना ने सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा की शिकायत कैबिनेट सचिव से की है। देश की सबसे विश्वसनीय जांच एजेंसी के दो आला अफसरों के जारी यह युद्ध क्या सिर्फ वर्चस्व की लड़ाई है या फिर कुछ और?

सूत्र बताते हैं कि इस किस्म का युद्ध सिर्फ सीबीआई ही नहीं, पूरी नौकरशाही में चल रहा है, और कारण है हर महत्वपूर्ण महकमे और पद पर गुजरात और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जुड़े रहे अफसरों की तैनाती।

केंद्र में बागडोर संभालते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबसे पहले प्रधानमंत्री कार्यालय यानी पीएमओ के साथ ही गृह, खुफिया विभाग (आईबी), सीबीआई, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, सूचना आयोग समेत ज्यादातर संवेदनशील स्थानों पर तीन दर्जन से ज्यादा गुजरात कैडर के अधिकारियों को प्रतिनियुक्ति पर तैनात किया।

नौकरशाही पर करीब से नजर रखने वालों का मानना है कि पीएमओ जैसे ताकतवर कार्यालय में पहली बार एक ही राज्य की पृष्ठभूमि से आने वाले अधिकारियों का बोलबाला है।

एक पूर्व नौकरशाह ने नाम गोपनीय रखने के अनुरोध के साथ कहा, "पीएमओ ही क्यों, उपराष्ट्रपति बनते ही एम वेंकैया नायडु ने आंध्र कैडर के रिटायर्ड आईएएस आई वी सुब्बाराव को सचिव से लेकर राज्यसभा टीवी पर नियंत्रण करने के लिए गृह राज्य आंध्र प्रदेश मूल के ब्यूरोक्रेट्स का अधिपत्य कायम करवा दिया।" इसी तरह 1979 बैच के एक और रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी शरत कुमार को भी राष्ट्रीय जांच एजेंसी एनआईए से सेवानिवृति के बाद यूपीएससी में नया ठौर मिल गया।

विपक्षी दलों का आरोप रहा है कि भगवा आंतकवाद में आरोपित लोगों को क्लीन चिट दिलाने के एवज में शरत कुमार को महति भूमिका निभाने के लिए पुरस्कृत किया गया। वजह यह है कि एनआईए पर मक्का मसजिद केस में स्वामी असीमानंद, समझौता एक्सप्रेस और मालेगांव केस में लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित और अजमेर शरीफ दरगाह केस के आरोपियों के खिलाफ मामलों की पैरवी लचर तरीके से करने के आरोप लगे हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सियासत को पिछले डेढ़-दो दशकों से करीब से देखने वाले अहमदाबाद स्थित एक वरिष्ठ पत्रकार ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, "गुजरात में राजनेताओं और नौकरशाहों का नया गठजोड़ खड़ा करने और प्रदेश की नौकरशाही का राजनीतिकरण करने में नरेंद्र मोदी ने राज्य में एक नई राजनीतिक संस्कृति स्थापित करवा दी। अधिकारी की छवि और पिछला रिकॉर्ड चाहे कितना ही दागदार रहा हो, अगर वह मोदी-अमित शाह की गुड बुक में है तो रातों रात दूध का धुला बना दिया जाता है।"

रिटायर होने के बाद शीर्ष पदों पर बिठाए जाने वाले अधिकारी अलग-अलग वजहों से ईनाम पाने में कामयाब रहे हैं। इस सूची में सबसे आगे राजस्थान बैच के आईएएस अधिकारी राजीव महर्षि और सुनील अरोड़ा की गिनती होती है। मोदी-अमित शाह के लिए इन दोनों अधिकारियों की खूबी यह थी कि ये यूपीए शासन के दौर से ही मोदी-शाह को राजस्थान से मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के बारे में सूचनाएं पहुंचाते रहे।

