प्रमुख संसदीय समितियों में अध्यक्ष पद पर विपक्ष के लिए कोई जगह नहीं, 'मोडइंडिया' में बीजेपी का सभी समितियों पर कब्जा
कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस दोनों विपक्षी दलों में से किसी को भी गृह, वित्त, आईटी, रक्षा और विदेश मामलों की महत्वपूर्ण समिति की अध्यक्षता नहीं दी गई। इस कदम की विपक्ष की तीखी आलोचना हुई और कांग्रेस ने इसे "कठोर कदम" बताया है।
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की अनदेखी करते हुए मुख्य संसदीय समितियों से विपक्ष को लगभग बाहर कर दिया है। मंगलवार को किए गए फेरबदल के बाद मुख्य संसदीय समितियों की अध्यक्षता विपक्षी दलों के पास नहीं रह गई है। अब गृह, सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी), रक्षा, विदेश मामले, वित्त और स्वास्थ्य पर बनी मुख्य संसदीय समितियों की अध्यक्षता बीजेपी और उसके सहयोगी दलों के पास है।
इस फेरबदल के बाद संसद की सबसे बड़ी और मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के पास सिर्फ एक संसदीय समिति की अध्यक्षता रह गई है जबकि दूसरी बड़ी विपक्षी पार्टी तृणमूल कांग्रेस के पास एक भी समिति की अध्यक्षता नहीं है। विपक्ष ने सरकार के इस कदम की तीखी आलोचना की है। कांग्रेस ने इसे तानाशाही करार देते हुए कड़ा विरोध किया है।
कांग्रेस सांसद अभिषेक मनु सिंघवी पहले गृह मंत्रालय की संसदीय समिति के अध्यक्ष थे, लेकिन उनकी जगह अब बीजेपी सांसद और पूर्व आईपीएस अफसर बृज लाल को इस समिति की कमान सौंपी गई है। इसी तरह सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) के मामलों पर बनी समिति की अध्यक्षता से कांग्रेस पार्टी में अध्यक्ष पद के उम्मीदवार शशि थरूर को हटाकर शिवसेना के एकनाथ शिंदे गुट के सांसद प्रतापराव जाधव को सौंपी गई है। आईटी पर संसदीय समिति के अध्यक्ष के रूप में शशि थरूर को अकसर बीजेपी सांसदों के विरोध और आलोचना का सामना करना पड़ा था। खासतौर से बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे उन पर आरोप लगाते रहे थे, जिनका थरुर ने सार्वजनिक तौर पर खंडन किया था।
विपक्ष ने सरकार के इस कदम का कड़ा विरोध किया है। कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने कहा है कि बीजेपी का यह कठोर कदम है। उन्होंने ट्वीट में कहा, “लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन के एक पार्टी शासन और रूस के कुलीन वर्ग मॉडल से प्रभावित हैं। वह एक जासूसी सरकार की नींव डाल रहे हैं, जहां नागरिकों के अधिकार खत्म किए जा रहे हैं और संस्थागत व्यवस्था खत्म हो रही है।“
मोदी सरकार ने कांग्रेस सांसद जयराम रमेश को फिर से पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन समिति का अध्यक्ष बनाया है। लेकिन जयराम रमेश ने अन्य संसदीय समितियों की अध्यक्षता छीने जाने का विरोध किया है। उन्होंने तृणमल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन के ट्वीट को रिट्वीट करते हुए लिखा है कि “यही मोडइंडिया है..।”
डेरेक ओ ब्रायन ने लिखा था कि, ”संसद में तीसरी सबसे बड़ी और दूसरी सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी तृणमूल कांग्रेस को एक भी समिति की अध्यक्षता नहीं दी गई। साथ ही विपक्ष से दो महत्वपूर्ण संसदीय समितियों की अध्यक्षता भी छीन ली गई। न्यू इंडिया का यही काला सच है।”
कांग्रेस के राज्यसभा में 31 और लोकसभा में 53 सांसद हैं। वहीं तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सांसदों की संख्या 13 और लोकसभा सांसदों की संख्या 23 है। इसके बावजूद पार्टी को किसी भी समिति की अध्यक्षता नहीं मिली है।
नए फेरबदल के बाद स्वास्थ्य और परिवार कल्याण पर बनी समिति की अध्यक्षता भी अब समाजवादी पार्टी के बजाए बीजेपी के पास चली गई है। पहले इस समिति के अध्यक्ष सपा के रामगोपाल यादव थे, अब उनकी जगह पर बीजेपी सांसद भुवनेश्वर कालिता को स्वास्थ्य समिति का अध्यक्ष बनाया गया है। इसी तरह खाद्य मामलों पर बनी समिति की अध्यक्षता अब बीजेपी की सांसद लॉकेट चटर्जी और शिक्षा, युवा और खेल समिति की अध्यक्षता बीजेपी के ही विवेक ठाकुर को सौंपी गई है। जगदंबिकापाल अब ऊर्जा पर बनी समिति की अध्यक्षता करेंगे। आवास और शहरी मामलों की समिति के अध्यक्ष जगदंबिकापाल की जगह इस समिति की कमान अब जेडीयू के राजीव रंजन सिंह सौंपी गई है।
अन्य संसदीय समितियों में उद्योगों पर बनी समिति के अध्यक्ष तेलंगाना राष्ट्र समिति के के केशव राव, श्रम, कपड़ा और कौशल विकास समिति के अध्यक्ष बीजू जनता दल के भृतहरि मेहताब, वित्त समिति के अध्यक्ष जयंत सिन्हा, रक्षा समिति के अध्यक्ष जुएल ओराम, विदेश मामले समिति के अध्यक्ष पीपी चौधरी, कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय समिति के अध्यक्ष सुशील मोदी, रेलवे समिति के अध्यक्ष राधा मोहन सिंह और पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मामलों की समिति के अध्यक्ष रमेश बिधुड़ी हैं। 24 लोकसभा और 10 राज्यसभा सांसदों वाली DMK को उद्योग और ग्रामीण विकास पर बनी समितियों की कमान सौंपी गई है।
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