बजट में गरीबों का जिक्र नहीं, अमीर-गरीब की खाई भरने के उपाय नहीं, आम लोगों की उम्मीदों के साथ विश्वासघात: चिदंबरम

पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता पी चिदंबरस ने कहा कि मुझे खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में कहीं भी बेरोजगारी, गरीबी, असमानता या समानता जैसे शब्दों का उल्लेख नहीं किया है।

फोटो : विपिन
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नवजीवन डेस्क

पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने कहा है कि, “आज (बुधवार को) 2023-24 का जो बजट पेश किया गया और वित्त मंत्री का बजट भाषण साफ बताता है कि यह सरकार लोगों और उनके जीवन, उनकी आजीविका और अमीर-गरीब के बीच बढ़ती असमानता और उनकी चिंताओं से कितनी दूर है।“

उन्होंने कहा कि, “मुझे खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि वित्त मंत्री ने अपने भाषण में कहीं भी बेरोजगारी, गरीबी, असमानता या समानता जैसे शब्दों का उल्लेख नहीं किया है। हां दो बार उन्होंने अपने भाषण में गरीब शब्द का उल्लेख किया है। मुझे विश्वास है कि भारत की जनता इस बात का ध्यान रखेगी कि कौन सरकार के सरोकार में है और कौन नहीं।“

पी चिदंबरम ने कुछ आंकड़े पेश किए। उन्होंने बताया कि, “पिछले साल, सरकार ने 2021-22 के लिए जीडीपी का अनुमान 232,14,703 रुपये का अनुमान लगाया था और 11.1 प्रतिशत की मामूली वृद्धि दर मानते हुए, 2022-23 के लिए 258,00,000 करोड़ रुपये की जीडीपी का अनुमान लगाया था। । आज के बजट में, 2022-23 के लिए जीडीपी 273,07,751 करोड़ रुपये रहने का अनुमान लगाया गया है, जो कि पहले के अनुमान से 15.4 प्रतिशत की वृद्धि दर है। इस आंकड़े को देखें तो असली जीडीपी दो अंकों में बढ़ना चाहिए था। फिर भी वित्त मंत्री (और आर्थिक सर्वेक्षण में भी) ने इस वर्ष के लिए जीडीपी वृद्धि को केवल 7 प्रतिशत रखा है। क्या सरकार बताएगी कि ऐसा क्यों है?

उन्होंने सवाल उठाया कि सरकार का पूंजीगत व्यय और प्रभावी पूंजीगत व्यय दोनों बजट अनुमानों से कम हैं, तो, 2022-23 में किस वजह से विकास हुआ? उन्होंने बताया कि हम जानते हैं कि निजी निवेश, निर्यात में गिरावट है और निजी खपत स्थिर है। ऐसे में सरकार चालू वर्ष में 7 प्रतिशत की वृद्धि को कैसे हासिल करेगी?

उन्होंने सरकार के जीडीपी के अनुमानों पर भी सवालिया निशान लगाया। उन्होंने कहा कि वर्ष 2022-23 की पहली और दूसरी तिमाही में विकास दर क्रमशः 13.5 प्रतिशत और 6.3 प्रतिशत अनुमानित की गई है। इसलिए, इस साल वर्ष की पहली छमाही में हमारे पास पहले से ही 9.9 प्रतिशत की वृद्धि है। यदि पूरे वर्ष में केवल 7 प्रतिशत वृद्धि होगी, तो क्या इसका मतलब यह है कि तीसरी और चौथी तिमाही में केवल 4 से 4.5 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज होगी। इसलिए, पूरे वर्ष के लिए तिमाही जीडीपी विकास दर गिर रही है।


उन्होंने इनकम टैक्स में दी गई कथित राहत पर भी सवाल उठाए। पूर्व वित्त मंत्री ने कहा कि फायदा सिर्फ नई कर व्य़वस्था चुनने वालों को मिलेगा, लेकिन यह नहीं बताया गया है कि पुरानी कर व्यवस्था अपनाने वालों के साथ क्या होगा। उन्होंने कहा कि कोई भी इनडायरेक्ट टैक्स कम नहीं किया गया है। खासतौर से बेहद अतार्किक जीएसटी दरों में कोई कटौती नहीं की गई है। पेट्रोल, डीजल, सीमेंट, उर्वरक आदि की कीमतों में कोई कमी नहीं हुई है।

पी चिदंबरम ने कहा कि इस बजट से न तो गरीब को फायदा गुआ और न ही नौकरी की तलाश कर रहे युवाओं को या जिन्हें नौकरी से निकाला गया है। इन लोगों में कोई टैक्सपेयर नहीं है। उन्होंने कहा कि यह बजट करदाताओं का बड़ा हिस्सा नहीं। उन्होंने कहा कि इससे सिर्फ उन एक फीसदी लोगों को फायदा हुआ है जिनके हाथों में लगातार संपत्ति बढ़ती जा रही है।

उन्होंने कहा कि नई कर व्यवस्था को डिफॉल्ट बनाना आम लोगों के साथ अन्याय है क्योंकि इससे साधारण टैक्सपेयर उन अल्प सामाजिक सुरक्षा से वंचित कर देगा जो उसे पुरानी कर व्यवस्था के तहत मिल सकती है।

कांग्रेस नेता ने कहा कि यह साफ हो गया है कि केंद्र सरकार के वाणिज्यिक और वित्तीय केंद्रों की कीमत पर अहमदाबाद को गिफ्ट सिटी बनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि यूं तो आर्थिक सर्वेक्षण ने दुनिया और भारत के सामने आने वाली सभी बाधाओं को सूचीबद्ध किया, लेकिन इन बाधाओं का सामना करने के लिए कोई समाधान पेश नहीं किया। बजट भाषण में विपरीत परिस्थितियों को भी स्वीकार नहीं किया गया।

उन्होंने कहा कि सरकार अपनी ही एक काल्पनिक दुनिया में जी रही है। उन्होंने बताया कि दुनिया भर में तीन प्रमुख तथ्यों को स्वीकार किया जाता है:

1. विश्व विकास और विश्व व्यापार 2023 में काफी धीमा हो जाएगा (भारत के लिए,

2023-24)।

2. कई उन्नत अर्थव्यवस्थाएं मंदी की चपेट में आ जाएंगी।

3. वैश्विक सुरक्षा स्थिति, यूक्रेन युद्ध और अन्य बढ़ते संघर्षों के कारण बिगड़ जाएगी।

उन्होंने कहा कि अगर ये तीनों स्थितियां बनती तो सरकार क्या करेगी? महंगाई और बेरोजगारी से पीड़ित लोगों पर यह किस तरह का बोझ पड़ेगा? न तो आर्थिक सर्वेक्षण में और न ही बजट भाषण में कोई जवाब दिया गया। अंत में उन्होंने कहा कि यह एक कठोर बजट है जिसने अधिकांश लोगों की उम्मीदों के साथ विश्वासघात किया है।

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