महर्षि को राजस्थान के मुख्य सचिव पद पर पदोन्नत कर दिल्ली में गृहसचिव व बाद में वित्त सचिव के साथ ही सेवा विस्तार और फिर सीएजी प्रमुख बना दिया गया। दूसरी ओर सुनील अरोड़ा के रिटायर होते ही चुनाव आयुक्त बनाकर उन्हें पुरस्कृत किया गया। मौजूदा मुख्य चुनाव आयुक्त ओ पी रावत चूंकि दिसंबर में रिटायर हो जाएंगे, सो 2019 में जब मोदी आम चुनावों का सामना करेंगे, तो सुनील अरोड़ा ही मुख्य चुनाव आयुक्त पद पर बैठे होंगे।

गौरतलब है कि इससे पहले नरेंद्र मोदी ने अपने साथ निजी सचिव, मुख्य सचिव समेत कई ओहदे संभालने वाले अचल कुमार जोती को पहले चुनाव आयुक्त फिर मुख्य चुनाव आयुक्त बनाकर कई प्रदेशों में चुनाव करवाए।

चुनाव आयुक्त बनने वालों में 1980 बैच के हरियाणा कैडर के अशोक लवासा भी हैं, जो 2016 में नोटबंदी के वक्त वित्त सचिव थे। उन्हें रिटायर होते ही चुनाव आयुक्त पद से नवाज दिया गया है। प्रधानमंत्री बनते ही सिविल सेवा के जिन करीबी नौकरशाहों को मोदी दिल्ली लेकर आए थे, उनमें मौजूदा वित्त सचिव हंसमुख अधिया भी शामिल थे। उन्हें सितंबर 2015 में राजस्व सचिव बनाया गया था। गुजरात काडर के 1981 बैच के अधिया नोटबंदी के वक्त इसी पद पर थे। दिल्ली आने के पहले वे गुजरात में अतिरिक्त मुख्य सचिव (वित्त) के तौर पर कार्यरत थे, यानी मोदी के कोर अफसरों की विश्वस्त टीम के अहम किरदार रहे थे।

मई 2014 में प्रधानमंत्री का पदभार संभालते ही नरेंद्र मोदी ने चंद सप्ताह में ही करीब दर्जन से ज़्यादा अधिकारियों को पीएमओ में बिठा दिया था। इनमें से ज्यादातर अधिकारी 13 बरस में कभी न कभी मोदी से प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर जुड़े हुए थे। पीएमओ में तो मोदी ने अपने साथ गुजरात में काम कर चुके करीब दर्जन से ज़्यादा रिटायर आईएएस अधिकारियों को विभिन्न तरह के कामकाजों का जिम्मा सौंप दिया। इनमें पीके मिश्रा सबसे ताकतवर पहले दिन से ही बन गए थे, क्योंकि शुरू से सभी अहम फैसलों में उन्हीं की अहम भूमिका मानी जाती रही है। किस नौकरशाह की तैनाती कहां होनी है, यह सब काम पीके मिश्रा ही करते रहे हैं। 2001 से 2004 तक वे गुजरात में मोदी के मुख्यसचिव थे।

अहमदाबाद से लेकर दिल्ली की सत्ता के गलियारों में पी के मिश्रा को ही मोदी का कान और आंख बताया जाता है। गुजरात काडर के ही राजीव टोपनो शुरू से ही प्रधानमंत्री मोदी के निजी सचिव और अरविंद शर्मा, संयुक्त सचिव के तौर पर काम कर चुके हैं। जगदीश ठक्कर, संजय भवसार और हीरेन जोशी जैसे गुजरात के कई अधिकारी पीएमओे में रहकर कई तरह के अहम मामलों पर नजर रखते हैं।

एक सेवारत नौकरशाह के मुताबिक उन्हें सोशल मीडिया पर सरकार की किसी नीति पर टिप्पणी करने पर हिदायत देने के लिए बाकायदा पीएमओ से फोन आया। दिल्ली में मोदी-शाह के चहेते कई अधिकारी तो ऐसे हैं, जिनके पदों के बारे में कोई सूचना सार्वजनिक नहीं की गई।

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Published: 22 Oct 2018, 6:00 PM